ग्रामवासी बने जमीन के मालिक
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एकल अभियान का प्रयास रंग लाया
विजयलक्ष्मी सिंह
जिस जमीन पर वे तीन पुश्तों से खेती कर रहे थे वह जमीन उनकी अपनी नहीं थी। दिन रात पसीना बहाकर जो कुछ वे उगाते थे कभी भी उनसे छीना जा सकता था। लगभग 290 परिवारों के छोटे से गांव में खेती ही आमदनी का एकमात्र जरिया थी, किंतु कानूनन यह जमीन वन विभाग की थी।
महाराष्ट्र के नंदूरवार जिले में मुख्य सड़क से पंद्रह किलोमीटर दूर जंगलों में बसा है जुगनीपान्यांबापाड़ा गांव। यह गांव देश के उन सैकड़ों वनवासी ग्रामों में से है जो वन विभाग की जमीन पर बसे हैं। इस लिहाज से ये वनवासी गैर कानूनी खेती के आरोपी माने जाते रहे व वन विभाग चाहे तो उन पर इस निमित्त कार्रवाई भी कर सकता था। पर अब सब कुछ बदल चुका है, यह गांव देश की मुख्यधारा से जुड़ गया है। यहां का हर किसान अपनी जमीन का कानूनी मालिक है। यह संभव हुआ एकल अभियान के माध्यम से। संगठन के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर गांववालों ने सूचना के अधिकार के माध्यम से अपने हक की लड़ाई लड़ी व जीती भी।
आजादी की आधी सदी बाद भी इस पान्यांबापाड़ा गांव तक विकास की एक किरण तक नहीं पहुंची थी, क्योंकि एक साल पहले तक यह गांव किसी सरकारी सूची में अधिकृत नहीं था। यानी किसी भी सरकारी योजना, चाहे वो नरेगा के तहत जॉबकार्ड बनाना हो या फिर इंदिरा आवास के तहत घर बनाने का लाभ, यहां के लोगों को नहीं मिला। विडंबना तो यह है कि सड़क, बिजली, पानी व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं भी इन तक सिर्फ इसलिये नहीं पहुंची क्योंकि महाराष्ट्र सरकार के लिये वो सिर्फ वन विभाग की जमीन थी, न कि कोई बसा-बसाया गांव।
ग्राम प्रमुख श्री जान्या हुन्या पाड़वी ने कहा कि जिस जमीन को कड़ी मेहनत कर वहां के लोगों ने खेती लायक बनाया, उसी पर खेती करने के बदले वन विभाग ने कई बार उनसे जुर्माना वसूला। यहां तक कि दो बार खड़ी फसल पर जानवर छोड़ दिये गये। गांव के लोग विवश थे चूंकि किसी तरह का कानूनी संरक्षण उन्हें हासिल नहीं था। यहां तक कि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा की स्थिति में भी ये लोग किसी सरकारी मदद के हकदार नहीं थे। श्री पाड़वी ने कहा कि सन् 2005 में यदि यहां एकल विद्यालय नहीं खुलता तो यहां अगले तीस साल में भी कुछ नहीं बदलता। उन्होंने कहा कि एकल विद्यालय ने विगत पांच वर्षों में बच्चों को शिक्षा व संस्कार देने के साथ-साथ गांववासियों को उनके कर्तव्यों व अधिकारों के प्रति भी जागरूक किया। साथ-साथ गांव के विकास के लिए सामूहिक योगदान करने की प्रेरणा भी दी। संगठित ग्रामशक्ति से ही विकास के द्वार खुलते हैं, यह इस वनवासी ग्राम ने सिद्ध कर दिया है।
विद्यालय के प्रथम आचार्य व वर्तमान में अंचल अभियान प्रमुख श्री अटल वासई, जो कि इसी गांव के निवासी हैं ने कहा कि शिक्षा के साथ-साथ हमने गांव को एकता के सूत्र में भी बांधा। विद्यालय के बेहतर संचालन के लिये बनी ग्राम समिति ने गांव की समस्याओं को सुलझाने में कारगर भूमिका निभाई। समिति की मासिक बैठक में संगठन के वरिष्ठ कार्यकर्ता गांववालों का मार्गदर्शन करते थे। जमीन के मुद्दे पर भी चर्चा होती थी, पर तब तक सब ये मानते थे कि ये जमीन हमारी कभी नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि नासिक में स्वाभिमान जागरण योजना के प्रशिक्षण वर्ग में हमें वन अधिकारिता कानून की वृहद जानकारी दी गई, जिसके अनुसार वे वनवासी जो 1970 से किसी वनग्राम में रह रहे हैं व जिनकी रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया खेती है, उन्हें वन विभाग प्रति किसान 4 हेक्टेयर जमीन का मालिकाना हक देने को विवश है। कानून लागू हुए पांच से भी अधिक वर्ष बीत चुके थे पर जानकारी के अभाव में हमें उसका लाभ अब तक नहीं मिला था, तब संगठन ने तय किया कि सूचना के अधिकार का उपयोग कर पान्यांबापाड़ा के किसानों को उनके हक की जमीन दिलाने के लिये सभी संभव प्रयास किये जायेंगे। उन्होंने कहा कि एकल अभियान की स्वाभिमान जागरण योजना के तहत वनवासियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जा रहा है, गांववालों को न सिर्फ उनके हक में बने कानूनों की जानकारी दी जाती है, वरन हर जिले में एक स्वाभिमान जागरण प्रमुख भी होता है जो ग्रामीणों व सरकार के बीच सूत्रधार का काम करता है व जरूरत पड़ने पर उनके हक की लड़ाई लड़ने में सहयोग भी करता है। हमारे गांव में भी यही हुआ।
श्री वासई ने कहा कि ग्राम समिति की बैठक में जिले के स्वाभिमान जागरण प्रमुख श्री रामसिंह राउत ने इस कानून की वृहद् जानकारी दी तो गांव के लोगों ने अपने हक के लिये लड़ने का निश्चय किया। गांव के प्रत्येक व्यक्ति ने वन अधिकारिता अधिनियम के तहत वन विभाग से अपने हक की जमीन देने के लिये आवेदन दिया। किंतु तीन माह बीत जाने के बाद भी वन विभाग ने इस पर कोई विचार नहीं किया, तब गांव के लोगों ने संगठन के कार्यकर्ताओं के साथ आर-पार की लड़ाई लड़ने का निश्चय किया। यहां तक कि वनवासियों ने जिला वन अधिकारी के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन भी किये व सूचना के अधिकार के तहत दूसरी अपील भी की, जिसमें साफ-साफ लिखा था कि सूचना के अधिकार के तहत आवेदन देने के 90 दिन बाद भी जमीन से संबंधित कोई जानकारी नहीं दी गई। यदि तय समय सीमा में हमें जमीन नहीं दी गई तब हम अदालत जाने पर मजबूर होंगे। इस आवेदन से वन विभाग के मुख्यालय में हड़कंप मच गया व अधिकारियों ने जमीन के कागजात उपलब्ध कराने के लिये एक माह का समय मांगा। एक माह पूरा होने से पहले ही प्रत्येक परिवार को 7 एकड़ जमीन अधिकृत कागजों के साथ दी गई। अब प्रत्येक वनवासी जो 1970 से पहले यहां रह रहा था अपनी जमीन का कानूनी मालिक बन चुका था व पान्यांबाड़ा अब एक अधिकृत गांव कहलाने लगा यानी देश के बाकी गांवों की तरह यहां के लोग भी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं व इस दिशा में कार्रवाई भी आरंभ हो चुकी है। श्री वासई ने कहा कि गांव में सड़क निर्माण का काम शुरू हो चुका है व कुछ माह में बिजली पहुंचाने का आश्वाासन भी विद्युत विभाग से मिला है।
गांव में कई पुश्तों से रह रहे श्री शिवाजी पाड़वी बताते हैं कि ग्राम समिति के माध्यम से सरकारी विद्यालय खुलवाने का प्रयास भी किया जा रहा है।
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