साहित्यिकी
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'नेशनल रीजेनरेशन: द विजन ऑफ स्वामी विवेकानंद एंड द मिशन ऑफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ'
आलोक गोस्वामी
कुछ पुस्तकें दिल को ऐसी भाती हैं कि शुरू से आखिर तक एक ही बार में पढ़ जाने का जी करता है। बीच में रुकावट बर्दाश्त नहीं होती, आद्योपांत पढ़कर एक तृप्ति का अहसास होता है। ऐसी ही एक पुस्तक पढ़ने में आई 'नेशनल रीजेनरेशन…. संघ'। रा.स्व.संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री सूर्यनारायण राव द्वारा संकलित और संपादित इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद के दर्शन से जुड़े अनन्यतम पहलुओं के साथ दिन के उजाले-सा स्पष्ट तादात्म्य बिठाते संघ संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार और द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरुजी के कर्तृत्व का सुन्दर प्रस्तुतिकरण किया गया है। श्री सूर्यनारायण राव उपाख्य सुरुजी को जब-जब सुना है तब-तब उनकी विद्वता, गांभीर्य और भाव प्रवणता भीतर तक छू गई। उनके अध्ययन की गहनता और व्यावहारिक सहजता का अनूठा मेल उनके व्यक्तित्व में झलकता है।
सुरुजी आरम्भ से ही स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन से प्रभावित रहे और उनमें स्वामी जी के बारे में और-और पढ़ने की उत्कंठा बनी रही। संघ में प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक और अ.भा. सेवा प्रमुख के दायित्व निभाते हुए स्वयंसेवकों के प्रेरणास्रोत रहे सुरुजी ने जितना स्वामी जी के विचारों को जाना उतना ही उनका वह विश्वास दृढ़तर होता गया कि स्वामी विवेकानंद के जीवनादर्शों और भारत के भविष्य के प्रति दृष्टि के मेल से भारत और भारतवासियों का जो चित्र उभरता है, वही चित्र रा.स्व.संघ के वैचारिक अधिष्ठान, कार्य और उनके सतत् अवलम्बन के चरम बिन्दु पर उभरता दिखता है।
पुस्तक के प्रारम्भ में सुरुजी लिखते भी हैं, 'स्वामी जी के विचारों और शब्दों से अत्यंत प्रभावित एक अकिंचन स्वयंसेवक के रूप में अपने जीवनभर के अनुभव से मैंने पाया है कि स्वामी जी के विचार और दृष्टि रा.स्व.संघ की विचारधारा और कार्य-लक्ष्य में साकार हुई है।' यही वजह है कि स्वामी जी की 150 वीं जयंती के अवसर पर सुरुजी ने स्वामी जी की राष्ट्रीय पुनरोत्थान की दृष्टि और संघ के राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य के बीच सामंजस्य के अपने अध्ययन और अनुभव को पुस्तक का रूप दिया है।
यह संकलन दो भागों में विभक्त है। पहले भाग में स्वामी विवेकानंद, डा. हेडगेवार, श्री गुरुजी और स्वामी चिद्भावानंद के जीवन के प्रमुख आयामों की चर्चा है, राष्ट्रीय पुनरोत्थान के संबंध में उनके वक्तव्यों की झलक है। दूसरे भाग में इन महान विभूतियों के भाषणों के प्रमुख अंश हैं जिनमें उन्होंने हिन्दू राष्ट्र और इसके पुनरोत्थान के संबंध में विचार व्यक्त किए हैं।
रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने पुस्तक के प्रकाशन पर श्री सूर्यनारायण राव का अभिनंदन करते हुए भेजे गए अपने संदेश में लिखा है कि 'माननीय श्री सूर्यनारायण राव स्वामी जी के जीवन और साहित्य के समर्पित अध्येता और रा.स्व.संघ के एक बहुत वरिष्ठ, समर्पित और अनुभवी प्रचारक, दोनों हैं।…. संघ कार्य के साथ-साथ अन्य विभिन्न कार्यों में रत स्वयंसेवकों को यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए।' रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री सुरेश राव उपाख्य भैयाजी जोशी ने अपने संदेश में लिखा है कि 'स्वामी जी अपने समाज में क्षात्र और ब्राह्म तेज का जागरण कर विकसित समाज का चित्र निर्माण करना चाहते थे। क्या यह वही विचार नहीं जो आज की महत्तम आवश्यकता है।….. आज अपना समाज विभिन्न संकटों से जूझ रहा है। ऐसे कालखण्ड में जागृत, सुसंस्कारित, संगठित व सक्रिय समाज स्वयं की रक्षा करते हुए तथा अपने सामर्थ्य को बढ़ाते हुए ईश्वर प्रदत्त दायित्व का निर्वहन करने योग्य बने, इस दिशा में कार्य हो, यही तो स्वामी जी के जीवन का संदेश है।…. पूज्य डा. हेडगेवार जी एवं पूज्य श्री गुरुजी द्वारा व्यक्त विचारों का संकलन इसके साथ है। पूज्य डा. हेडगेवार द्वारा प्रारम्भ किए गए संघ कार्य में स्वामी जी द्वारा व्यक्त विचारों का ही दर्शन होता है, साथ ही स्वामी जी जिस प्रकार के व्यक्ति निर्माण की कल्पना करते थे, उस प्रकार का व्यक्तित्व रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों में दृश्यमान हो रहा है।'
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, राज्यसभा सांसद न्यायमूर्ति डा. एम. रामा जायस पुस्तक का परिचय देते हुए लिखते हैं, 'ऐसा लगता है 1925 में डा. हेडगेवार ने हिन्दू समाज के जागरण का कार्य वहां से संभाला जहां स्वामी विवेकानंद ने इसे छोड़ा था, और श्री गुरुजी के हाथ में दायित्व सौंपने से पूर्व उन्होंने अपने जीवन काल में ही अद्भुत सफलता प्राप्त कर ली थी।'
पुस्तक के प्राक्कथन में सुप्रसिद्ध विचारक, भारतीय विचार केन्द्रम् के निदेशक और विवेकानंद केन्द्र (कन्याकुमारी) के अध्यक्ष श्री पी. परमेश्वरन लिखते हैं, 'स्वामी विवेकानंद और डा. हेडगेवार, दोनों का लक्ष्य संगठित हिन्दू समाज था।….. इसमें हैरानी की बात नहीं कि बड़ी संख्या में युवक स्वामी विवेकानंद के भाषणों से मिली प्रेरणा के चलते संघ से जुड़े। उनके भीतर से यह भाव जगा कि संघ का कार्य दरअसल स्वामी जी की दृष्टि और दर्शन का ही साकार रूप है। इसी की तो स्वामी जी ने युवाओं से अपेक्षा की थी।' परमेश्वरन जी ने स्वयं स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और कृतित्व का गहन अध्ययन किया है और उनकी वाणी में एक गजब का सम्मोहन झलकता है। वे स्वयं रामकृष्ण मठ के स्वामी अगमानंद के सान्निध्य में रहे। हालांकि स्वामी अगमानंद चाहते थे कि परमेश्वरन जी रामकृष्ण मठ से ही जुड़ें, पर जब उन्हें उनके संघ प्रचारक बनने का पता चला तो उन्होंने उन्हें शुभकामनाएं दी थीं।
पुस्तक में 'कम्पलीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद' से लिए गए महत्वपूर्ण अंश राष्ट्र जीवन से जुड़े विभिन्न आयामों पर स्वामी विवेकानंद के विचारों की गहनता का आभास कराते हैं। 'मातृभूमि', 'निर्भयता', 'शिक्षा', 'चरित्र निर्माण', 'भारत का भविष्य' आदि विषयों पर स्वामी जी के सम्बोधन नई स्फूर्ति जगाते हैं। ऐसे ही डा. हेडगेवार के 'हिन्दू धर्म', 'वैश्विक परिस्थिति और हिन्दुओं का भविष्य' आदि पर सम्बोधनों के अंश हैं। श्री गुरुजी की पुस्तक 'बंच ऑफ थाट्स' में से भी चुनिंदा अंश संकलित हैं। पुस्तक में संघ के विभिन्न सेवा प्रकल्पों की विस्तृत जानकारी है तो देश में आई हर तरह की दैवी आपदाओं के समय संघ स्वयंसेवकों के अप्रतिम राहत कार्यों की संक्षिप्त जानकारी भी है। संघ के स्वयंसेवकों ने आपदा की हर घड़ी में आगे रहकर योगदान दिया है, चाहे वह '47 का बंटवारा हो, '62 में चीन से युद्ध, '65 का पाकिस्तान से युद्ध, '50 में पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों की सहायता, '66 में बिहार में अकाल की विभीषिका, '84 में भोपाल गैस त्रासदी, '87- '88 में गुजरात में भीषण सूखा, '91 में उत्तरकाशी में और '93 में लातूर में भूकम्प हो या फिर '96 में चरखी दादरी में विमान दुर्घटना, संघ के स्वयंसेवक सेवा में सदैव तत्पर रहे हैं।
सुरुजी ने इस पुस्तक के रूप में एक असाधारण निधि प्रस्तुत की है, जिसे पढ़कर आज की युवा पीढ़ी राष्ट्र निर्माण में अपनी बहुमूल्य आहुति देने को संकल्पित होगी, इसमें कोई संशय नहीं है। उठकर जागने के बाद लक्ष्य प्राप्ति तक न रुकना ही
पुस्तक का नाम –नेशनल रीजेनरेशन:
द विजन ऑफ स्वामी विवेकानंद एंड द मिशन
ऑफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
संकलन/ संपादन : के. सूर्यनारायण राव
प्रकाशक – विजया भारतम् पातिप्पागम
12, एम.वी. नायडु स्ट्रीट
चेटपेट, चेन्नै-600031
मूल्य – 100 रुपए
पृष्ठ – 286
रेशमी डोर
कृपाशंकर शर्मा 'अचूक'
हौले–हौले नभ से उतरी, फिर बतियाती भोर,
प्रेम पाश में सब जग बांधा, फेंक रेशमी डोर।
जीवन की बगिया महकेगी
दसों दिशा उल्लासित
नई–नई परिभाषा होगी
जन–जन में परिभाषित
तोड़ मौन हरियाली झूमे, मधुकर गुंजित शोर,
प्रेम पाश में सब जग बांधा, फेंक रेशमी डोर।
भावों की मलयानिल बुनती
गीत मधुर मनभावन
प्रेम रंग में गगरी फिरती
अलसाया–सा तन–मन
मधुरस से गगरी भरजाए बाकी रहे न कोर,
प्रेम पाश में सब जग बांधा, फेंक रेशमी डोर।
चाल 'अचूक' समय नित चलता
करता साथ शरारत
दुविधा की गठरी का बोझा
लेकर घूमे इत–उत
पूर्ण विराम हो गई पीड़ा, सुख अनन्त की ओर,
प्रेम पाश में सब जग बांधा, फेंक रेशमी डोर।
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