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हिन्दू संवेदनाएं समझे सरकार

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Aug 25, 2012, 12:00 am IST
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भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र

दिंनाक: 25 Aug 2012 15:03:54

हृदयनारायण दीक्षित

भारत सनातन राष्ट्र। दर्शन-दिग्दर्शन में विश्वगुरु। हिन्दू बहुसंख्या के कारण दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र। यहां सभा और समितियां वैदिक काल में भी थीं। भारत ने ढेर सारे विदेशी हमले झेले, लेकिन भारत की प्रज्ञा जस की तस रही। फिर सातवीं सदी से शुरू हुए विदेशी इस्लामी आक्रांताओं के हमले। उनसे संघर्ष भी हुआ, लेकिन एक बड़े भूभाग पर उनकी सत्ता भी आई। अयोध्या का श्रीराम मंदिर, मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि व काशी की शिवनगरी के मंदिर और सोमनाथ सहित तमाम ध्वंस हुए, लूटमार हुई। मोहम्मद बिन कासिम के पहले भारत में एक भी मुसलमान नहीं था। बलात् मतान्तरण हुए। मुस्लिम आबादी बढ़ी। भारत ने मुसलमानों को गले लगाया। अंग्रेजी सत्ता आई। उससे राष्ट्रव्यापी संघर्ष हुआ। लड़ाई जारी ही थी कि दुर्भाग्य ने नया खेल खेला। 14 अगस्त 1947 तक भारत अखण्ड था। मुस्लिम लीगी राजनीति ने अलगाववाद चलाया। जिन्ना ने मुसलमानों को अलग राष्ट्र बताया। लीग, कांग्रेस व अंग्रेजी सत्ता की साजिश से भारत का एक हिस्सा पाकिस्तान हो गया। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, ईश्वरवादी, भौतिकवादी सबके सब पाकिस्तानी हो गये। उसी सुबह पाकिस्तान में हिन्दू अल्पसंख्यक हो गये। फिर उनकी संख्या घटी। 1951 में पाकिस्तान (बंगलादेश सहित) में हिन्दू 22 प्रतिशत थे। अब साल 2012 में वे पाकिस्तान में 2 प्रतिशत से भी कम रह गये। कहां गये बाकी हिन्दू?

पाकिस्तान के हिन्दू असुरक्षित हैं। उनकी बेटियां उनके सामने उठाई जा रही हैं। बेइज्जत और बलात् मतान्तरित की जा रही हैं। बलात् मतान्तरण की आंधी है। वे चीख रहे हैं। सरकार कोरी बयानबाजी कर रही है। पाक मीडिया ने सही खबरें जारी कीं, लेकिन रहम नहीं हुआ उन पर। उनका अपराध एक ही है कि वे हिन्दू हैं। कट्टरवादी जमातों के लिए वे 'काफिर' हैं। वे बुतपरस्त हैं, सो उन्हें जीने का अधिकार नहीं। भारत के सेकुलर,  मानवाधिकारवादी और मार्क्सवादी इस अंतरराष्ट्रीय पाप पर चुप हैं। पाकिस्तान में हिन्दू और भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक कहे जाते हैं। दोनों देशों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों में अंतर है। भारतीय अल्पसंख्यकों को संविधान में विशेषाधिकार है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संसाधनों पर उनका पहला हक बता चुके हैं। तो भी कट्टरवादी आरोप है कि भारतीय राष्ट्र राज्य उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं करता। लेकिन आंकड़े दूसरी बात कहते हैं। वे हर तरह से समृद्ध हैं, उनकी जनसंख्या भी बढ़ी है। भारत विभाजन के पहले 1941 में जनगणना हुई। हिन्दू 84.44 प्रतिशत थे और मुस्लिम 13.38 प्रतिशत। मुस्लिम आबादी के इसी अनुपात (13.38 प्रतिशत) पर जिन्ना ने अलग मुल्क पाया। भारत विभाजन के बाद अनेक मुसलमानों के पाकिस्तानी भूभाग में रह जाने से 1951 में मुस्लिम आबादी 10.43 प्रतिशत ही रह गयी और हिन्दू 87.24 प्रतिशत। ठीक 50 बरस बाद 2001 में मुस्लिम आबादी फिर से 13.42 प्रतिशत हो गयी। 2011 के आंकड़े अभी आए नहीं। बुनियादी प्रश्न यह है कि 1951 में भारत के 10.43 प्रतिशत मुस्लिम 2001 में 13.42 प्रतिशत हो गये, लेकिन पाकिस्तान में हिन्दू नष्टप्राय: प्रजाति क्यों हो गये?

शर्म–निरपेक्ष है केन्द्र सरकार

क्या पाकिस्तानी हिन्दू मनुष्य नहीं हैं? क्या उन्हें जीवन का मौलिक अधिकार नहीं है? आखिरकार उनका अपराध है क्या? अपनी आस्था के अनुसार उन्हें जीने का अधिकार क्यों नहीं है? भारत की केन्द्र सरकार हिन्दू उत्पीड़न पर शर्म-निरपेक्ष है। विदेश मंत्री ने मुस्कराते हुए चिन्ता व्यक्त की। पाकिस्तानी सरकार ने सदा की तरह उपेक्षाभाव दर्शाया, लेकिन बुनियादी सवाल दूसरे हैं। मसलन, क्या पाकिस्तान में गैरमुसलमान भी अपनी आस्था के अनुसार जी सकते हैं? क्या पाकिस्तान में कोई राज्य व्यवस्था है? क्या वहां कट्टरवादी ही सरकार को निर्देशित नहीं करते? इससे भी बड़ा मूलभूत प्रश्न यह है कि पाकिस्तानी समाज का कट्टरवादी तबका हिन्दुओं पर हमलावर क्यों है?

इस्लामी राजनीतिक आकांक्षा है सारी दुनिया को शरीय-कानून के भीतर लाना। वे गैर मुसलमानों को दो हिस्सों में रखते हैं। पहले वे हैं जिनके पास 'अहले किताब' (दैवी ग्रन्थ) है। दूसरे वे जिनके पास ऐसा दैवी ग्रन्थ नहीं है। यहूदी ईसाई पहले वर्ग में हैं। इस्लामी राज्य इन्हें जजिया (कर) लेकर आंशिक छूट देता है, लेकिन मूर्तिपूजक (हिन्दू) को कोई छूट नहीं होती। इस्लामी शरीय के प्रारम्भिक प्रामाणिक चार भाष्यकार हैं। इनमें से तीन, मलिक इब्नअन्स (715-795 ई.), अशशफी (737-820 ई.) और अहमद बिन हनबल (780-855 ई.) की राय दो टूक है कि मूर्तिपूजकों को मुस्लिम मुल्क में रहने का कोई अधिकार नहीं है। यह भी कि मूर्तिपूजकों को मुस्लिम राज्य में इस्लाम या मौत में से एक को चुनना चाहिए। चौथे भाष्यकार अबू हनीफा (699-766) ने थोड़ी छूट दी। उन्होंने तीसरा विकल्प बताया कि वे जजिया (कर) देकर 'जिम्मी' होकर निम्न स्थिति में रहें। पाकिस्तान के हिन्दू इसी त्रासद स्थिति में हैं।

डा. अम्बेडकर का सुझाव

सिंध के हमलावर मो. बिन कासिम ने कयास लगाया था कि हिन्दुओं की भारी संख्या को बलात् मतान्तरण कराना या मार देना कठिन है। इसलिए उसने यही सिद्धांत चलाया। पाकिस्तानी हिन्दू भी उसी सिद्धांत के मारे हैं। उन्हें कोई नागरिक अधिकार नहीं। उत्सव, त्योहार वे मना नहीं सकते। घर, व्यापार की सुरक्षा व पुत्री की इज्जत बचा नहीं सकते। मतान्तरण ही एक रास्ता है या जान बचाकर भाग जाना। हिन्दू वीजा लेकर भारत आ रहे हैं, लेकिन हिन्दू आगमन पर सरकार का रुख घटिया है। केन्द्र ने कहा है कि वीजा समाप्ति की अवधि पर उन्हें मूल देश लौटना होगा। भारत का विभाजन मजहबी और साम्प्रदायिक था, माना जा रहा था कि बंटवारे के बाद साम्प्रदायिक समस्या का समाधान सदा के लिए हो जाएगा। लेकिन गांधीजी सहित सारा देश बंटवारे के विरुद्ध था। डा. अम्बेडकर में मुस्लिम राजनीतिक आकांक्षाओं की गहरी समझ थी। उन्होंने पाकिस्तान बनाए जाने का समर्थन किया था, लेकिन भारत व प्रस्तावित पाकिस्तान के बीच जनसंख्या की अदला-बदली का सुझाव भी दिया था। महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रकाशित 'डा. बाबा साहब अम्बेडकर-राइटिंग्स एण्ड स्पीचेज' (खण्ड 8, पृष्ठ 369) में 'पाकिस्तान की समस्याएं' शीर्षक वाला अध्याय पठनीय है। जनसंख्या की अदला-बदली के लिए उन्होंने दोनों देशों के प्रतिनिधियों को मिलाकर एक आयोग बनाने का सुझाव दिया था। लिखा था कि आयोग का खर्च दोनों सरकारें उठाएंगी। सुझाव था कि दोनों देशों की सरकारें विशेष साम्प्रदायिक समूहों को मूल देश छोड़ने व उनकी इच्छा वाले देश में जाने की इच्छा के अधिकार को स्वीकार करें। 'देशान्तरण की उनकी स्वतंत्रता' को बाधित करने के लिए दोनों सरकारें कोई कर या असुविधा नहीं पैदा करेंगी। देशान्तरण में बाधा डालने वाले पहले से चले आ रहे सभी कानून और शासनादेश शून्य किए जाने चाहिए। आयोग उनकी अचल सम्पत्ति की बिक्री की व्यवस्था करेगा और चल सम्पत्ति साथ में लाने का प्रबंध।

हिन्दुओं की कसक

डा. अम्बेडकर दूरदर्शी थे। उन्हें वोट की परवाह नहीं थी। उन्होंने जनसंख्या की अदला-बदली को दोनों देशों का हितैषी बताया था। वे भारत व पाकिस्तान का साम्प्रदायिक भविष्य देख रहे थे। पाकिस्तान के हिन्दू अल्पसंख्यक भारत आना चाहते हैं। अधिकृत वीजा लेकर भारत आने वाले हिन्दुओं से भी सीमा पर लिखाया जाता है कि वे भारत में पाकिस्तान की निन्दा नहीं करेंगे। वे अपना दर्द बताते हैं। पाकिस्तान इसे अपनी निन्दा समझता है। आखिरकार पाकिस्तान के हिन्दू भारत क्यों नहीं आ सकते? जो यहां रहना चाहते हैं, भारत उन्हें क्यों स्वीकार नहीं करता? पाकिस्तान के हिन्दू लाचार, बेबस और असहाय हैं। सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वार्ता करे। उनके यहां आने के बारे में सुस्पष्ट नीति बनाए। लोकसभा में यह मसला भाजपा के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उठाया था। मुलायम सिंह ने भी हिन्दू उत्पीड़न पर व्यथा व्यक्त की थी। बीजद के नेता भर्तृहरि ने पाक हिन्दुओं को भारत लाने की बात कही थी। लेकिन केन्द्र शर्म-निरपेक्ष के साथ दायित्व-निरपेक्ष भी है। क्योंकि हिन्दू वोट बैंक नहीं हैं। वे संविधाननिष्ठ हैं। म्यांमार की घटना को लेकर मुस्लिम मुम्बई, लखनऊ, इलाहाबाद और कानपुर में आक्रामक प्रदर्शन कर चुके हैं। शान्तिप्रिय हिन्दुओं ने भारत में ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की। सरकार भारत के करोड़ों हिन्दुओं की सहिष्णुता, संविधाननिष्ठा की परीक्षा न ले। हिन्दू संवेदनाएं समझने में ही सरकार और राष्ट्र का हित है।

आखिरकार पाकिस्तान के हिन्दू भारत क्यों नहीं आ सकते? जो यहां रहना चाहते हैं, भारत उन्हें क्यों स्वीकार नहीं करता? पाकिस्तान के हिन्दू लाचार, बेबस और असहाय हैं। सरकार उनके यहां आने के बारे में सुस्पष्ट नीति बनाए। लेकिन केन्द्र शर्म-निरपेक्ष के साथ दायित्व-निरपेक्ष भी है। क्योंकि हिन्दू वोट बैंक नहीं हैं। वे संविधाननिष्ठ हैं।

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