अमरनाथ यात्रा पर राज्यपाल का फरमानअब दर्शन केवल 39 दिनलीगी सोच की सरकार की शह पर घटाई गई अमरनाथ यात्रा की अवधि
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भारत के मुकुट जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर शहर से 125 किमी दूर हिमालय की बफर्ीली चोटियों के बीच 13,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव का अदभुत हिमलिंग बाबा अमरनाथ के नाम से विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह सिर्फ करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में पिरो कर रखने का एक प्रमुख आधार स्तंभ भी है। भारत तो क्या विश्व का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा जहां से हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने न आते हों। इस यात्रा से जहां बाबा के भक्त अपनी मन मांगी मुराद पूरी करते हैं वहीं कश्मीर क्षेत्र में रहने वाली जनता (अधिकांश कश्मीरी मुसलमान) इससे वर्ष भर की अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। इतना ही नहीं, वहां की अर्थव्यवस्था का आधार पर्यटन है जिसको बढ़ावा देने हेतु सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है, किन्तु इस दो महीने की यात्रा से उसे बैठे बिठाये लाखों पर्यटक मिल जाते हैं जिससे बहुत बड़ी राशि राज्य कोष में जमा होती है।
अत्यंत दुर्गम रास्ता, खराब मौसम और आतंकवादियों की धमकियों व हमलों के चलते यात्रा में अनेक बार व्यवधान पड़ता रहा है। अलगाववादियों के इशारों पर चलने वाले राजनेता तथा कुछ विघटनकारी तत्व इस पवित्र यात्रा को समाप्त करने के तरह-तरह के षड्यंत्र रचते रहते हैं। कभी खराब मौसम का बहाना, कभी आतंकवादियों की धमकी, कभी व्यवस्था का प्रश्न तो कभी आस्था पर हमला। बस यूं ही चलता रहता है इसे सीमित दायरे में बांधने या इसे समाप्त करने का कुत्सित प्रयास। गत अनेक वर्षों से इस यात्रा को ज्येष्ठ पूर्णिमा से प्रारंभ कर श्रावण पूर्णिमा (रक्षा बन्धन) के दिन पूर्ण किया जाता रहा है। हर साल बाबा का दर्शन पाने के अभिलाषियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।
गत वर्ष यह आंकड़ा 8 लाख को पार कर गया था। यात्रा का समय चाहे पूरा हो गया था, किन्तु भक्तों का जोश बढ़ता ही जाता था। बाबा के भक्तों का यह आंकड़ा इस बार भी किसी कीर्तिमान से कम नहीं दिख रहा है। इस सबके बावजूद इस वर्ष की यात्रा अवधि को मनमाने तरीके से घटाकर 39 दिन कर दिया गया है, जिसे किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है। इस संदर्भ में विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) द्वारा बुलाई गई प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए विहिप के केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि गत शताब्दी के अन्त में इस यात्रा के दौरान हुए एक हादसे के बाद एक आयोग का गठन किया गया था जिसने अपनी रपट में कहा कि वर्तमान व्यवस्था के हिसाब से वहां एक दिन में 10 हजार से अधिक यात्रियों को दर्शन नहीं कराये जाने चाहिए। साथ ही यात्रियों की सुविधा हेतु समुचित प्रबन्ध भी आवश्यक हैं। इस हिसाब से भी यदि यह यात्रा 39 दिन तक चलती है तो अधिकाधिक 4 लाख भक्त ही दर्शन कर पायेंगे। इससे न सिर्फ 5 लाख से अधिक भक्त बाबा के दर्शन से वंचित रह जाएंगे बल्कि राज्य सरकार व वहां की जनता की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ेगा।
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए विहिप के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा. प्रवीण भाई तोगड़िया ने तीखे शब्दों में पूछा कि जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री यात्रा को पूरे दो महीने रखने को राजी होकर सुरक्षा देने पर सहमत हैं तो राज्यपाल श्री एन.एन. वोहरा क्यों इस यात्रा को डेढ़ माह तक सीमित कर रहे हैं? राज्यपाल के हिन्दू विरोधी रवैये पर उन्होंने कहा कि बाबा अमरनाथ की जमीन भी हमसे छीनी गई थी जिसे हिन्दुओं ने दो माह तक संघर्ष कर वापस लिया। हमने घोषणा कर दी है कि यह यात्रा पूर्व की तरह ज्येष्ठ पूर्णिमा (4 जून, 2012) से ही प्रारंभ होगी, जिसे रोकने का यदि किसी ने प्रयास किया तो हम देश भर में लोकतांत्रिक तरीके से व्यापक आंदोलन चलायेंगे।
इसमें संदेह नहीं कि देश की एकता, अखण्डता, धार्मिक आस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इस यात्रा को प्रोत्साहित किया जाना अत्यंत जरूरी है। वैसे भी, जहां एक ओर हमारी केन्द्र व राज्य सरकारें हर राज्य में जगह-जगह हज यात्रा हेतु हज हाउस बना कर करोड़ों रुपए की हज सब्सिडी दे रही हैं तो क्या हिन्दुओं को अपने ही देश में स्वयं के ही पैसे से, बिना किसी सरकारी सहायता के अपने आराध्य के दर्शनों की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए? दूसरी बात यह कि क्या ईद व क्रिसमस जैसे त्योहारों की तिथि कोई राज्यपाल तय करता है, जो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हिन्दुओं की इस पवित्र यात्रा की तिथि तय कर रहे हैं? हां! श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष के नाते यात्रा के सुचारू रूप से चलने हेतु जो प्रबन्ध आवश्यक हैं, वे उन्हें करने चाहिए, किन्तु यात्रा की अवधि तो संत समाज व हिन्दू संस्थाएं ही तय कर सकती हैं।
यात्रा अवधि घटाने के विरोध में जम्मू में उबाल

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