लोक जीवन में पोखर
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

लोक जीवन में पोखर

by
Jun 2, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

सरोकार

दिंनाक: 02 Jun 2012 14:37:03

सरोकार

  मृदुला सिन्हा

पोखर ग्रामीण एकता की प्रतीक होती है। गांव की सामूहिक संपत्ति। इसलिए पोखर की साफ–सफाई और रख–रखाव पर सभी का ध्यान रहता आया है। पोखर खुदवाने या साफ कराने का काम सभी गांव वाले मिलकर करते आए हैं इसलिए पोखर पर सबका अधिकार होना आवश्यक ही रहा है।

'भइया सराहीले कौन भैया ना

भइया हाटे–बाटे पोखरा खना देहू

चम्पा फूल पीपल लगा देहू ना।'

बहन के जीवन में भाई का बहुत महत्त्व होता है। मेरी दादी कहा करती थीं कि नैहर (मायके) में भाई रहने से मां-बाप के बाद भी नैहर बना रहता है। लड़की का मान नैहर में होता रहता है। लोकगीतों, पर्व-त्योहारों और शादी-ब्याह उपनयन संस्कारों से लेकर भाई के घर गृह प्रवेश में भी बहन की उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है। इन गीतों में बहनें, भाई के वीर रूप की ही कामना करती हैं। भाई से बहन की अपेक्षाएं भी बहुत होती हैं। उपरोक्त पंक्तियों में बहन वैसे भाई की सराहना करती है जो हाट-बाट में पोखर खुदवा दे। उस पोखर के किनारे-किनारे चम्पा फूल और पीपल के पेड़ लगवा दे।

ऐसे ढेर सारे लोकगीत हैं जिनमें पोखर खुदवाने की चर्चा है। साथ ही साथ उसके चारों ओर पर फूल और नीम-पीपल के वृक्ष लगाने का भी वर्णन है। दादी की लोककथाओं में भी पोखर खुदवाए जाते हैं और किनारे-किनारे वृक्ष लगवाए जाते हैं। हमने अपने गांव में भी पोखर के किनारों पर पीपल और नीम के वृक्ष लगे देखे हैं।

हर गांव में पोखर का होना आवश्यक होता था। बड़े गांव के कई टोले हों, तो एक नहीं गांव में कई-कई पोखर होते हैं। पोखर में पानी जमा करना तो आवश्यक होता ही है, पोखर के और भी गुण देखे जाते हैं। पोखर में आदमी के साथ-साथ जानवर और पक्षी भी पानी पीते और नहाते हैं। व्रत-त्योहार भी पोखर के जल में खड़े होकर या पोखर के किनारे किए जाते हैं। पोखर पर स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे श्राद्ध कर्म भी किए जाते हैं। यद्यपि तालाब के रूप में ही पोखर का उपयोग होता है, परंतु लोकजीवन के न जाने कितने रीति-रिवाज पोखर के किनारे होते रहे हैं। पोखर का अपना व्यक्तित्व है।

गांव वालों के सामूहिक श्रम से ही पोखर का निर्माण होता था। वर्ष में एकबार उसकी सफाई भी गांव वाले मिलकर करते थे। सार्वजनिक स्थल होता है पोखर। गांव में छुआछूत भी होता ही था। इसलिए कई पोखर होने पर अलग-अलग जातियों के लिए अलग-अलग पोखर निर्धारित किए जाते थे। जिस गांव में एक ही पोखर हो, वहां घाट अलग कर दिए जाते थे। पोखर में धोबी कपड़े भी धोते थे। इसलिए एक ओर धोबी घाट तो दूसरी ओर जानवरों के नहलाने और पानी पिलाने के घाट बना लिए जाते हैं।

पोखर ग्रामीण एकता का प्रतीक होता है। गांव की सामूहिक संपत्ति। इसलिए पोखर की साफ-सफाई और रख-रखाव पर सभी का ध्यान रहता आया है। पोखर खुदवाने या सफाई का काम सभी गांव वाले मिलकर करते आए हैं इसलिए पोखर पर सबका अधिकार होना आवश्यक ही रहा है। गांव की सामूहिकता बिखरने का प्रभाव पोखर के जीवन पर भी पड़ा है। गांव के राजा-महाराजा, उसके बाद जमींदारों द्वारा पोखर खुदवाए जाते थे। पोखर खुदवाना धर्म का काम माना जाता था। क्योंकि जल प्राणी मात्र को चाहिए और जल का वितरण या जलाशय का निर्माण पुण्य कार्य ही होगा। हमारे यहां पुण्य कार्य उसे ही माना जाता है जिसमें प्राणी मात्र का कल्याण हो।

दादी एक कथा कहा करती थीं। मिथिलांचल के एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण महिला को बेटा हुआ। एक धाय (दलित) महिला ने प्रसूति गृह में उसकी सेवा की। ब्राह्मणी बेटा पाकर बहुत खुश थी। पर धाय को इनाम देने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। उसने धाय से कहा-'इस बेटे को मैं पाल-पोस कर बड़ा करूंगी। इसकी कमाई तुम्हें ही दूंगी।' धाय ने बच्चे को आशीर्वाद दिया।

बचपन से ही वह होनहार दिखने लगा। उसकी बुद्धिमता और मेहनत देखकर गांव के पंडित अपने दरवाजे पर ही अपने बेटे के साथ एक ही लालटेन में बैठाकर पढ़ाने लगे। पंडित जी का बेटा तो पीछे रह गया, गरीब ब्राह्मणी का बेटा पंडित (विद्वान) हो गया। दरभंगा महाराज के यहां अक्सर शास्त्रार्थ होता था। देशभर के पंडित आया करते थे। एक बार अपने गांव के पंडित के साथ वह नौजवान भी गया। वह शास्त्रार्थ में विजयी हुआ। राजा ने उसे मोतियों का हार पहनाया। घर लौटकर उसने अपनी मां को दे दिया। मां ने कहा-'बेटा! यह तुम्हारी पहली कमाई है। इस पर मेरा हक नहीं है। इसे तुम बुढ़िया धाय को दे आओ।' उसने बेटे के जन्म के समय का प्रसंग बताया।

गांव वालों से उस मोतियों के हार की कीमत सुनकर बुढ़िया का चेहरा खिल उठा। वह बोली-'बेटा! इसे बेचकर गांव में एक पोखर खुदवा दो। आदमी तो पानी पिएंगे और नहाएंगे हीं। चिड़िया और माल-जाल के पीने के लिए भी पानी मिलता रहेगा।' गांव वालों ने जब सुना, आश्चर्यचकित रह गए। बुढ़िया को रहने के लिए न घर था न पहनने के लिए पूरे वस्त्र। गांव वालों ने वैसा ही किया। मोतियों का हार बेचकर जो धन आया, उससे पोखर ही खुदवायी गयी। पोखर के किनारे बैठकर बुढ़िया बहुत प्रसन्न होती थी । मनुष्य और जानवर पानी पीते और नहाते थे। बच्चों को नहाते देख उसका मन भीगता रहता था। बुढिया नहीं रही। उस पोखर का नाम गांव वालों ने उस महिला की स्मृति में रख दिया।

राजा-महाराजाओं, जमींदारों और धार्मिक भावना से ओतप्रोत व्यक्तियों के द्वारा गांवों में पोखर खुदवाने के अलावे सामूहिक धन और श्रम से भी पोखर खुदवायी जाती थी। जल से भरे रहते थे तालाब। तालाब गांव और शहर की शोभा भी होते थे।

दादी विसूरती थीं- 'आजादी मिलने के बाद सब बिगड़ गया। अन्य कार्यों की तरह पोखर खुदवाने का दायित्व भी सरकार पर डाल दिया गया है। गांव की सामूहिकता छिन्न-भिन्न हो गई। अपने-अपने आंगन-दरवाजे पर चापाकल (हैंड पाइप) धंसा लिए लोग। पोखर को कौन देखे। सरकार कहीं पोखर खुदवाएगी?'

इन दिनों राज्य सरकार द्वारा पोखर खुदवाने और उसकी सफाई के प्रयास हो रहे हैं। वैशाख-जेष्ठ माह में पोखर खुदवाने के काम में तेजी भी आती है। फिर तो अच्छी बरसात आने पर पानी से भर जाती है पोखर। दादी का दु:ख है-'अब तो गंगा मैया ही सूखने लगीं फिर पोखर की कौन पूछे?'

जल के लिए पोखर तो चाहिए ही चाहिए। प्राणीमात्र के लिए जल ही जीवन जो है। आज पानी के लिए विभिन्न संयंत्रों और बिजली की आवश्यकता होती है। फिर भी जलापूर्ति नहीं हो पाती। ग्रामीण जीवन में पोखर का बड़ा महत्त्व है।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

वैष्णो देवी यात्रा की सुरक्षा में सेंध: बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies