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जम्मू क्षेत्र में पाकिस्तान की सीमा के साथ लगने वाली हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि न केवल बंजर बनकर रह गई है, अपितु घुसपैठियों तथा अन्य देशद्रोही तत्वों की गतिविधियों का केन्द्र बनती रही है। सन 2002 में सीमा पार से घुसपैठ तथा शस्त्रों आदि की तस्करी को रोकने के लिए सीमा तथा नियंत्रण रेखा के पास कांटेदार तार लगाने का कार्य आरम्भ किया गया था। लेकिन पाकिस्तान ने इसका विरोध किया गया था, जिसके कारण तार लगाने का काम ठण्डा पड़ गया और जम्मू में लगभग 190 कि.मी. लम्बी सीमा पर तार लगाने का यह कार्य नियंत्रण रेखा से पीछे हटकर किया गया। यद्यपि सरकार के द्वारा यह आश्वासन दिया गया था कि पाकिस्तान के साथ संबंधों में सुधार होते ही यह बाड़ हटाकर नियंत्रण रेखा तक पहंुचा दी जाएगी। परन्तु 10 वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी कंटीली बाड़ नियंत्रण रेखा तक नहीं पहुंची, जिसके कारण किसान अपने खेतों तक नहीं जा पा रहे हैं और कृषि योग्य भूमि बंजर होकर रह गई है। ऐसी स्थिति में उन क्षेत्रों में ऊंची-ऊंची घास उग आई है, जिसका लाभ उठाते हुए आतंकियों द्वारा उन स्थानों पर अड्डे बनाने तक के समाचार प्राप्त हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि उस ओर पाकिस्तानी किसान नियंत्रण रेखा तक खेती कर रहे हैं और ऐसे भी समाचार हैं कि उनके पशु ही नहीं अपितु लोग इस ओर घुस आते हैं। पाकिस्तान के इस आक्रामक रुख का स्थानीय लोगों के मनोबल पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। चूंकि 1965 के युद्घ के पूर्व भी ऐसी ही स्थितियां बन गई थीं और कितनी ही भूमि बंजर बन कर रह गई थी। लेकिन कुछ बड़े अधिकारियों के साहस और हस्तक्षेप से उस बंजर भूमि को पुन: खेती योग्य बना लिया था। पर अब फिर से केन्द्र सरकार की लचर नीतियों के कारण एक विचित्र सी स्थिति उत्पन्न हो गई है तथा किसान अपने खेतों से वंचित हो रहे हैं। जम्मू से विशेष प्रतिनिधि
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