गिरफ्तार 5 पाकिस्तानियों के बैंक अकाउंट भी, पैन कार्ड भी
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पश्चिम बंगाल/ बासुदेब पाल
इंडियन मुजाहिद्दीन कोलकाता में अड्डा बनाकर राज्य में किसी बड़े हमले को अंजाम देने की योजना बना रहा है। बंगाल पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स यह सूचना मिलने पर कोलकाता के मुस्लिमबहुल मेटियब्रुज, पार्क सर्कस, तिलजला, तापेसिया एवं खिदिरपुर में पैनी दृष्टि गड़ाए हुए है। कोलकाता के बाहर बैरकपुर के नीलगंज, टीटागढ़, जगद्दल एवं हुगली जिले के सेवड़ाफली, फुरफुरा शरीफ की भी निगरानी कर रही है।
8 अप्रैल को मेटियाब्रुज के लोहा गली में बम बनाते समय एक विस्फोट हुआ था। उसमें दो लोग मारे गये थे। इस विस्फोट से 10 फुट लम्बी और 8 फुट चौड़ी एक दीवार पूरी तरह ढह गयी थी। जांच में घातक आईईडी का इस्तेमाल करने का प्रमाण मिला है। फोरेंसिक विभाग की रपट के बाद गुजरात पुलिस का एक दल भी मेटियाब्रुज में जांच करके गया। गुजरात पुलिस ने 2010 में विस्फोटक के साथ एक युवक पकड़ा था, लेकिन हावड़ा स्टेशन पर भीड़-भाड़ का फायदा उठाकर वह पुलिस को चकमा देकर भाग गया। उससे बरामद विस्फोटक की जांच के बाद पता चला था कि वह साधारण आईईडी से काफी खतरनाक है। उसकी विस्फोटक क्षमता कई गुना अधिक है। हावड़ा में हाल ही में काफी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ टीएनटी भी बरामद हुआ। हावड़ा रेलवे स्टेशन पर विस्फोटक का मिलना, गुजरात पुलिस के हाथों विस्फोटक पदार्थ लाने वाले का भाग जाना, मेटियाब्रुज की लोहा गली में बम विस्फोट, उसमें आईईडी का इस्तेमाल और खुफिया विभाग द्वारा इंडियन मुजाहिद्दीन के तेजी से सक्रिय होने के समाचार ने कोलकाता पुलिस और उसके स्पेशल टास्क फोर्स को चिंता में डाल दिया है। स्पेशल टास्क फोर्स के संयुक्त आयुक्त ने यह सारी रपट केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी है और पुलिस बल को चौकन्ना रहने का निर्देश दिया है।
गिरफ्तार 5 पाकिस्तानियों के बैंक अकाउंट भी, पैन कार्ड भी
पाकिस्तानियों का निवास प्रमाण पत्र कैसे बना?
श्पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के मुस्लिमबहुल टीटागढ़ में पिछले एक साल से चोरी-छिपे रह रहे पांच पाकिस्तानियों को हुगली जिले के खुफिया विभाग ने धर दबोचा और स्थानीय पुलिस के सुपुर्द कर दिया। हुगली जिले की श्रीरामपुर पुलिस अब विस्तार से छानबीन कर रही है कि इनके छिपकर रहने के पीछे का राज क्या है? इनके तार किसी आपराधिक या आतंकी गिरोह से जुड़े हैं या नहीं?
पुलिस सूत्रों के अनुसार वीसा की अवधि खत्म हो जाने के बाद इन लोगों ने अपने पासपोर्ट जला दिए और स्थानीय मुस्लिम पार्षद की सहायता से निवासी प्रमाणपत्र बनवा लिए और भारतीय बनकर रहने लगे। इसी निवासी प्रमाणपत्र के आधार पर इन्होंने बैंक में खाता भी खोल लिया और 'पैन कार्ड' भी बनवा लिया। खुफिया जांच एजेंसी द्वारा पकड़े गये इन पाकिस्तानियों के नाम हैं- नवाब खान (परिवार का प्रमुख, 63 वर्ष), साहेजान (पत्नी, 58 वर्ष), आमीर खान (पुत्र, 24 वर्ष), दो पुत्रिया- इसरत (32 वर्ष) एवं आजरा खान (10 वर्ष)। इस परिवार ने 14 अप्रैल, 2011 को बाघा सीमा से भारत में प्रवेश किया था। श्रीरामपुर के निकट रिसड़ा के अबुल कलाम आजाद मार्ग स्थित एक मकान का परिचय देकर यह परिवार भारत आया था। इनके वीसा की समय सीमा 14 मई, 2011 को समाप्त हो गयी। फिर ये टीटागढ़ चले गये। यहां स्थानीय पार्षद (जो कि एक मुस्लिम महिला है एवं तृणमूल कांग्रेस की सदस्य है) से 16 जून, 2011 को निवास प्रमाण पत्र बनवा लिया और भारतीय बनकर रहने लगे। इस निवास प्रमाण पत्र के आधार पर 6 अगस्त, 2011 को 'पैनकार्ड' बनवा लिया और फिर टीटागढ़ के एक राष्ट्रीयकृत बैंक में खाता भी खुलवा लिया।
अब सवाल उठ रहा है कि बिना किसी जांच और जानकारी के स्थानीय पार्षद ने उसे निवास प्रमाण पत्र कैसे दे दिया? टीटागढ़ नगरपालिका के वार्ड नं. 18 की पार्षद के पति नौशाद आलम ने कहा 'काफी किरायेदार मकान मालिक की सिफारिश से प्रमाणपत्र के लिए आते हैं। इस मामले में गलती से ऐसा हो गया।'
पुलिस और खुफिया सूत्रों के अनुसार भारत में प्रवेश करते समय इन पाकिस्तानियों का नाम 'फारनर्स एक्ट' के अन्तर्गत दर्ज हो गया था। वीसा अवधि समाप्त होने के बाद जब ये वापस नहीं गये तो खुफिया विभाग ने जांच शुरू की। तब पता चला कि ये लोग टीटागढ़ में काफी दिनों से भारतीय बनकर रह रहे हैं। पकड़े जाने के बाद इन लोगों ने बताया कि उनके जैसे कई पाकिस्तानी पहले से ही वहां रहते हैं। पुलिस उनके बयान की सचाई का पता लगाने का प्रयास कर रही है।
इंडियन मुजाहिद्दीन की बढ़ती सक्रियता
पश्चिम बंगाल/ बासुदेब पाल
इंडियन मुजाहिद्दीन कोलकाता में अड्डा बनाकर राज्य में किसी बड़े हमले को अंजाम देने की योजना बना रहा है। बंगाल पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स यह सूचना मिलने पर कोलकाता के मुस्लिमबहुल मेटियब्रुज, पार्क सर्कस, तिलजला, तापेसिया एवं खिदिरपुर में पैनी दृष्टि गड़ाए हुए है। कोलकाता के बाहर बैरकपुर के नीलगंज, टीटागढ़, जगद्दल एवं हुगली जिले के सेवड़ाफली, फुरफुरा शरीफ की भी निगरानी कर रही है।
8 अप्रैल को मेटियाब्रुज के लोहा गली में बम बनाते समय एक विस्फोट हुआ था। उसमें दो लोग मारे गये थे। इस विस्फोट से 10 फुट लम्बी और 8 फुट चौड़ी एक दीवार पूरी तरह ढह गयी थी। जांच में घातक आईईडी का इस्तेमाल करने का प्रमाण मिला है। फोरेंसिक विभाग की रपट के बाद गुजरात पुलिस का एक दल भी मेटियाब्रुज में जांच करके गया। गुजरात पुलिस ने 2010 में विस्फोटक के साथ एक युवक पकड़ा था, लेकिन हावड़ा स्टेशन पर भीड़-भाड़ का फायदा उठाकर वह पुलिस को चकमा देकर भाग गया। उससे बरामद विस्फोटक की जांच के बाद पता चला था कि वह साधारण आईईडी से काफी खतरनाक है। उसकी विस्फोटक क्षमता कई गुना अधिक है। हावड़ा में हाल ही में काफी मात्रा में विस्फोटक पदार्थ टीएनटी भी बरामद हुआ। हावड़ा रेलवे स्टेशन पर विस्फोटक का मिलना, गुजरात पुलिस के हाथों विस्फोटक पदार्थ लाने वाले का भाग जाना, मेटियाब्रुज की लोहा गली में बम विस्फोट, उसमें आईईडी का इस्तेमाल और खुफिया विभाग द्वारा इंडियन मुजाहिद्दीन के तेजी से सक्रिय होने के समाचार ने कोलकाता पुलिस और उसके स्पेशल टास्क फोर्स को चिंता में डाल दिया है। स्पेशल टास्क फोर्स के संयुक्त आयुक्त ने यह सारी रपट केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी है और पुलिस बल को चौकन्ना रहने का निर्देश दिया है।
गिरफ्तार 5 पाकिस्तानियों के बैंक अकाउंट भी, पैन कार्ड भी
पाकिस्तानियों का निवास प्रमाण पत्र कैसे बना?
श्पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले के मुस्लिमबहुल टीटागढ़ में पिछले एक साल से चोरी-छिपे रह रहे पांच पाकिस्तानियों को हुगली जिले के खुफिया विभाग ने धर दबोचा और स्थानीय पुलिस के सुपुर्द कर दिया। हुगली जिले की श्रीरामपुर पुलिस अब विस्तार से छानबीन कर रही है कि इनके छिपकर रहने के पीछे का राज क्या है? इनके तार किसी आपराधिक या आतंकी गिरोह से जुड़े हैं या नहीं?
पुलिस सूत्रों के अनुसार वीसा की अवधि खत्म हो जाने के बाद इन लोगों ने अपने पासपोर्ट जला दिए और स्थानीय मुस्लिम पार्षद की सहायता से निवासी प्रमाणपत्र बनवा लिए और भारतीय बनकर रहने लगे। इसी निवासी प्रमाणपत्र के आधार पर इन्होंने बैंक में खाता भी खोल लिया और 'पैन कार्ड' भी बनवा लिया। खुफिया जांच एजेंसी द्वारा पकड़े गये इन पाकिस्तानियों के नाम हैं- नवाब खान (परिवार का प्रमुख, 63 वर्ष), साहेजान (पत्नी, 58 वर्ष), आमीर खान (पुत्र, 24 वर्ष), दो पुत्रिया- इसरत (32 वर्ष) एवं आजरा खान (10 वर्ष)। इस परिवार ने 14 अप्रैल, 2011 को बाघा सीमा से भारत में प्रवेश किया था। श्रीरामपुर के निकट रिसड़ा के अबुल कलाम आजाद मार्ग स्थित एक मकान का परिचय देकर यह परिवार भारत आया था। इनके वीसा की समय सीमा 14 मई, 2011 को समाप्त हो गयी। फिर ये टीटागढ़ चले गये। यहां स्थानीय पार्षद (जो कि एक मुस्लिम महिला है एवं तृणमूल कांग्रेस की सदस्य है) से 16 जून, 2011 को निवास प्रमाण पत्र बनवा लिया और भारतीय बनकर रहने लगे। इस निवास प्रमाण पत्र के आधार पर 6 अगस्त, 2011 को 'पैनकार्ड' बनवा लिया और फिर टीटागढ़ के एक राष्ट्रीयकृत बैंक में खाता भी खुलवा लिया।
अब सवाल उठ रहा है कि बिना किसी जांच और जानकारी के स्थानीय पार्षद ने उसे निवास प्रमाण पत्र कैसे दे दिया? टीटागढ़ नगरपालिका के वार्ड नं. 18 की पार्षद के पति नौशाद आलम ने कहा 'काफी किरायेदार मकान मालिक की सिफारिश से प्रमाणपत्र के लिए आते हैं। इस मामले में गलती से ऐसा हो गया।'
पुलिस और खुफिया सूत्रों के अनुसार भारत में प्रवेश करते समय इन पाकिस्तानियों का नाम 'फारनर्स एक्ट' के अन्तर्गत दर्ज हो गया था। वीसा अवधि समाप्त होने के बाद जब ये वापस नहीं गये तो खुफिया विभाग ने जांच शुरू की। तब पता चला कि ये लोग टीटागढ़ में काफी दिनों से भारतीय बनकर रह रहे हैं। पकड़े जाने के बाद इन लोगों ने बताया कि उनके जैसे कई पाकिस्तानी पहले से ही वहां रहते हैं। पुलिस उनके बयान की सचाई का पता लगाने का प्रयास कर रही है।
नेतृत्वविहीन कांग्रेस का खिसकता जनाधार
कर्नाटक/ वेणुगोपालन
कर्नाटक के राजनीतिक संदर्भ में मीडिया की नजर भाजपा पर है, लेकिन वहां कांग्रेस की स्थिति कितनी चिंताजनक है, यह जानकारी बेहद दिलचस्प है। राज्य कांग्रेस के दिग्गज कांग्रेसी नेता भी यह मानने में संकोच नहीं करते हैं कि पार्टी की जमीन खिसकने की शुरुआत लिंगायत नेता वीरेन्द्र पाटिल को हटाकर एस. बंगारप्पा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद हुई थी। फिर बंगारप्पा को हटाया गया और उनकी जगह पर एम.वीरप्पा मोइली को मुख्यमंत्री बनाया गया। 1990 और 1991 से शुरू हुई कांग्रेस की आंतरिक कलह यहां तक पहुंच गई कि 1994 के चुनाव में उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा। नेतृत्वविहीन कांग्रेस को 224 सीटों वाली विधानसभा में केवल 36 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। यह प्रदेश कांग्रेस के लिए करारा झटका था। तब जनता दल ने एच.ड़ी.देवेगौड़ा के नेतृत्व में सरकार का गठन किया।
जाति की राजनीति
राज्य के पिछड़े और वोक्कालिंगा के साथ ही लिंगायत में बराबर की पकड़ रखने वाली कांग्रेस पिछड़े वर्ग एवं लिंगायत को साथ न रख सकी। यहीं से कांग्रेस का राजनीतिक धरातल कर्नाटक से खिसक गया। कांग्रेस में बंगारप्पा और मोइली को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लगे। मुख्यमंत्री बंगारप्पा पर 'क्लासिक कम्प्यूटर' के मामले में शामिल होने का आरोप लगा, उन पर मुकदमा भी चला, बाद में न्यायालय ने बरी कर दिया। वे उस समय मुख्यमंत्री नहीं थे। जातियों को प्रमुखता मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली के कार्यकाल में दी जाने लगी। उस समय कांग्रेस को समर्थन देने वाला समुदाय वोक्कालिंगा कांग्रेस से छिटक गया। इसी का लाभ देवेगौड़ा को मिला, क्योंकि वे वोक्कालिंगा नेता हैं।
देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद समाजवादी और लिंगायत (नेता नहीं) समुदाय के जे.एच. पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। वोक्कालिंगा देवेगौड़ा और लिंगायत पटेल के बीच वर्चस्व की जो लड़ाई चली, उसी का परिणाम हुआ कि 1999 के आम चुनाव में राज्य में जनता दल तीसरे स्थान पर पहुंच गया और कांग्रेस को फिर सत्ता हासिल हुई। कांग्रेस एस.एम. कृष्णा को आगे कर चुनाव लड़ी और वोक्कालिंगा समुदाय का पूरा समर्थन कांग्रेस को मिला, क्योंकि एस.एम. कृष्णा वोक्कालिंगा समुदाय का प्रतिनिधित्व करते थे। 224 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 135 सीटें मिलीं। यद्यपि 1999 में कांग्रेस को बहुमत मिला परन्तु लिंगायत छिटक कर कांग्रेस से दूर चले गए और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया। शहरी मानी जाने वाली पार्टी भाजपा ने कर्नाटक के उत्तरी हिस्से के ग्रामीण इलाकों में अपना खाता खोला। विधानसभा में भी प्रमुख विपक्षी दल भाजपा बना। कांग्रेस के मुख्यमंत्री कृष्णा के कार्यकाल में गांवों की उपेक्षा की गई, जिसका खामियाजा कांग्रेस को 2004 के आम चुनाव में भुगतना पड़ा। कृष्णा की विकास पुरुष की छवि भी इस चुनाव में काम नहीं आई। आपसी कलह का परिणाम यह रहा कि कांग्रेस केवल 75 सीटों पर सिमट कर रह गई।
भाजपा का बढ़ता प्रभाव
कर्नाटक में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी, उसे 90 सीटें हासिल हुईं। 58 सदस्यों वाले जनता दल (सेकुलर) ने बहुमत से 23 कम सीटें रखने वाली भाजपा को साम्प्रदायिक बताकर उसे समर्थन न करने की घोषणा कर दी। यहां कांग्रेस ने जनता दल (सेकुलर) के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई। राजस्थान मूल के, राज्य के पिछड़े वर्ग में शामिल धरम सिंह को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया, उपमुख्यमंत्री जनता दल के एच.ड़ी.कुमारस्वामी बने। यहीं से कांग्रेस की अपनी पकड़ और भी ढीली होने लगी। कारण यह था कि मुख्यमंत्री तो कांग्रेस के थे लेकिन सरकार की लगाम जनता दल (सेकुलर) के हाथ में थी। यद्यपि गठबंधन की कार्यसूची को लागू करने के लिए समिति भी थी, लेकिन चलती केवल कुमारस्वामी की थी। 20 माह तक गठबंधन की सरकार चलाने के बाद जब कांग्रेस ने कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने का मन नहीं बनाया तो कुमारस्वामी ने भाजपा के साथ सरकार का गठन कर लिया। भाजपा के साथ गठबंधन कर मुख्यमंत्री बनने वाले कुमारस्वामी वोक्कालिंगा समुदाय के नेता बन गए। यही नहीं, कांग्रेस के वोक्कालिगा नेता भी परोक्ष रूप से कुमारस्वामी को ही समर्थन देते रहे।
2008 के चुनाव में भाजपा के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने जनता दल (सेकुलर) के पिछड़े वर्ग (कुरुबा समुदाय) के नेता सिद्धारामय्या को पार्टी में शामिल तो कर लिया परन्तु पार्टी में महत्वपूर्ण पद देने से कतराती रही। अन्तत: उन्हें विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद दिया गया। राज्य कांग्रेस के नेताओं की आपसी कलह ने आलाकमान को इतना भ्रमित कर दिया कि उसे राज्य में एक अध्यक्ष और एक कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की घोषणा करनी पड़ी। फिर भी कांग्रेस की राजनीति जड़ नहीं जमा सकी। कांग्रेसी नेताओं की आपसी कलह का ही परिणाम रहा है कि वह कोई सशक्त जनांदोलन नहीं चला सकी। कांग्रेस की जड़ें कमजोर होने की वजह से मामला यहां तक बढ़ गया है कि 'व्हिप' जारी होने के बाद भी उसके विधायक विधान परिषद के चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार के विरुद्ध मतदान करते हैं। कर्नाटक राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष जी. परमेश्वर अनुसूचित जाति की नुमाइंदगी करते हैं, परन्तु पार्टी के ही केन्द्रीय मंत्री व वरिष्ठ नेता उन्हें अपना अध्यक्ष ही नहीं मानते हैं। कर्नाटक के लिए यह चुनावी साल है, और कांग्रेस के पास (1999 साल की तरह) कोई ऐसा नेता नहीं है जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए। वैसे जनता दल (सेकुलर) से आयातित सिद्धारामय्या अपना दावा तो पेश करते हैं लेकिन पार्टी में पुराने अखाड़ेबाज उनके बारे में एकमत नहीं हैं। वे उन्हें अभी भी बाहरी और आलाकमान द्वारा थोपा हुआ ही मानते हैं। नेतृत्वविहीन कांग्रेस ने भाजपा की सरकार बनने के बाद एक भी उपचुनाव में प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं की है। देखना यह है कि कर्नाटक की राजनीति में केन्द्रीय भूमिका हासिल करने के लिए कांग्रेस आलाकमान कौन-सा जिन्न लेकर आती है।
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