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उर्दू अखबारों ने कोसी दंगे की आड़ में फैलाया जहर

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Jul 7, 2012, 12:00 am IST
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दिंनाक: 07 Jul 2012 14:29:52

 

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के कोसी कलां कस्बे में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उनकी आड़ में अधिकांश उर्दू समाचार पत्रों ने प्रेस काउंसिल के निर्देशों की धज्जियां उड़ाते हुए खुलकर सांप्रदायिक वैमनस्य भड़काने का प्रयास किया, जबकि अंग्रेजी एवं हिन्दी के समाचार पत्रों ने इन दंगों के समाचार प्रकाशित करते हुए प्रेस काउंसिल के निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया और बेहद जिम्मेदारी का व्यवहार किया। इससे पूर्व गोपालगंज और रुद्रपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों के बहाने भी उर्दू समाचार पत्रों ने खुलेआम प्रेस काउंसिल के निर्देशों की धज्जियां उड़ाईं और विभिन्न संप्रदायों के बीच नफरत के बीज बोए थे। लेकिन चूंकि उनके खिलाफ न तो सरकार कोई कार्रवाई करती है और न ही प्रेस काउंसिल ने संज्ञान लेती है, इससे शह पाकर उर्दू समाचार पत्रों ने सारी मर्यादाएं लांघ रखी हैं। यहां हम कोसी दंगे और उर्दू समाचार पत्रों में उनकी खबरों का विश्लेषण प्रकाशित कर रहे हैं जिससे उनके द्वारा किए गए विष–वमन का कुछ अंदाजा लगे। -सं.

रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने अपने 2 जून के अंक में प्रमुख समाचार के रूप में यह समाचार प्रकाशित करते हुए जो शीर्षक दिए, वे कम उत्तेजक नहीं थे। मुख्य शीर्षक था- 'मथुरा के कोसी कलां में फिरकादराना तशदद (सांप्रदायिक हिंसा)। अल्पसंख्यकों के दर्जनों मकान नजर आतिश। कई अपराध की हलाकत। फायरिंग से कई जख्मी। फसादियों ने कई दुकानों, पेट्रोल पंपों और बैंकों की कई ब्रांचों को आग के हवाले किया। मस्जिद सराय शाही पर पथराव। 40 से अधिक व्यक्ति मस्जिद में घिरे।' समाचार पत्र ने इस समाचार के साथ दंगाइयों की भीड़ और लोगों के जलते हुए सामान के चित्र भी छापे।

समाचारपत्र के अनुसार, 'उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में आज दोपहर मस्जिद के बाहर रखे शरबत के टब में एक गैर मुसलमान दुकानदार के हाथ धो लेने की घटना के बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। अल्पसंख्यकों की दुकानों और मकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया।' समाचारपत्र लिखता है- 'मस्जिद के अंदर फंसे एक नमाजी खालिद अली ने फोन पर समाचार पत्र को बताया कि मस्जिद के अंदर 40 नमाजी दोपहर से ही फंसे हुए हैं और दंगाइयों ने मस्जिद को चारों तरफ से घेर रखा है, मस्जिद के आंगन में पत्थरों और शराब की बोतलों का अंबार लगा हुआ है और गोलियां चलाई जा रही हैं। घंटाघर चौक के समीप रहने वाले रईस अहमद ने बताया कि कई घंटों से शहर में जंगलराज कायम है। मुसलमानों के घरों में आग लगायी जा रही है और पुलिस गायब है। मुसलमानों की एक बस्ती को पूरी तरह से फूंक डाला गया है। पुलिस कोई मदद नहीं कर रही बल्कि वह पूरी तरह से लापता है।'

'जमीयते उलेमा के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने डीजीपी, मुलायम सिंह यादव, मथुरा के एसपी और डीएम से बात की और दंगों पर काबू पाने की बात की गई। इसी तरह से शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी मुख्यमंत्री से बातचीत की। उन्होंने कहा कि कई महिलाओं से बलात्कार की भी खबरें हैं। मगर इसके बारे में पुष्टि नहीं हुई।'

दैनिक हमारा समाज (2 जून 2012) ने दंगे से संबंधित तीन चित्र प्रकाशित किए। समाचारपत्र ने खबर पर शीर्षक लगाया- 'मथुरा के मुसलमानों पर टूटा फसादियों का कहर। आधे दर्जन मरे। सैकड़ों दुकानें फूंकीं। ईदगाह को आग लगाई गई। मस्जिद ध्वस्त। यूपी पुलिस तमाशाई। जान बचाने की फरियाद कर रहे हैं मुसलमान। समाचारपत्र ने यह आरोप लगाया कि 'जाटों ने मस्जिद पर फायरिंग की थी जिससे दो मुसलमान नौजवान मारे गए। मुसलमानों की सैकड़ों दुकानों को आग लगा दी गई। पुलिस की मौजूदगी में आग और खून की होली खेली जा रही है। मुसलमानों के मुहल्लों को जलाया जा रहा है। मनीराम बाग के मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र में भी आग लगा दी गई। दंगाई बिना किसी रोक–टोक के मुसलमान मुहल्लों को निशाना बना रहे हैं। घंटाघर वाली मस्जिद और ईदगाह को तबाह कर दिया गया है।'

दैनिक हिंदुस्तान एक्सप्रेस (2 जून, 2012) के अनुसार, 'इन दंगों में दस अल्पसंख्यक मारे गए, जबकि एक अन्य सूत्र के अनुसार, मरने वालों की संख्या 17 है।'

दैनिक सहाफत (2 जून, 2012) के अनुसार, 'कोसी कलां के मुसलमानों पर कयामत टूटी। पांच मुसलमान मारे गए। मस्जिदों में तोड़फोड़। मुसलमानों की दुकानें आग के सुपुर्द। मुसलमान दुश्मनों के घेरे में।' समाचार पत्र ने यह दावा किया कि 'तीन मस्जिदों को ध्वस्त किया गया है और पांच मुसलमान मारे गए हैं। मौलाना अईया करीमी के अनुसार, प्रशासन पूरी तरह से दंगाइयों के साथ मिला हुआ है। मुसलमानों की दुकानों और मकानों पर हमले किए जा रहे हैं।' समाचारपत्र ने यह भी आरोप लगाया है कि 'पीएसी एक वर्ग विशेष का समर्थन कर रही है।'

दैनिक सहाफत ने अपने 3 जून के अंक में दंगे के चार चित्र प्रकाशित किए। मुख्य समाचार का शीर्षक था- 'कोसी कलां में दंगों के बाद दर्जनों मुसलमान नौजवान लापता। मुसलमानों के घरों में तलाशियां, कर्फ्यू जारी।' समाचार पत्रों ने आरोप लगाया कि, 'इन दंगों में बीएसपी के एक सरपंच का हाथ है।' समाचार पत्र ने इस बात की आलोचना की कि 'पुलिस ने अभी तक किसी दंगाई को गिरफ्तार नहीं किया है। पुलिस दंगाइयों का साथ दे रही है और मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं। जो मुस्लिम नेता घटनास्थल का दौरा करने के लिए आए थे उन्हें बाहर ही रोक दिया गया है।' समाचार पत्र ने एक अन्य समाचार छापा जिसका शीर्षक था- 'ये दंगे पूर्व नियोजित थे। दिल्ली के शाही इमाम का कहना है कि दंगे शुरू होते ही दूसरे फिरके के लोग देशी बम और पेट्रोल लेकर अचानक कहां से जमा हो गए, इसकी सरकार को जांच करनी चाहिए।'

रोजनामा राष्ट्रीय सहारा (3 जून) ने चार व्यक्तियों के मारे जाने का दावा किया है। समाचार पत्र ने कहा है कि 'मरने वाले सभी मुसलमान हैं। मिल्ली काउंसिल, जमीयते उलेमा हिंद, जमीयते अहले हदीस ने दोषी अधिकारियों को फौरन निलंबित करने की मांग की है।' इंकलाब 3 जून का शीर्षक था- 'दंगों में लापता होने वाले नौजवानों की अभी कोई खबर नहीं। डर से लोग अपने मकानों से भाग रहे हैं।' समाचार पत्र ने दावा किया है कि 'इन दंगों में चुन-चुन कर मुसलमानों की दुकानों और मकानों को निशाना बनाया गया है।'

हमारा समाज (3 जून) ने मुख्य समाचार के रूप में समाचार प्रकाशित करते हुए उस पर शीर्षक दिया है- 'कोसी में गुजरात के दंगों की याद ताजा। लोग घर छोड़ने पर मजबूर। समाजवादी पार्टी की सरकार ने मुसलमानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया। दर्जनों नौजवान लापता। महमूद मदनी रोक लिए गए।' समाचार पत्र ने दावा किया कि 'मुस्लिम मुहल्लों में लगाई गई आग अब भी जल रही है और उस पर काबू नहीं पाया गया है। मुहल्ला नखासा से दस मुस्लिम नौजवान गायब हैं। मुस्लिम मुहल्लों में हिंदू दंगाइयों ने जमकर लूटपाट की और आग लगाई।' समाचार पत्र ने यह आरोप लगाया कि 'जो मुस्लिम नौजवान गायब हुए हैं उनका पुलिस और सांप्रदायिक तत्वों ने कत्ल कर दिया है।' समाचार पत्र ने यह भी दावा किया कि 'डा. शेख के नर्सिंग होम को जला दिया गया है और ईदगाह रोड वाली दुकान को लूटने के बाद आग लगा दी गई है।'

रोजनामा राष्ट्रीय सहारा (4 जून) ने कहा- 'दंगों में मरने वालों को पांच-पांच लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया गया है जबकि जिले के पुलिस अधीक्षक और जिलाधीश को बदल दिया गया है। सरकार के अनुसार दंगाइयों की गोली से दो व्यक्तियों की मौके पर मौत हो गई, जबकि दो लाशें जली दुकानों से मिली हैं।'(इंडिया पॉलिसी फाउंडेशन)

म्यांमार के मुस्लिम शरणार्थियों को बंगलादेश शरण देने के लिए तैयार नहीं

हिंदुस्तान एक्सप्रेस (13 जून 2012) ने एक समाचार में लिखा कि 'बंगलादेश के सीमा रक्षकों ने म्यांमार के रोहंगिया मुस्लिम शरणार्थियों से भरी हुई तीन नावों को बंगलादेश में दाखिल होने से रोक दिया। इन नावों में 103 व्यक्ति सवार थे। म्यांमार के रखना प्रदेश में बौद्ध धर्म के मानने वालों और मुसलमानों के बीच हुई झड़पों में 17 व्यक्ति मारे जा चुके हैं। इन दंगों के बाद वहां के मुसलमान अपनी जान बचाने के लिए बंगलादेश में दाखिल होने का प्रयास कर रहे हैं। बंगलादेश सरकार ने सीमा रक्षकों को यह निर्देश दिया है कि म्यांमार से आने वाले किसी भी मुसलमान को बंगलादेश में दाखिल न होने दिया जाए। इन रोहंगिया मुसलमानों को म्यांमार में बंगाली कहा जाता है। (आईपीएफ)

जर्मनी में मुस्लिम संगठनों पर पाबंदी

इंकलाब (16 जून 2012) के अनुसार, जर्मनी पुलिस ने सल्फी मुसलमानों की कई आवासीय इमारतों पर छापे मारे। सरकार का आरोप है कि ये मुसलमान सरकार के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। जर्मन गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता के अनुसार, तीन वहाबी संगठनों से संबंधित कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे मारे गए हैं और इस छापेमारी में एक हजार से अधिक पुलिसकर्मियों ने हिस्सा लिया है। सरकार ने यह नहीं बताया कि कितने मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि सल्फी मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे मिल्लत इब्राहिम पर पाबंदी लगा दी गई है। उल्लेखनीय है कि पिछले महीने जर्मनी के एक नगर सोलिंजन में सल्फी मुसलमानों की पुलिस के साथ झड़पें हुई थीं। पुलिस के अनुसार, सल्फी जर्मनी में हिंसा भड़का रहे हैं। मगर सल्फियों के एक प्रवक्ता ने कहा कि वे इस्लाम का प्रचार कर रहे हैं और क्योंकि काफी ईसाई मुस्लिम मजहब स्वीकार कर रहे हैं इसलिए सरकार उनके खिलाफ कार्रवाई कर रही है। जर्मनी के गृहमंत्री रालिफ जैगर ने कहा कि यह संगठन जर्मनी में मुस्लिम शरई कानून लागू करने की मांग कर रहे हैं। इन गुटों को सऊदी अरब से सहायता प्राप्त हो रही है। सरकार को इस बात की सूचना मिली है कि ये वहाबी एवं सल्फी देश में हिंसा फैला सकते हैं इसलिए सरकार उनकी गतिविधियों पर नजर रख रही है। एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि बॉन में हुई एक रैली के दौरान पुलिस और उग्रवादी सल्फियों के बीच सशस्त्र झड़पें हुई थीं, जिनमें 29 जर्मन पुलिस अधिकारी घायल हो गए थे। पुलिस ने इन झड़पों के सिलसिले में 109 सल्फी कट्टरवादी मुसलमानों को गिरफ्तार किया है। सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि अतिवादी मुसलमानों के जिन तीन गुटों पर पाबंदी लगाई गई है उनके अल कायदा से गहरे संबंध हैं। जर्मनी में इन मुसलमानों को उत्पात मचाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। (आईपीएफ)

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