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हमारे पड़ोसी रामनारायण का बेटा सुधीर अपना परीक्षा परिणाम सुनकर स्कूल से घर लौटा। उसके साथ उसका मित्र अशोक भी था। रामनारायण ने अपने बेटे से परीक्षा परिणाम के बारे में पूछा। 'मेरी अंग्रेजी में 'सप्लीमेंट्री' है और इसको 'फर्स्ट पोजीशन' है।' सुधीर ने अपने पिताजी को अपने और अपने मित्र के परीक्षा परिणाम के बारे में बताया। सुनकर वे अशोक की ओर देखने लगे तो अशोक ने बोला, 'चाचाजी! यह सब मेरे दादा जी और दादी जी के आशीर्वाद का ही फल है। वे मुझे दिन-रात पढ़ाते हैं और अच्छी-अच्छी बातें बताते हैं। उनके अनुभवों का लाभ उठाकर बड़ा होकर मैं महान से महान कार्य कर सकूंगा, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।' बालक अशोक से उसके दादा और दादी की प्रशंसा सुनकर रामनारायण सोचने लगे कि मैंने तो कभी अपने माता-पिता के अनुभवों से लाभ उठाने के बारे में सोचा भी नहीं था। मैंने तो अपने मां-बाप को बूढ़ा और अकर्मण्य समझकर गांव में ही अकेला छोड़ रखा है। यह मैंने अच्छा नहीं किया। मुझे उन्हें गांव से बुलाकर अपने साथ रखना चाहिए ताकि भावी पीढ़ी का सुधार हो सके और उन्हें भी कोई कष्ट न हो। यह सोचकर रामनारायण अपने पुत्र सुधीर से बोले, 'बेटा! अब तुम भी अच्छे अंकों से अपनी परीक्षा उतीर्ण करोगे। मैं कल ही गांव जाकर तुम्हारे दादा जी और दादी जी को यहां ले आऊंगा। वे अब हमारे साथ ही यहां रहेंगे।' यह सुनकर सुधीर खुशी से मुस्कुराता हुआ सोचने लगा कि अब वह भी अपने मित्र अशोक की तरह अपने दादा और दादी जी से अपनी पढ़ाई और दूसरे कामों में सहयोग लेकर उनके अनुभवों का लाभ उठायेगा। बड़े-बुजुर्गों के पास अनुभवों का ऐसा अनमोल खजाना होता है, जिसका लाभ उठाकर उनके परिवार के लोग अपने जीवन को सुखी, सुसंस्कृत और सम्पन्न बना सकते हैं।उमेश प्रसाद सिंह
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