इस्लामी आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा: पारकर
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ब्रिटेन की गुप्तचर एजेंसी एमआई5 के निदेशक एंड्रयू पारकर ने यह कहकर दुनिया के तमाम रक्षा विषेशज्ञों की बात को एक तरह से पुष्ट किया है कि इस वक्त सबसे बड़ा खतरा इस्लामी आतंकवादियों से है। केन्या में नैरोबी के मॉल पर पिछले दिनों हुए जिहादी हमले ने इस्लामी आतंकवाद की बर्बरता को फिर से उजागर कर दिया है जिसमें हत्यारों ने 68 गैर-मुस्लिमों को चिन्हित करके गोलियों से भून दिया था। मरने वालों मे करीब सात भारतीय थे। हालांकि पारकर ने वह चेतावनी ब्रिटेन के संदर्भ में दी थी, पर यह खतरा जितना ब्रिटेन के लिए है उतना ही बाकी के अनेक देशों के लिए भी है।
8 अक्तूबर को ब्रिटेन के रॉयल यूनाइटेड इंस्टीट्यूट में भाषण देते हुए पारकर ने कहा कि इस वक्त हजारों इस्लामी उग्रवादी हैं जो ब्रिटेन के नागरिकों को ह्यजायज निशानाह्ण मानते हैं। पारकर को अंदेशा है कि वे इस्लामी जिहादी साल में एक या दो बड़े हमले कर सकते हैं। उन्होंने नैरोबी हमले और सीरिया के गृहयुद्घ का हवाला देते हुए बताया कि आज के समय में आतंकवादी छितरे रहते हैं इसलिए कहना मुश्किल होता है कि अगला हमला कहां होने वाला है। उन्होंने अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। चिंता की बात यह है कि खतरे कम होने की बजाय रंग-रूप बदल कर सामने आते हैं। ब्रिटेन के लिहाज से वहां के गुप्तचर प्रमुख ने अल कायदा और पाकिस्तान तथा यमन में मौजूद उसके सहयोगी गुटों को ज्यादा सीधा और तात्कालिक खतरा बताया है। इस्लामी आतंकवादी पश्चिमी देशों पर निशाने साधने की फिराक में हैं। पारकर की मानें तो गुप्तचर एजेंसियां सीरिया में विद्रोही कार्रवाई में शामिल होकर लौटे ब्रिटेन और दूसरे पश्चिमी देशों के नागरिकों पर नजर रख रही हैं। एक आंकड़ा देते हुए उन्होंने बताया कि 11 सितम्बर 2001 से मार्च 2013 के बीच 330 लोगों को आतंकवाद से जुड़े अपराधों के लिए सजा दी गई है, जिनमें से 121 तो अभी भी जेल में हैं।
उत्तर कोरिया की सेना में ह्यहाई अलर्टह्ण
फिर घुड़काया अमरीका और दक्षिण कोरिया को
उत्तर कोरिया के तानाशाह शासकों के दिमाग में हर समय खलल रहती है और वे मौका मिलते ही तनाव का माहौल बनाने से नहीं चूकते। ताजा मामला देखें तो उत्तर कोरिया ने अमरीका और दक्षिण कोरिया पर ह्यतनाव भड़कानेह्ण का आरोप लगाते हुए, उनके खिलाफ पिछले कई दिनों से बयानबाजी करने के बाद, गत 7 अक्तूबर को अपनी फौज को ह्यहाई अलर्टह्ण कर दिया। उसे किसी भी समय कार्रवाई के लिए तैयार रहने का हुक्म दिया है। उत्तर कोरिया पहले भी कई बार उन दोनों देशों पर हमला बोल देने की धमकियां देता रहा है, पर किसी तरह की हरकत नहीं की, सिवाय मिसाइलें जांचने के। कई अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक भी अब उस देश की तनाव खड़ा करने की आदत समझ चुके हैं और उसके बयानों को सिर्फ शरारती खीझ मानते हैं। उत्तर कोरिया ने अपनी ताजा धमकी में अमरीका को सावधान किया है कि दक्षिण कोरिया के बंदरगाह पर एक युद्घपोत सहित कुछ जंगी जहाज ला खड़े करने के ह्यखतरनाक नतीजेह्ण होंगे। दक्षिण कोरिया में इस समय अमरीका के 28,500 सैनिक मौजूद हैं, उसके युद्घपोत और विमानवाहक पोत जार्ज वाशिंगटन, दक्षिण कोरिया के साथ युद्घ अभ्यास करते रहते हैं। इससे चिढ़कर उत्तर कोरिया ने अपनी परमाणु बम बनाने की काबिलियत में खासी बढ़ोतरी कर ली है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लाख समझाने के बाद भी लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें विकसित की हैं और इतना परमाणु मसाला इकट्ठा कर लिया है कि कम से कम 10 परमाणु बम बना ले। मार्च, 2013 में उसने अमरीका और दक्षिण कोरिया के इलाकों पर परमाणु हमले की धमकियां दी ही थीं। ऐसी परिस्थितियों में दुनियाभर के सभ्य समाज में उत्तर कोरिया की घुड़कियों को लेकर चिंता पैदा होना स्वाभाविक है, खासकर तब जब उसके पास, पाकिस्तान की बदौलत, परमाणु हथियार हैं और मित्र देश पाकिस्तान के शासकों की मानसिकता पर तालिबानी हावी हैं, जो ह्यइस्लाम के परचम तलेह्ण गैर मुस्लिमों को दुनिया से मिटा देने को उतावले बैठे हैं।
नोबुल की लामबंदी और हत्या की धमकी
पाकिस्तानी तालिबान ने फिर दी मलाला को मारने की धमकी
पाकिस्तान और लंदन में कुछ लोग तालिबान की गोलियों से बचकर बच्चों, खासकर लड़कियों की शिक्षा और अमन के लिए काम करते रहने का बीड़ा उठाने वाली पाकिस्तानी छात्रा मलाला यूसुफजई को शांति का नोबुल दिलाने के लिए लामबंदी कर रहे हैं तो वहीं पाकिस्तानी तालिबान ने उसे जान से मारने की कसमें खाई हैं। पाकिस्तान में तहरीके तालिबान ने मलाला को लानतें भेजते हुए कहा है कि वे उसे मारने की फिर कोशिश करेंगे। 7अक्तूबर को पाकिस्तानी तालिबान के प्रवक्ता शहीदुल्ला शहीद ने कहा कि मलाला में ह्यकोई साहसह्ण नहीं है। वे मौका मिलते ही उसे मारने की फिर से कोशिश करेंगे। मलाला पर पिछले साल 9 अक्तूबर को तालिबानी हत्यारों ने उसकी स्कूल बस में घुसकर गोलियां दागी थीं। 16 साल की मलाला को देश-दुनिया के कई संगठनों ने सिर-माथे बैठाकर उसे शिक्षा और अमन की प्रतीक के तौर पर पेश किया। इलाज के लिए ब्रिटेन गई मलाला अभी वहीं रहकर पढ़ रही है, लेकिन हाल में बीबीसी पर एक इंटरव्यू में उसने पाकिस्तान लौटने की इच्छा जताई है। 2007-09 के दौरान स्वात घाटी में तालिबानी हुकूमत थी। तब अपने ब्लॉग पर वह इस्लामवादियों के शासन के तहत रोजमर्रा जीवन की कठिनाइयों पर लिखती रही थी। इसलिए अब तालिबानी कह रहे हैं कि उन्होंने मलाला पर इसलिए हमला नहीं किया था कि वह स्कूल जाती थी, बल्कि इसलिए किया था क्योंकि वह तालिबान और इस्लाम के खिलाफ बोला करती थी।
आलोक गोस्वामी
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