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राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख कार्यवाहिका सुश्री शांता अक्का
को समिति की नई प्रमुख संचालिका के रूप में चुना गया है। प्रमुख संचालिका का दायित्व अभी तक सुश्री प्रमिला ताई मेढ़े के पास था। साथ ही प्रमुख कार्यवाहिका के रूप में सुश्री अन्नदानम सीता को चुना गया है। सुश्री सीता अभी तक दक्षिण-मध्य क्षेत्र की प्रचारिका का दायित्व निर्वहन कर रही थीं। दोनों प्रमुख दायित्वों की घोषणा गत दिनों नागपुर में संपन्न हुई राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय कार्यकारिणी तथा प्रतिनिधि सभा की अर्धवार्षिक बैठक के दौरान की गई।
5 फरवरी, 1952 को बंगलूरु में जन्मीं सुश्री शांता अक्का ने 1966 में समिति में प्रवेश किया। गणित में एम.एस.सी. तथा एम.एड. करने के बाद बंगलूरू के भारतीय विद्या भवन के जूनियर कालेज में अध्यापन किया और 1995 में स्वेच्छानिवृति लेकर समिति के कार्य में जुट गईं।
नवनियुक्त प्रमुख कार्यवाहिका सुश्री अन्नदानम सीता बाल्यकाल से ही समिति की सेविका हैं। सुश्री सीता ने बी.एस.सी., बी.एड. करने के बाद 1993 से समिति की प्रचारिका के रूप में कार्य प्रारम्भ किया।
प्रमुख संचालिका के दायित्व ग्रहण के पश्चात पत्रकारों से बातचीत करते हुए सुश्री शांता अक्का ने सबके मार्गदर्शन तथा सहयोग से समिति के कार्य को आगे ले जाने का संकल्प दोहराया। उन्होंने कहा कि समिति का कार्य समाज के संगठन का कार्य है। हिन्दू समाज की शक्ति को बढ़ाने की आज बहुत आवश्यकता है। असम में घटित हिंसक घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि असम में जो हो रहा है वह राक्षसी संस्कृति का परिचायक है। जिन बंगलादेशी घुसपैठियों के कारण यह हिंसाचार हुआ है उनके खिलाफ सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।
बैठक में समिति ने असम की स्थिति पर प्रस्ताव भी पारित किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि असम की परिस्थिति देश की एकता एवं अखंडता के लिए एक गंभीर चुनौती है। असम में बंगलादेशी घुसपैठियों ने जो हिंसा का अमानुष तांडव किया है उसकी कठोरतम शब्दों में समिति भर्त्सना करती है और यह घटना हमारे लिए 'राष्ट्रीय शर्म' की बात है। प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि असम की घटना एक सुनियोजित षड्यंत्र है। इस घटना के बाद सरकार द्वारा कड़े कदम न उठाने के कारण पुणे में उत्तर पूर्व भारत के नागरिकों पर हमले किए गए और बंगलूरु, हैदराबाद और पुणे से उत्तर पूर्व भारत के लोगों का जो पलायन प्रारम्भ हुआ उससे देश की छवि मलिन हुई है।
प्रस्ताव में समिति ने भारत सरकार से मांग की है कि 1951 के बाद जो बंगलादेशी मुस्लिम भारत में आए हैं उनको बाहर किया जाए। सुषमा पाचपोर
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