विकास के दुश्मन हिंसक माओवादी
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जितेन्द्र तिवारी
माओवादी गुटों द्वारा बंधक बनाकर रखे गए एक इतालवी नागरिक बासुस्को पाउलो और सत्तारूढ़ बीजू जनता दल के युवा विधायक झिन हिकाका की रिहाई के बदले उड़ीसा में एक महीने तक सौदेबाजी का दौर जारी रहा। माओवादियों द्वारा बंधकों की रिहाई के बदले हर बार नई समय सीमा और नई शर्तें और सरकार द्वारा शर्तें मान लेने और फिर पीछे हट जाने या लिखित रूप से आश्वासन न देने के आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच बार-बार वार्ता टूटने से मध्यस्थ भी हाथ खड़ा करने लगे थे। आखिरकार 12 अप्रैल को बासुस्को पाउलो को भी माओवादियों ने रिहा कर दिया लेकिन झिन हिकाका अभी भी (12 अप्रैल) माओवादियों के कब्जे में हैं। लगभग 18 वर्ष से उड़ीसा में रहकर जोखिम भरे पर्यटन (एडवेंचरस टूरिज्म) व्यापार से जुड़े इटली मूल के दो लोगों (जिनमें से एक क्लाउडियो कोलनजेलो को माओवादियों ने 'मानवीयता' और वार्ता जारी रखने की 'सदाशयता' दिखाने के बदले बाद में रिहा कर दिया था) को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के एक गुट ने 14 मार्च को उस समय बंधक बना लिया जब वे अत्यंत दुर्गम और विदेशियों के लिए प्रतिबंधित जनजातीय बहुल बस्तर क्षेत्र में पर्यटक स्थल देखने के लिए गए थे। आरोप है कि ये लोग जनजातीय लोगों, विशेषकर महिलाओं के अर्धनग्न जीवन को दिखाने के लिए यहां विदेशियों को लाते हैं और उसे 'एडवेंचर' बताते हैं। इस तरह का पर्यटन कराने वाले ये लोग गलत हैं या सही, यह एक अलग बहस का मुद्दा है, पर इनके बदले माओवादियों ने 7 कट्टर माओवादियों की जेल से रिहाई सहित 13 मांगे सामने रख दीं।
इस बीच 23-24 मार्च की मध्य रात्रि कोरापुट से अपने गृहनगर लक्ष्मीपुर जा रहे बीजद के विधायक झिन हिकाका का अपहरण करने वाले दूसरे माओवादी गुट ने भी जेल में बंद 30 माओवादियों की रिहाई की शर्त रख दी। दोतरफा दबाव में आई बीजू जनता दल की नवीन पटनायक सरकार ने घबराकर घुटने टेक दिए और विधानसभा के भीतर उन 23 माओवादियों की रिहाई की घोषणा कर दी जिनके लिए मांग की गई थी। पर बात नहीं बनी, क्योंकि उनमें वे कट्टर माओवादी नहीं थे जिनकी रिहाई के लिए दोनों गुटों ने मांग की थी। इनमें एक प्रमुख नाम है छेडा भूषण ऊर्फ घासी का। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा घोषित 10 लाख का यह इनामी माओवादी आंध्र-उड़ीसा के 55 से अधिक पुलिसकर्मियों की हत्या का जिम्मेदार है। इस दुर्दांत माओवादी की रिहाई का विरोध करते हुए उड़ीसा पुलिस एसोशिएसन के अध्यक्ष सांवरमल शर्मा ने कहा है कि वे अपने साथियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंगे और घासी को छोड़ा गया तो पुलिसकर्मी नक्सल विरोधी अभियान का बहिष्कार भी कर सकते हैं। इस कारण माओवादियों को छोड़ने का मन बना चुकी राज्य सरकार के कदम ठिठक गए और उसने कहा कि रिहाई के लिए जमानत का आवेदन किया जाए, राज्य सरकार न्यायालय में उसका विरोध नहीं करेगी। इसी बीच सीपीआई (माओवादी) उड़ीसा राज्य कमेटी के सचिव सव्यसायी पांडा की पत्नी सुभाश्री दास को गुनूपुर की एक अदालत ने एक मामले में साक्ष्य के अभाव में बरी भी कर दिया।
उड़ीसा में बंधक बने लोकतंत्र और गिडगिड़ाती राज्य सरकार इस बात का उदाहरण है कि 60 के दशक से सत्ता परिवर्तन के लिए शुरू हुआ यह हिंसक आंदोलन सुरक्षा बलों द्वारा चलाए गए अनेक अभियानों के बावजूद समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है। भले ही इन अभियानों से माओवादी जमीन (गांव) छोड़कर जंगल में छिपने को विवश हो गए हों, पर घात लगाकर हमला करने, सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की उनकी रणनीति इतनी घातक है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक को स्वीकार करना पड़ा है कि भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए माओवाद सबसे बड़ा खतरा है। गृहमंत्री पी. चिदम्बरम् ने नक्सल प्रभावित राज्यों में 'आपरेशन ग्रीन हंट' के नाम से संयुक्त अभियान की पहल की, शुरुआती सफलता भी मिली, लगा कि माओवादी हार रहे हैं, सिमट रहे हैं। पर अभी जब उड़ीसा में केवल 2 बंधकों की रिहाई के लिए सौदेबाजी चल रही थी, महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में 27 मार्च को माओवादियों द्वारा सुरंग विस्फोट के द्वारा धमाका कर उड़ाई गई एक बस में सवार केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 12 जवानों की मौत हो गई और 28 गंभीर रूप से घायल हो गए। उधर झारखण्ड में गढ़वा जिला पंचायत अध्यक्ष सुषमा महतो का माओवादियों ने अपहरण कर लिया तो जंगल महल (पश्चिम बंगाल) के अपने 'स्वतंत्र क्षेत्र' के हाथ से छिन जाने और अपने सैन्य प्रमुख मुल्लाजोला कोटेश्वर राव ऊर्फ किशनजी के मारे जाने के बाद हताश माओवादी नए सिरे से न केवल तैयार हो रहे हैं बल्कि असम में भी दस्तक दे रहे हैं और पूर्वोत्तर में सक्रिय उल्फा के साथ ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी उनकी साठगांठ हो रही है।
वस्तुत: तिरुपति (आंध्र प्रदेश) से पशुपति (नेपाल) तक के क्षेत्र (रेड कॉरिडोर) को लाल रंग में रंगने के लिए आतुर और भारत के कुल 600 जिलों में से एक तिहाई में फैले ये माओवादी पूरे नेपाल सहित भारत के बिहार, झारखण्ड, प. बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में तो मजबूत हैं ही, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में भी यदा-कदा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं। हालांकि शहरी क्षेत्रों में माओवादियों की कभी पहुंच नहीं बन पाई, लेकिन पिछड़े व ग्रामीण क्षेत्रों में उनका प्रभाव कम भी नहीं हुआ। सुरक्षा बलों के अभियानों और विकास कार्यों को गति देने के बावजूद माओवादी इसलिए भी मजबूत होते रहे हैं कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने जरूरत पड़ने पर उनका साथ लिया या उन्हें साथ दिया। जैसे अभी प.बंगाल में कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनावों में सुश्री ममता बनर्जी को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था और बीजद की माओवादियों से साठगांठ है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भी माओवादियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई के लिए अपनी ही सरकार और उसके गृहमंत्री का सार्वजनिक विरोध करते रहे हैं। उधर माओवादी नेता चिरु राजकुमार उर्फ आजाद की पुलिस मुठभेड़ में मौत को फर्जी बताकर अग्निवेश ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। और किशनजी की मौत को भी फर्जी मुठभेड़ बताकर पीयूसीएल, एपीडीआर, एपीसीएल जैसे 26 मानवाधिकारवादी संगठनों ने एक साझा मंच बनाकर मामले की जांच के लिए अभियान छेड़ रखा है। छत्तीसगढ़ में भी सलवा जुडूम का विरोध करने वाले बिनायक सेन सरीखे लोग सक्रिय हैं। इन्हीं सबकी शह पाकर माओवादी कभी जहानाबाद की जेल पर कब्जा कर लेते हैं तो कभी दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़) में घात लगाकर एक साथ 76 जवानों की हत्या कर अपने प्रभाव का आभास कराते हैं। सचाई तो यह भी है कि माओवादी ही उन क्षेत्रों में विकास की गति में बाधक हैं, वहां चल रही योजनाओं को बंद करवा देते हैं, वहां तैनात सरकारी लोगों को डरा-धमकाकर उनसे अवैध बसूली करते हैं, और ग्रामीणों की सद्भावना जीतने की कोशिश कर रहे सुरक्षा बलों, जो वहां चिकित्सा शिविर या खेलकूद प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं, के रास्ते में विस्फोट कर उन्हें वहां जाने से रोकते हैं। वस्तुत: जनवादी संघर्ष के नाम से शुरू हुआ माओवाद अब सिर्फ हिंसा का माध्यम बनकर रह गया है। भारत में माओवादी आंदोलन के प्रणेता चारू मजूमदार के पुत्र अभिजीत मजूमदार, जोकि माकपा (माले-लिबरेशन) के प्रमुख हैं, भी मानते हैं कि हथियार के पीछे कोई विचार होना चाहिए लेकिन अब हथियार माओवादियों को चला रहे ½éþ*n
ये अपहरण क्या प्रायोजित हैं?
n समन्वय नंद
उड़ीसा के लक्ष्मीपुर से विधायक झिन हिकाका व इतालवी नागरिक बासुस्को पाउलो के अपहरण के मामलों ने अनेक ऐसे तथ्यों को सामने ला दिया है जो अब तक छन छन कर ही बाहर आते थे । इन प्रकरणों ने माओवादियों व बीजू जनता दल के संबंधों, माओवादियों व चर्च के बीच गठजोड़ तथा माओवादियों में बर्चस्व की लड़ाई को बेनकाब कर दिया है। उड़ीसा में माओवादी मामलों के जानकारों का मानना है कि बीजू जनता दल व माओवादियों के बीच अघोषित समझौता है। इसके तहत माओवादी बीजद को जीत दिलाने में सहयोग देंगे और सरकार भी उनके कामकाज में दखल नहीं देगी, ताकि वे अपने संगठन का विस्तार कर सकें । यही कारण है कि वर्तमान मुख्यमंत्री तथा बीजद प्रमुख नवीन पटनायक के सत्ता में आने से पहले राज्य के जहां 4 जिले नक्सल प्रभावित थे, अब 20 से अधिक जिले माओवाद से प्रभावित हो चुके हैं। चर्च के निर्देश पर स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या करने वाले माओवादियों को पकड़ने में भी राज्य सरकार ने विशेष रुचि नहीं दिखाई। विगत विधानसभा चुनावों में माओवादियों द्वारा बीजद को जिताने में सहयोग करने संबंधी आरोप भी लगते रहे हैं। हाल ही में संपन्न उमरकोट उपचुनाव में छत्तीसगढ़ से लगने वाले व माओवाद प्रभावित इलाकों में एकतरफा बीजद के पक्ष में भारी मतदान हुआ था।
विधायक झिन हिकाका का अपहरण भी बीजद-माओवादी संबंधों का ही नतीजा है । कोरापुट जिले के नारायण पटना इलाके में माओवादियों का एक संगठन 'चासी मुलिआ आदिवासी संघ' काम करता है। राज्य में हाल ही में संपन्न जिला परिषद चुनाव में सत्तारूढ़ बीजद ने जिला परिषद के अध्यक्ष का पद हासिल करने के लिए इस संगठन से समझौता किया है। जिला परिषद के अध्यक्ष के पद के लिए 15 वोटों की आवश्यकता थी और बीजद व कांग्रेस के पास 14-14 वोट थे। इसलिए कोरापुट के बीजद सांसद जयराम पांगी व लक्ष्मीपुर के विधायक झिन हिकाका समेत पार्टी के अन्य विधायकों तथा अन्य जिला परिषद सदस्यों ने 'चासी मुलिआ आदिवासी संघ' का वोट प्राप्त करने के बदले उनकी मांगों को मानने की घोषणा की। यह केवल मौखिक घोषणा नहीं थी बल्कि लिखित में उन्होंने इन मांगों को मानने के लिए मुख्यमंत्री के नाम बाकायदा पत्र भी लिखा और उस पर इन सभी बीजद प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर हैं। ऐसा करके बीजद ने जिला परिषद अध्यक्ष का पद हथिया लिया। इस प्रसंग ने बीजद -माओवादी संबंधों की पुष्टि की है।
इतालवी नागरिक का अपहरण जिस इलाके में हुआ है, उस क्षेत्र में काम करने वाले संगठन वनवासी कल्याण आश्रम के प्रदेश महामंत्री डा. लक्ष्मीकांत दास का कहना है यूरोपीय यूनियन, विशेषकर इटली की मिशनरी संस्थाओं द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त एसएफडीसी व वर्ल्ड विजन नामक संस्थाएं दारिंगिबाड़ी प्रखण्ड में काफी सक्रिय हैं । इन संस्थाओं के लोगों की माओवादियों से काफी घनिष्ठता है। बीच-बीच में इतालवी लोग वहां आकर घूमते हैं। पुलिस के मना करने के बावजूद ये लोग इस इलाके में क्यों गये थे, इसी से ही पूरी कहानी स्पष्ट होती है। इसके अलावा जो इतालवी नागरिक रिहा हुआ उसने बताया है कि उनका अपहरण करने के बाद उसे चर्च में ठहराया गया था । इस कारण इस इलाके में चर्च प्रेरित गैरसरकारी संगठनों, उनको मिलने वाला विदेशी धन व इन गैरसरकारी संगठनों व माओवादियों के संबधों की किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा विस्तृत जांच होने पर ही सही तस्वीर सामने आएगी। सीपीआई (माओवादी) उड़ीसा राज्य कमेटी के सचिव सव्यसाची पांडा ने भी मीडिया में दिये गये बयान में कहा है कि उड़ीसा-आंध्र स्पेशल जोनल कमेटी द्वारा विधायक झिन हिकाका का अपहरण एक सरकार प्रायोजित नाटक है। माओवादियों के प्रति सरकार की नरमी से राज्य पुलिस में आक्रोश है। दो बंधकों के बदले दुर्दांत नक्सलियों को छोड़े जाने की मांग का राज्य पुलिस हबलदार-कांस्टेबल महासंघ व पुलिस आफिसर्स महासंघ ने विरोध किया है। पुलिस आफिसर्स महासंघ के अध्यक्ष सांवरमल शर्मा ने कहा कि अपनी जान की बाजी लगाकर इन नक्सलियों को पकड़े जाने के बाद छोड़ा जाना आत्मघाती होगा। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर दुर्दांत नक्सलियों को छोड़ा जाता है तो माओवाद प्रभावित इलाकों में पुलिस अधिकारी व कर्मचारी काम नहीं करेंगे। n
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