महाराष्ट्र में आरक्षण का मुद्दा भुनाने की कवायद
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राज्य के उद्योग मंत्री नारायण राणे की अध्यक्षता में मराठों को आरक्षण प्रदान करने हेतु गठित समिति की पुणे में बैठक
तावड़े बोले-पिछले चुनावों में भी दिखाया गया था आरक्षण का लालीपाप लेकिन समय पर कुछ नहीं किया
महाराष्ट्र में चुनावी सरगर्मी शुरू होने के पहले ही राज्य के सत्ताधारी गठबंधन के कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस ने राज्य में मराठों के आरक्षण के मुद्दे को राजनीतिक तौर पर भुनाना शुरू कर दिया है। मामले की शुरुआत तब हुई जब राज्य में कांग्रेसी पहल पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व उद्योग मंत्री नारायण राणे की अध्यक्षता में मराठों को आरक्षण प्रदान करने हेतु गठित समिति ने पुणे में हुई बैठक में इस मुद्दे की राजनीति सार्वजनिक तौर पर छेड़ी। नारायण राणे के अलावा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष माणिकराव ठाक रे ने पहली बार यह मुद्दा उठाया कि राज्य में मराठों का उचित विकास करना हो तो उन्हें आर्थिक-राजनीतिक आरक्षण दिया जाना जरूरी है। इसी के लिए कांग्रेस ने समिति का गठन किया है।
कांग्रेस के इस राजनीति से प्रेरित पहल पर पहली प्रतिक्रिया राष्ट्रवादी कांग्रेस की रही। मराठों के आर्थिक आरक्षण के मुद्दे को भुनाने, मराठों के कथित नेता तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार को ही मैदान में उतार दिया। शरद पवार और राष्ट्रवादी कांग्रेस अब दोहरी दुविधा में फंस गई है। इसका स्वाभाविक, राजनीतिक हल निकालने हेतु तथा राज्य में मराठों के अलावा अन्य समाज के मतदाताओं को भी लुभाने हेतु शरद पवार ने आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के आधार पर मराठों के साथ ही ब्राह्मणों से लेकर मुसलमानों तक सभी को अन्य पिछड़े वर्गों को प्राप्त आरक्षण के अनुसार आरक्षण दिए जाने की वकालत कर डाली, जो उन के लिए काफी महंगी साबित हुई।
वहीं कभी शरद पवार के राजनीतिक दाहिने हाथ समझे जाने वाले राष्ट्रवादी कांग्रेस के छगन भुजबल जैसे ओबीसी नेता ने भी ओबीसी के कोटे में से मराठों के लिए प्रस्तावित आरक्षण के विरोध में कमान संभाल ली है। उल्लेखनीय है कि शिव सेना छोड़ राष्ट्रवादी कांगे्रस में शामिल होने के बाद अपने आप को ओबीसी के राष्ट्रीय स्तर के नेता बताते हुए घूमने वाले छगन भुजबल की अब राजनीति दुविधा यह है कि अपने आप को प्रदेश से लेकर देश तक ओबीसी नेता के रूप में प्रस्तुत करने के बाद अब वे ओबीसी वर्गों के आरक्षण से मराठों को आरक्षण देने की बात सोच भी नहीं सकते। ऐसी स्थिति में अपने राजनीतिक आका से संघर्ष करने के अलावा उन के सामने और कोई विकल्प भी नहीं है। विगत चुनावों के पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस ने मराठों को आरक्षण का लालच देकर कुछ नहीं किया। इसी बात को लेकर नारायण राणे अब मराठा आरक्षण समिति के माध्यम से राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा खासकर शरद पवार को रानीतिक कटघरे में खड़ा करना चाहते हैं, यह बात बिलकुल स्पष्ट हो गई है। भाजपा के महाराष्ट्र विधान परिषद के नेता विपक्ष विनोद तावड़े ने शरद पवार के राजनीतिक दोगलेपन को लेकर तीखे कटाक्ष करते हुए कहा कि विगत चुनावों में मराठों को आरक्षण का राजनीतिक लालीपॉप दिखाकर शरद पवार द्वारा उनके लिए कुछ नहीं करना व अब कुछ कहने-करने का समय आने पर अपने इरादे-वादों से मुकर जाने से साफ हो गया है कि शरद पवार कतई विश्वास करने योग्य नहीं हैं।
वालमार्ट के दबाव समूह से बातचीत
का ब्यौरा नहीं देगा प्रधानमंत्री कार्यालय
आरटीआई के तहत जानकारी देने में छूट का दिया हवाला
प्रधानमंत्री कार्यालय ने खुदरा क्षेत्र की अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनी वालमार्ट की लॉबिंग करने वालों के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिंह व अन्य अधिकारियों की बातचीत का विस्तृत ब्यौरा देने से इंकार कर दिया है। इसके लिए पीएमओ के अधिकारियों ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) से मिली छूट का हवाला दिया है।
सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई एक जानकारी में (प्रधानमंत्री कार्यालय) पीएमओ ने कहा कि ह्यप्रधानमंत्री के संबंध में जो जानकारी मांगी गई है उसे नहीं देने के लिए इस कानून की धारा आठ में छूट प्राप्त है, जबकि पीएमओ के अधिकारियों के संबंध में कहा गया है कि मांगी गई सूचना कार्यालय के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है।ह्णआरटीआई की धारा आठ में कम से कम आठ उपधाराएं हैं, जिनमें मांगी गई सूचना देने से मना किया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि सूचना के अधिकार के तहत पीएमओ से प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय के अधिकारियों से वर्ष 2008 से अब तक वालमार्ट के लॉबिस्ट, सलाहकारों, अधिकारियों और प्रतिनिधियों से हुई बैठकों का ब्यौरा मांगा गया था। सरकार ने संसद को यह बताया था कि वह भारत के खुदरा बाजार तक अपनी पहुंच बनाने के लिए वालमार्ट अमेरिकी सांसदों को अपने पक्ष में करने के लिए बहुत मेहनत कर रही है। सरकार ने इसी वर्ष जनवरी में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मुकुल मुदगल की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की थी। सीमिति ने गत 18 मई को अपनी रपट सौंपी। रिपोर्ट में इस बारे में स्पष्ट नहीं लिखा हुआ है कि वालमार्ट ने अमरीकी सांसदों को अपने पक्ष में करने के लिए भारतीय काननू का उल्लंघन किया है या नहीं। मुकुल कमेटी के निष्कर्षों पर अभी केंद्रीय मंत्रिमंडल को विचार करना है। अमेरिकी संसद के दस्तावेजों के मुताबिक, वालमार्ट ने वर्ष 2012 में 332 करोड़ रुपए विभिन्न मुद्दों पर लाबिंग करने के लिए खर्च किए हैं। इसमें भारत के खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का मुद्दा भी शामिल था।
स्विवट्जरलैंड पर लगातार बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव से 15 अक्तूबर को कर मामलों पर जानकारी साझा करने से जुड़े आर्थिक सहयोग व विकास संगठन(ओईसीडी) देशों ने बहुपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। यद्यपि इस समझौते से स्विस बैंकों की गोपनीयता लगभग खत्म हो जाएगी। स्विट्जरलैंड अब अपने यहां जमा कथित काले धन पर प्रत्येक प्रकार की सूचना उपलब्ध कराएगा। स्विट्जरलैंड के अधिकारी अब काले धन से लेकर कर वसूलने और इससे जुड़ी अनेक जानकारियां देने के लिए तैयार रहेंगे। साथ ही वह दूसरे देशों की सरकारों के साथ सूचनाओं का लेन-देन करेगा और कालेधन की जंाच के लिए पारस्परिक सहयोग भी करेगा। इस संधि पर भारत समेत 58 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।
उल्लेखनीय है कि विश्व भर के लोग कर बचाने को लेकर इन बैंकों में अपना धन जमा करते हैं। साथ ही भारत के राजनेताओं से लेकर फिल्मी हस्तियों और बड़े कारोबारियों के नाम भी इन बैंकों में अरबों डालर जमा होने की चर्चा है।लेकिन इस समझौते के होने से अब काफी कुछ साफ होने की उम्मीद हैं। इसी को देखते हुए स्विस नेशनल बैंक ने कुछ समय पहले एक रपट जारी की थी,रपट के अनुसार स्विट्जरलैंड में भारतीयों की ओर से जमा काले धन में लगातार कमी देखी जा रही है और यह 9 हजार करोड़ के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है।
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