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गत 11 अगस्त की दोपहर दक्षिण मुम्बई के आजाद मैदान में एक रैली के बहाने जो हिंसा रची गई उसने देशविरोधी मजहबी मानसिकता को फिर से बेनकाब कर दिया। मजहबी उन्मादियों की भीड़ ने अचानक पुलिस पर इतना जबरदस्त हमला बोला कि कुछ मिनटों में ही लगभग 70 वाहनों में आग लगा दी गई। बेस्ट की 50 से अधिक बसों को नुकसान पहुंचाया गया। इस सब में लगभग 75 लोग जख्मी हुए, जिनमें 45 पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। गोलीबारी में दो युवकों की मौत हो गयी। जख्मी लोगों में पुलिस के जवानों के साथ-साथ बड़ी संख्या में पत्रकार भी थे। जलाए गए वाहनों में प्रसार माध्यमों के वाहनों की बड़ी संख्या थी।
क्या कारण था भीड़ के इतनी बेकाबू होने का? पुलिस को इस घटना का थोड़ा भी अंदाजा पहले क्यों नहीं हुआ? अगर हुआ था तो पुलिस ने उससे निपटने के लिए क्या तैयारी की थी? क्या पुलिसबल के राजनीतिकरण का इसमें कोई हाथ नहीं है? इस सभा को इजाजत देने का हुक्म क्या पुलिस के आला अफसरों ने दिया था या ऐसा करने के लिए उन पर किसी मंत्री ने दबाव डाला था? दरअसल इन सवालों के जवाब में ही इस घटना की गंभीरता छुपी है।
सोची–समझी साजिश
आजाद मैदान की हिंसा और आगजनी केवल 'और एक' हिंसाचार की घटना नहीं थी। यह एक सोची-समझी साजिश थी। 'हम इस देश के कानून, पुलिस, प्रशासन को घुटनों पर झुकाने को मजबूर कर सकते हैं', मजहबी उन्मादियों ने यह जताने का प्रयत्न किया था।
इस पूरे घटनाक्रम के पीछे क्या था, यह जानने के लिए हमें इस घटना की पृष्ठभूमी को समझ लेना जरूरी है। पिछले कुछ महीनों से म्यांमार तथा असम में अवैध घुसपैठियों के साथ स्थानीय नागरिकों की जबरदस्त टकराहट हुई है। कई जगहों पर अब भी हिंसक झड़पें हो रही हैं। इसमें दोनों पक्षों का बेहद नुकसान हुआ है। म्यांमार तथा असम, दोनों जगहों पर घुसपैठिए बंगलादेशी मुसलमान हैं। एक झुंड की तरह ये घुसपैठिये भारत तथा म्यांमार में प्रवेश करते हैं और देखते-देखते पूरे प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों में फैल जाते हैं। यह घुसपैठ इतनी बड़ी संख्या में है कि म्यांमारी जनता तथा असम के बोडो इलाके की स्थानीय जनता के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में घुसपैठियों के खिलाफ तीखा आंदोलन होना स्वाभाविक ही था।
यह सब म्यांमार तथा असम तक सीमित था। पर अचानक देशभर के मुसलमानों में रमजान के महीने में एक संदेश प्रसारित होने लगा- 'हमारे मुसलमान भाई संकट में हैं। उसके खिलाफ इकट्ठे हो जाओ'। इसी भड़काऊ संदेश का प्रकट रूप आजाद मैदान में एक विरोध रैली के आयोजन में दिखा। पर गुप्तचर सूत्रों ने बताया था कि रैली केवल विरोध रैली नहीं रहेगी। बताया गया कि मुम्बई में जगह-जगह रमजान की नमाज के वक्त आम मुसलमानों को भड़काया जा रहा था, 'कुछ' करने को उकसाया जा रहा था। इस रैली के लिए जो आवेदन पुलिस को दिया गया था उसमें केवल एक हजार लोगों के लिए अनुमति मांगी गयी थी, पर कई हजार की भीड़ जुटाने का योजनाबद्ध प्रयास पूरे मुम्बई शहर में हर मुस्लिम इलाके में हो रहा था। इस रैली के लिए लगभग 20 हजार लोग इकट्ठे हुए थे। गौरतलब है कि इसमें 80 प्रतिशत से ज्यादा 20 साल से कम उम्र के युवक थे।
दुस्साहस की पराकाष्ठा
आजाद मैदान मुम्बई के सीएसटी रेलवे स्टेशन के ठीक सामने है। लोकल ट्रेनों से इस रैली के लिए आते समय इन युवकों ने अपने जिहादी तेवरों का खुलेआम प्रदर्शन किया। इन युवकों का यह जिहादी उन्माद इतना तीखा था कि मध्य तथा हार्बर रेलवे के अनेक स्टेशनों पर उसकी वीभत्स तस्वीर पेश की गयी। उनके साथ सफर करने वाले आम मुम्बईवासी इससे सहमे थे, डरे थे। जैसे ही मुस्लिम युवकों के जत्थे आजाद मैदान में आने लगे वहां का माहौल तेजी से बदलने लगा। मैदान में मंच से जहर उगला जा रहा था। उत्तेजक भाषण दिये जा रहे थे। असम की घटना को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा था। मुस्लिम युवकों की फौज पूरी तैयारी से आयी थी। देखते ही देखते इन युवकों ने पुलिस पर हमला बोल दिया। हाथ में हथियार, हथौड़े, पेट्रोल आदि लेकर वे पुलिस की गाड़ियों को आग लगाने लगे। चंद मिनटों में आजाद मैदान का इलाका आगजनी, पत्थरबाजी और हिंसा का केन्द्र बन गया। मुम्बई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त कृष्ण प्रकाश इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मंच पर उपस्थित थे। वे खुद भड़काऊ भाषण सुन रहे थे। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए हवा में गोलियां चलाईं, पर भीड़ पर उसका कोई असर नहीं हुआ। हैरानी की बात तो यह है कि कुछ युवक योजनाबद्ध तरीके से आजाद मैदान से 2 किमी. दूर हुतात्मा चौक पर अमर जवान ज्योति को ध्वस्त करने पहुंच गए। उन्होंने उसका ऐसा अपमान किया कि शायद ही कोई देशभक्त नागरिक उस दृश्य पर तिलमिलाए बिना रह पाएगा। सब अखबारों में उन देशविरोधी मुस्लिम युवकों की साफ तस्वीरें छपी हैं, जिन्हें देखकर उन्हें पकड़ना मुश्किल नहीं है। क्या मुम्बई पुलिस करोड़ों देशभक्तों की इस मांग को जल्दी से जल्दी पूरा करेगी?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह देश की संप्रभुता, पुलिस एवं प्रशासन को एक खुली चुनौती नहीं थी? 'अगर हम चाहें तो पुलिस पर भी हमला बोल सकते हैं, उनके हथियार छीन सकते हैं, उनके वाहन जला सकते हैं, मीडियाकर्मियों को भयभीत कर सकते हैं, दिनदहाड़े लोकल ट्रेनों में हॉकी स्टिक, छड़ें, तलवारें, हथियार, पेट्रोल, मिट्टी का तेल लेकर भारत विरोधी एवं पाकिस्तान समर्थक नारे लगा सकते हैं।' कट्टरपंथियों का ऐसा भाव चिंताजनक है। मुम्बई पुलिस तथा महाराष्ट्र सरकार को खुली चुनौती देने की साजिश इस जिहादी उन्माद में स्पष्ट रूप से दिख रही थी। पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारी तथा राजनेताओं ने इन जिहादियों को अपनी तरफ से कथित शह दी।
भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर आतंकवादियों की हमेशा नजर रही है। 1992-93 के दंगों से लेकर 26/11 के हमले तक, आतंकवादी गतिविधियों ने मुम्बई की नींव को हिलाने का कई बार प्रयास किया है। पर आजाद मैदान जैसी घटना ने इन आतंकवादी कृत्यों का एक नया पहलू उजागर किया। इस घटना ने दिखाया है कि मुम्बई को नुकसान पहुंचाने के लिए पाकिस्तान से आतंकवादी लाने की बजाय यहां के मुस्लिम युवकों को भड़काकर देशविरोधी हरकत करवाई जा सकती है।
विदेशी ताकतें या घरेलू उन्माद?
गुप्तचर सूत्रों के अनुसार, कुछ विदेशी ताकतें भारत में, खासकर मुम्बई में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की जी-जान से कोशिश कर रही हैं। मुम्बई में गत दिनों दिखा मुस्लिम हिंसाचार एक प्रकार से पानी का तल नापने का प्रयास था। मुसलमान युवक कितने भड़क सकते हैं, उनकी 'तैयारी' कितनी है, इस हिंसा के खेल पर पुलिस, प्रशासन, राजनीतिक दल तथा सामान्य नागरिकों में क्या प्रतिक्रिया होती है, मीडिया इसे किस दृष्टि से देखता है आदि अनेक बातों को जानने के लिए यह एक 'प्रयोग' माना जा सकता है।
ऐसे में सवाल यह खड़ा होता है कि राज्य सरकार इसके बारे में क्या कर रही थी? गठबंधन सरकार में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कोई बयान देते हैं, तो उसे झूठा साबित करने का बीड़ा राष्ट्रवादी कांग्रेस के उपमुख्यमंत्री उठाते हैं, राष्ट्रवादी कांग्रेस का कोई मंत्री कुछ करने की घोषणा करता है, तो कांग्रेसी उसके काम में रुकावट डालने की कोशिश शुरू कर देते हैं। इस राजनीतिक तमाशे में प्रदेश शासनविहीन सा हो गया है। प्रदेश का प्रशासन तथा पुलिस विभाग खोखला हो गया है।
आजाद मैदान में रैली का आयोजन करने वाली रजा अकादमी तथा अन्य संगठनों के प्रमुखों ने इस स्थिति का बारीकी से अध्ययन किया था। इसीलिए सीधे पुलिस को लक्ष्य करने तक उनका हौसला बढ़ गया। भले ही अब 'आजाद मैदान प्रयोग' के तथ्यों पर विचार होगा और आगे की 'रणनीति' बनाई जाएगी, लेकिन सवाल यह है कि इससे जो देशविरोधी मानसिकता का घिनौना रूप फिर से प्रकट हुआ है उसके बारे में कोई ठोस कार्रवाई करने को यह सरकार कब चेतेगी?
पुलिस अफसरों की मिलीभगत?
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि दंगे के दौरान एक हवलदार ने पुलिस पर पथराव करने और वाहनों को जलाने की कोशिश करने वाले दो उन्मादियों को पकड़ लिया था। दोनों को घसीटते हुए वह पुलिस वाहन की तरफ आ रहा था। इतने में उसके सामने एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आया और उसने उस हवलदार को डांटा- 'क्यों पकड़ लाया दोनों को? छोड़ दे उन्हें!' उस अफसर ने आदेश दिया। बेचारा हवलदार क्या करता, गुस्सा पी गया और उन दो दंगाइयों को उसने छोड़ दिया। अफसर को सलाम मारकर वह पुलिस वाहन में जा बैठा। 45 पुलिसकर्मियों को गंभीर रूप से घायल करने वाले और महिला सिपाहियों से बदतमीजी करने वाले दंगाइयों को छोड़ने का हुक्म अफसर ही दे तो सामान्य हवलदार तथा जवान न कैसे कर सकते हैं?
फिर उभरा मीडिया का सेकुलरपन
इस घटना ने मीडिया के पक्षपाती व्यवहार को भी पूरी तरह से उजागर कर दिया। घटना का वर्णन करते हुए मीडिया 'दंगे के पीछे मुसलमान' बोलने से कतराता रहा। यहां तक कि रैली का आयोजन रजा अकादमी ने किया था, यह भी बताने से मीडिया बचता रहा, क्योंकि इस नाम से, दंगा कौन कर रहा था, यह बात स्पष्ट हो जाती। आजाद मैदान हिंसा, आगजनी, पुलिस पर हमला, बस ऐसी बातें बोली व लिखी जा रही थीं। कुछ दिन पहले पुणे में हुए बम धमाकों के तुरंत बाद उसके पीछे 'हिन्दू आतंकवादी' गुटों का हाथ होने की आशंका जताने का दुस्साहस दिखाने वाला मीडिया आजाद मैदान घटना के पीछे असल दोषी जिहादी मुसलमानों का नाम लेने से क्यों बचता रहा? हैरानी है कि इसी घटना में मारे गये एक युवक के परिवारजनों को कितना दुख पहुंचा है, उस पर टेलीविजन चैनलों पर विस्तार से बताया/दिखाया जा रहा था।
'शहीदों का अपमान करने वाले जिहादी को फौरन गिरफ्तार करो'
उत्तर–पश्चिम मुम्बई के भाजपा नेता और वार्ड क्रमांक 63 से पार्षद दिलीप पटेल ने 12 अगस्त को राज्य के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और मुम्बई के पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर आजाद मैदान से 2 किमी. दूर जाकर पूर्व नियोजित षड्यंत्र के तहत देश के रणबांकुरों के स्मारक को अपमानित करने वाले जिहादी युवकों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि 'हमारे गौरवपूर्ण राष्ट्रीय स्मारक अमर जवान ज्योति को नुकसान पहुंचाने के कृत्य ने हमें बहुत ठेस पहुंचाई है।' पत्र के साथ वह दुष्कृत्य करते युवक का चित्र भी भेजा गया है और मांग की गई है कि इसे तुरंत गिरफ्तार करके पूरा सच सामने लाया जाए।
इसके अलावा भारतीय जनता युवा मोर्चा (उत्तर-पश्चिम मुम्बई) के कार्यकर्ताओं ने भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (गोरेगाव) को पत्र लिखकर मांग की है कि चित्र में जो मुस्लिम युवक शहीद स्मारक का अपमान करता साफ दिख रहा है, उसे अविलम्ब गिरफ्तार किया जाए।
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