कोयले की कालिख
|
मनमोहन की घोटाला सरकार के मुंह पर लगी
आलोक गोस्वामी
प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग, संसद ठप!
2004-09 के बीच 57 कोयला खदानें बेहद
कम कीमत पर 25 निजी कम्पनियों को दीं।
आवंटन में नीलामी की बजाय कम्पनियों का
मनमाना चयन किया।
देश के खजाने को 1,85,591 करोड़ का नुकसान।
घोटाले के दौरान प्रधानमंत्री के पास था कोयला मंत्रालय।
सीबीआई करेगी आपराधिक पहलुओं की जांच।
बेईमानी स्वीकारने की बजाय सरकार
संसद ठप रखने पर आमादा।
संसद जड़ होने से सरकारी खजाने को
रोजाना 1.25 करोड़ का नुकसान।
आजादी के बाद देश की सबसे भ्रष्ट और नाकारा सरकार का तमगा हासिल कर चुकी मनमोहन सिंह की घोटाला सरकार के काले कारनामों की फेहरिस्त में एक और शर्मनाक कारनामा कोयला खदान आवंटन घोटाले के रूप में दर्ज हुआ है। 17 अगस्त को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की तीन रपटें संसद के पटल पर रखी गईं, उन तीनों ने इस सरकार द्वारा देश के साथ बड़े पैमाने पर किए जा रहे आर्थिक छल को फिर से उजागर कर दिया। कोयला खदान आवंटन, दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे का विकास और एक निजी ऊर्जा परियोजना को कोयला देना-इन पर सी.ए.जी. की रपटों में राष्ट्र को कुल 3.06 लाख करोड़ का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। इनमें से बिना नीलामी के कोयला खदानों के आवंटन से देश के खजाने को 1,85,591 करोड़ का चूना लगने की विस्तृत जानकारी देने वाली सीएजी की रपट से पूरा देश स्तब्ध रह गया है। रपट में कहा गया है कि 2004-09 के बीच सरकार के अधीन 194 कोयला खदानों में से बिना प्रतियोगी बोली के 57 खदानों को 'नॉमिनेशन' के आधार पर आवंटित किए जाने से करीब 25 कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ का मुनाफा होने की उम्मीद है। उल्लेखनीय है कि इस कालावधि में कोयला मंत्रालय का जिम्मा ज्यादातर समय के लिए खुद प्रधानमंत्री के तहत था इसलिए इस पूरे घोटाले में प्रधानमंत्री अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकते।
बेशर्म बयानबाजी
सीएजी की रपट आने के बाद मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने प्रधानमंत्री को सीधे-सीधे कठघरे में खड़ा करते हुए उनसे इस्तीफे की मांग की और संसद के दोनों सदनों में घोटाले की ऐसी गूंज मची कि, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, लगातार चार दिन संसद ठप रही। प्रधानमंत्री जहां खुद को निर्दोष बता रहे हैं वहीं सोनिया पार्टी के कपिल सिब्बल, खुर्शीद आलम और राजीव शुक्ला जैसे सभी सिपहसालार सीएजी की रपट को 'उथली' मानकर उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। हद तो यह है कि खुद प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री नारायणसामी सीएजी पर ही अंगुली उठाते हुए कह रहे हैं कि वह अपने संवैधानिक अधिदेश से बाहर जा रही है। सरकार की तरफ से टालमटोल के हथियार के तौर पर संसद में बहस कराने का जुमला उछाला गया, जिसका भाजपा ने दो टूक जवाब दिया कि मनमोहन सिंह के इस्तीफे के अलावा कुछ भी मंजूर नहीं किया जाएगा। बहरहाल, संसद ठप है, देश स्तब्ध है, घोटाला सरकार कन्नियां काट रही है और चिरपरिचित बेशर्म बयान दे रही है।
वैसे 2010 से सीएजी इस सरकार के एक के बाद एक घोटाले उजागर करती आ रही है। दूरसंचार, तेल एवं गैस, राष्ट्रमंडल खेल जैसे बड़े घोटालों की पोल खुलने के बाद भी सरकार उनका ठीकरा किसी सहयोगी दल के मंत्री या किसी नौकरशाह के मत्थे मढ़कर कुर्सी से चिपकी रही है। 1.76 लाख करोड़ के टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाले को भी पीछे छोड़ गए इस ताजातरीन कोयला खदान आवंटन घोटाले में प्रतियोगी बोली के आधार पर नीलामी की बजाय कुछ चुनिंदा निजी कंपनियों को खनन के लिए खदानें सौंपकर देश के खजाने को 1.86 लाख करोड़ की चपत लगने के पीछे आखिर वजह क्या है? कायदा क्या है? उस कायदे का पालन क्यों नहीं होता? क्या प्रधानमंत्री अपने अधीन विभाग की कारगुजारी से खुद को अलग बता सकते हैं? ये वे सवाल हैं जिनसे सरकार बच रही है और जिनके जवाबों में देश की जनता की जेब पर डाका डालने की इस सरकार की मंशा की असलियत छुपी है।
कायदे से दूरी क्यों?
1976 में कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) संशोधन कानून बनने के बाद देश की सभी कोयला खदानों का स्वामित्व कोल इंडिया लि.के हाथ में आ गया था। वही इन खदानों से इस बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन को निकालने या निकलवाने की जिम्मेदार रही है। वैसे 1993 तक कोयला खदानों के आवंटन की कोई खास कसौटी नहीं थी। 1993 के बाद से निजी कंपनियों को आवंटन किया जाने लगा। कोयला खदानों का निजी कंपनियों को आवंटन करने के लिए 2004 में प्रतियोगी बोली प्रक्रिया का प्रस्ताव पेश किया गया था। लेकिन आज तक उस प्रक्रिया को अमल में लाने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई। कारण साफ है कि इस सरकार ने औने-पौने दामों में चहेती निजी कंपनियों को खदान सौंपकर उनसे मुनाफा कमाने की ओछी सोच पर ही चलना बेहतर समझा। लिहाजा कुल आवंटित 194 खदानों में से 57 खदानें 25 निजी कंपनियों के हवाले कर दी गईं, जिनमें मुख्य हैं-एस्सार पॉवर, हिंडालको, टाटा स्टील, टाटा पॉवर और जिंदल स्टील एंड पावर। अगर प्रतियोगी बोली की प्रक्रिया अपनाई जाती तो देश को इस आवंटन से कहीं ज्यादा आर्थिक लाभ मिलता। रपट में सीएजी का मत है कि सस्ते कोयले का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचे, इसके लिए कड़े नियमन और निगरानी तंत्र की जरूरत है। खबर है कि सी.बी.आई. पूरे प्रकरण में आपराधिक पहलुओं की जांच करेगी।
सीएजी रपट को सरकार तब तक 'अधूरी' मान रही है जब तक कि संसद की लोक लेखा समिति उसकी पड़ताल नहीं कर लेती। लेकिन प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के तीखे तेवरों को देखते हुए सरकार किसी तरह इस मुद्दे को बहस के रास्ते ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश करती दिख रही है। दिलचस्प तथ्य यह है कि अगर निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी संज्ञान में लिया जाता तो कोयला खदान आवंटन से देश को दस लाख करोड़ का नुकसान होने की आशंका जताई जा रही थी। रपट के अनुसार, 1.86 लाख करोड़ के नुकसान से बचा या उसे कम किया जा सकता था बशर्ते 2006 तक कोयला खदानों की नीलामी की प्रक्रिया अमल में आ जाती। लेकिन देश के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन की बंदरबांट से राजस्व को होने वाले बड़े भारी आर्थिक नुकसान से बेखबर सरकार और उसके अगुआ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अगर देश के प्रति इतने जवाबदेह होते तो पहले के वे तमाम घोटाले न हुए होते जो इस देश की अर्थव्यवस्था की चूलें हिला रहे हैं। पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की टिप्पणी गौर करने लायक है कि यह सरकार देश पर बोझ बन गई है। यह देश की साख पर बट्टा लगा रही है।
घिर गई सरकार
लोकसभा और राज्यसभा में भाजपा ने रणनीतिक तरीके से सरकार को घेरा है तो उधर संप्रग के घटक दल प्रधानमंत्री के इस्तीफे की बजाय बहस कराने के सोनिया गांधी के मौन समर्थित फैसले की रट लगाए हैं। संसद न चलने से हुए करोड़ों के नुकसान की उस सरकार को रत्तीभर परवाह नहीं है जो अपने ही गलत फैसलों और मंत्रियों के भ्रष्टाचार के चलते हजारों करोड़ के घोटालों के बावजूद सत्ता में जमी है और 10, जनपथ से संचालित होकर 'युवराज' के गुणगान में खोई रहती है। वैसे इस पूरे परिदृश्य में 'युवराज' की कोई टिप्पणी न सुनाई देना भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। शायद आलाकमान समझ चुकी है कि जहां-जहां और जिस-जिस मुद्दे पर 'युवराज' ने बयान दिया है, वहां-वहां, उस-उस मुद्दे पर उनकी किरकिरी हुई है। बड़बोले खुर्शीद और सिब्बल के अलावा संसद ठप रखने की घोर असंसदीय सोच वाले संसदीय मामलों के राज्यमंत्री राजीव शुक्ला जैसों को आगे करके सोनिया पार्टी देश की जनता से मुंह नहीं चुरा सकती। उसे जवाब देना होगा। राजा, मारन, कलमाड़ी थरूर की तरह, भाजपा के अनुसार, प्रधानमंत्री भी इस कोयला आवंटन घोटाले के नैतिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार हैं। उन्हें इस्तीफा देना ही होगा।
टिप्पणियाँ