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सरकार और प्रशासन ने साधी चुप्पी

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Jul 7, 2012, 12:00 am IST
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सरकार और प्रशासन ने साधी चुप्पी

दिंनाक: 07 Jul 2012 14:45:20

प्रणब की दावत में कैदी विधायक

 लखनऊ से शशि सिंह

किसी कोने से यह सवाल नहीं उठा कि राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए रखी गई दावत में जेल में निरुद्ध दो विधायक कैसे और क्यों पहुंचे जबकि उन्हें केवल सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने का अदालती आदेश था। क्या यह अदालत की अवमानना नहीं है।  'सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का'-कहावत ऐसी ही घटनाओं के लिए तो बनी है।

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह की छाया में चल रही उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार से कानून-व्यवस्था में सुधार और अपराधियों के प्रति कड़ाई की उम्मीद तो की ही नहीं जा सकती है। लेकिन यह तो अपेक्षा की जा सकती है कि कम से कमअपराधियों का हौसला इतना तो नहीं बढ़ जाएगा कि वे राष्ट्रपति चुनाव में संप्रग उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी के लिए मुख्यमंत्री द्वारा रखे गए भोज में बेखौफ पहुंच जाएंगे। यहां यही हुआ।

 देश के पूर्व वित्तमंत्री व कांग्रेस के बुजुर्ग नेता प्रणब मुखर्जी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के दौरे पर आए थे। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर उन्हें यहां सपा और बसपा ने समर्थन दिया हैं, इसी सिलसिले में वह यहां कांग्रेस नेताओं के साथ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव, प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा प्रमुख मायावती से मिले। उनके सम्मान में मुख्यमंत्री ने अपने आवास पर दोपहर का भोज रखा था। उसमें सपा समेत अन्य विधायकों को बुलाया गया था। उस दिन सदन भी चल रहा था। वहां पहुंचे संभ्रांत नेताओं की आंखें उस समय खुलीं कि खलीं रह गई जब उन्होंने देखा कि जेल में बंद दो विधायक भी दावत में पहुंच गए। सपा विधायक विजय मिश्रा और कौमी एकता दल के विधायक मुख्तार अंसारी वहां न केवल पहुंचे, वरन् सभी प्रमुख लोगों से गर्मजोशी से मिले भी।बताते चलें, ये दोनों विधायक प्रदेश के नामी अपराधियों में शामिल हैं। इन दोनों पर हत्या, लूट, डकैती आदि के करीब दो दर्जन मुकदमे विभिन्न अदालतों में लंबित है। दोनों ही इस समय जेल में बंद हैं।

दोनों को अदालती आदेश से सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने की अनुमति मिली हुई थी। ऐसे में नियम यह है कि जेल से ऐसे लोगों को पुलिस हिरासत में लाया जाता है और सदन के गेट पर अंदर जाने के लिए छोड़ दिया जाता है। लेकिन जैसे ही सदन की कार्यवाही समाप्त हो जाती है, उन्हें गेट से निकलते ही पुलिस अपनी हिरासत में ले लेती है और जितनी जल्दी हो सके, संबंधित जेलों में उन्हें पहुंचा दिया जाता है। लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ। मुख्यमंत्री के यहां दोपहर का भोज था। सदन स्थगित था। बिना शासन-प्रशासन की शह पर ऐसा हो ही नहीं सकता लिहाजा ये दोनों विधायक सदन से निकलते ही लाव-लश्कर सहित मुख्यमंत्री के भोज में पहुंच गए। कहीं कोई रोक-टोक नहीं। मीडिया में भी एक-दो समाचार पत्रों को छोड़कर किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

यही नहीं, सपा-बसपा और कांग्रेस की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। किसी कोने से यह सवाल नहीं उठा कि राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए रखी गई दावत में जेल में निरुद्ध दो विधायक कैसे और क्यों पहुंचे जबकि उन्हें केवल सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने का अदालती आदेश था। क्या यह अदालत की अवमानना नहीं है। क्या यह कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में कानून का इकबाल काम कर रहा है। बिल्कुल नहीं। मुलायम सिंह की छाया में चल रही सरकार से ऐसी अपेक्षा भी नहीं की जा सकती है। मुलायम सिंह नब्बे के दशक में जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो एक बार अल्पमत में आ गए थे। तब उन्हीं की पार्टी के धनीराम वर्मा विधानसभा अध्यक्ष थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश की खुटहन विधानसभा से सपा विधायक थे उमाकांत यादव। हत्या व अन्य अपराधों के एक दर्जन से अधिक मुकदमे उन पर अब भी चल रहे हैं। उन्होंने उस समय शाहगंज रेलवे स्टेशन पर अपने गनर की स्टेनगन से दो लोगों को दिनदहाड़े भून दिया था। वह फरार चल रहे थे। पुलिस कथित तौर पर उन्हें तलाश कर रही थी। उसे वह मिल नहीं रहे थे। जिस दिन बहुमत का परीक्षण होना था, उमाकांत यादव सदन के भीतर अचानक दाखिल हुए। सपा के समर्थन में वोट दिया और सदन खत्म होते ही फिर गायब हो गए। तब भी सवाल उठाया गया था और शासन-प्रशासन की ओर से कोई कारर्वाई नहीं की गई। 'सैंया भये कोतवाल, अब डर काहे का'-कहावत ऐसी ही घटनाओं के लिए तो बनी है।

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