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अब सत्ता की जोड़-तोड़

by
Mar 10, 2012, 12:00 am IST
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आवरण कथा

दिंनाक: 10 Mar 2012 16:00:52

उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार के सुशासन व विकास कार्यों के दम पर अपनी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस को कड़ी टक्कर देते हुए 31 सीटों पर विजय प्राप्त की। हालांकि कांग्रेस भाजपा से एक सीट अधिक यानी 32 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़े दल के रूप में विधानसभा में पहुंचने में सफल हुई है। लेकिन राज्य की जनता ने किसी भी दल को स्पष्ट जनादेश इस चुनाव में नहीं दिया है। उसने राजनीतिक दलों को वोट के जरिये आईना दिखाने का काम जरूर किया है। राज्य में करीब 5 महीने पहले अचानक हुए घटनाक्रम में साफ-सुथरी छवि के भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री पद की कमान दुबारा सौंपकर भारतीय जनता पार्टी ने जो परिवर्तन किया था वह उसके लिए फायेदमंद रहा और इतने कम समय में अपनी मेहनत और लोकहितकारी भूमिका से श्री खंडूरी ने मानो बाजी ही पलट दी और राज्य में पार्टी की संभावनाएं बेहतर मानी जाने लगीं। हालांकि चुनाव परिणामों ने किसी हद तक पार्टी की इन अपेक्षाओं को पूरा किया, लेकिन कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री खंडूरी की अप्रत्याशित हार ने पार्टी को बहुत बड़ा झटका दिया, मानो कांग्रेस के भाग्य से छींका टूट पड़ा और कांग्रेस अनपेक्षित रूप से सत्ता की दौड़ में खड़ी हो गई। भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे बढ़ते हुए खंडूरी सरकार ने सबसे पहले लोकायुक्त विधेयक पारित कराया। जनसेवा का अधिकार, सुराज और भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए अलग विभाग की स्थापना, स्थानान्तरण नीति आदि, सरकार द्वारा किये गये प्रदर्शन के कारण ही खंडूरी जनता के दिल पर छा गये थे। परन्तु दुर्भाग्यवश खंडूरी अपनी सीट हार गये।  इस हार ने सबको चौंकाया है, लेकिन हार-जीत से बेफिक्र खंडूरी ने पत्रकारों से कहा कि “मैं तो प्रदेश की सभी 70 सीटों पर लड़ रहा था, जहां मैंने पूरी मेहनत की व जनता के समक्ष भाजपा सरकार की स्वच्छ छवि तथा जनकल्याण की नीतियों व कार्यों को रखा, परिणामत: पार्टी को सत्ता के नजदीक तक ले जाने में हम सफल हुए। मैं  जनता और पार्टी की सेवा के लिए इसी तरह तत्पर रहूंगा।” 

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मुख्यमंत्री खंडूरी ने भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए संकल्प ले लिया था, इसी बौखलाहट में भू एवं शराब माफिया ने धनबल का इस्तेमाल करते हुए खंडूरी को चुनाव में हराये जाने में बड़ी भूमिका निभाई। इसके बावजूद मुख्यमंत्री खंडूरी की लोकप्रियता लोगों के दिलों में इस कदर बसी हुई है कि हार की खबर लोगों ने सुनी तो उन्हें भारी निराशा हुई। इसे उनकी लोकप्रियता ही कहा जायेगा कि अपने प्रत्याशी के जीतने के साथ लोगों को खंडूरी की हार का गम सता रहा था। इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के सभी समीकरणों को उलटते हुए सत्ता के बहुत करीब दस्तक दी है। भारतीय जनता पार्टी के विजयी उम्मीदवारों में कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक (हरिद्वार), स्वामी यतीश्वरानन्द (हरिद्वार ग्रामीण), पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक (डोईवाला), कैबिनेट मंत्री विजया बड़थ्वाल, प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल (डीडीहाट), पूरन फत्र्याल (लोहाघाट), विधानसभा अध्यक्ष हरवंश कपूर (देहरादून कैंट), प्रेम चन्द्र अग्रवाल आदि प्रमुख नाम शामिल हैं, जबकि खंडूरी कैबिनेट के मंत्री मातवर सिंह कंडारी, प्रकाश पंत, दिवाकर भट्ट, त्रिवेन्द्र रावत आदि चुनाव हार गए। उधर, कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे (नेता प्रतिपक्ष) हरकसिंह रावत, प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य, प्रमुख नेत्री इंदिरा हृदयेश चुनाव जीत गई हैं, जबकि कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे तिलकराज बेहड़ चुनाव हार गए हैं।

इस बीच नई सरकार के गठन की अटकलों व प्रयत्नों के बीच श्री खंडूरी ने मुख्यमंत्री पद से अपना त्यागपत्र सौंप दिया। उत्तराखण्ड की राज्यपाल श्रीमती मार्गरेट अल्वा ने  मुख्यमंत्री मेजर जनरल (से.नि.) भुवन चन्द्र खंडूरी का त्यागपत्र स्वीकार करते हुए उनसे नये मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण करने तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने का अनुरोध किया है। खंडूरी ने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल से मुलाकात की तथा उन्हें अपना त्यागपत्र सौंपा। राज्यपाल ने उनकी हार पर अफसोस जताते हुए उन्हें एक सीधे, सरल, कर्मठ, कुशल तथा समर्पित व्यक्तित्व वाला एक बेहतरीन मुख्यमंत्री बताया। उत्तराखण्ड में चुनाव जीते 3 बसपा विधायकों व 4 निर्दलीयों के हाथ सत्ता की चाभी मानी जा रही है, जिसके लिए भाजपा व कांग्रेस दोनों ही प्रयत्नशील हैं। मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में मची तकरार भी चर्चा का विषय है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भाजपा भी अपनी संभावनाएं तलाशने में जुटी हुई है।द

आवरण कथा

राहुल ने डुबाई सोनिया पार्टी

6 मार्च को घोषित पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर- के विधानसभा चुनावों के नतीजे अच्छे-अच्छे कयासदारों (सेफोलोजिस्ट्स) को हैरान कर गए। नतीजों ने जहां संबद्ध राजनीतिक दलों के आंकड़े छका दिए वहीं खबरिया चैनलों के धुरंधर चिंतकों के चेहरों पर हवाइयां उड़ा दीं। हैरानी का यह मंजर उत्तर प्रदेश में दिखा तो पंजाब और उत्तराखण्ड ने भी कयासों को छकाया। देश के सबसे बड़े और राजनीतिक बयारों का रुख तय करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में मायावती की बसपा की फिर से कुर्सी संभालने की मंशा को मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी की साइकिल ने करारा झटका देते हुए विधानसभा की 403 में से 224 सीटें जीतकर सरकार बनाने की लगाम थाम ली। पंजाब में मीडिया की बनाई “सत्ता-विरोधी लहर” को शिकस्त देकर अकाली दल-भाजपा गठबंधन ने राज्य की राजनीति में इतिहास रचते हुए विधानसभा की 117 में से 68 सीटें जीतकर अमरिन्दर-राहुल के मंसूबों पर पानी फेर दिया। उत्तराखण्ड के नतीजे कांटे के रहे, खंडूरी की अगुआई में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए विधानसभा की 70 में से 31 सीटें जीत कर 32 सीटें जीतने वाली कांग्रेस की बहुमत पाने की बयानबाजियों को जड़ कर दिया। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक, किसकी सरकार बनेगी, इस पर पेंच फंसा हुआ है, पर राज्यपाल मार्गरेट अल्वा कांग्रेस की बड़ी नेता रह चुकी हैं, यह भी ध्यान में रखना चाहिए।

गोवा में भाजपा ने विधानसभा की 40 सीटों में से 24 पर जीत दर्ज कर स्पष्ट और सुदृढ़ बहुमत के साथ 9 मार्च को सरकार बनाई। राज्य में स्पष्टत: केसरिया जादू चला। मुख्यमंत्री के रूप में सबके चहेते, अनुशासनप्रिय और “आम जनता के अपने” की छवि वाले मनोहर पर्रिकर ने 6 अन्य मंत्रीमंडलीय सहयोगियों के साथ शपथ ली। यहां कांग्रेस 9 ही सीटें ले पाई। मणिपुर में इबोबी सिंह की अगुआई में कांग्रेस ने सरकार बनाई, क्योंकि वहां कांग्रेस के सामने कोई दमदार टक्कर नहीं थी। यहां इस पृष्ठ पर हम उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड से प्राप्त विश्लेषण और पृ. 3 पर पंजाब से प्राप्त चुनाव नतीजों का ब्योरा प्रकाशित कर रहे हैं। -सं.

साइकिल ने “कुचला” हाथी

लखनऊ से सुभाष चंद्र

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में संभव है कि कोई पार्टी या उसका नेता किसी संभ्रम की स्थिति में रहा हो, लेकिन जनता किसी भी स्तर पर संभ्रम की स्थिति में नहीं थी। जीत के दावे सभी ने किए, लेकिन जनता के सामने केवल एक ही लक्ष्य था, वह था कबीलाई राज का खात्मा। उस राज का खात्मा जिसकी मुख्यमंत्री मायावती का लोकतंत्र से दूर-दूर तक नाता नहीं था, जिसका उद्देश्य केवल और केवल पैसा बटोरना था, चाहे किसी शीलू नामक लड़की के साथ सत्तारूढ़ दल का कोई पुरुषोत्तम द्विवेदी नाम का विधायक दुराचार करे या किसी इंजीनियर को बसपा विधायक शेखर तिवारी पीट-पीटकर मार डाले।

बहरहाल, चुनाव परिणाम आ चुके हैं। जनता का फैसला है कि राज्य की बागडोर मायावती की बसपा के बजाय मुलायम सिंह की सपा के हाथ में हो। 403 सीटों की विधानसभा में सपा को अकेले बहुमत मिला और 224 सीटों के साथ वह कुर्सी पर आ गई। जनता ने भाजपा और कांग्रेस के मायावती के खिलाफ लड़ने के दावे को नकार दिया। उसको लगा कि इनकी तैयारी पूरी नहीं है। सपा को उसने भरपूर वोट दिया। जो सपा मई 2007 में गुंडाराज के लांछन के साथ सत्ता से बाहर हो गई थी वही आज सत्ता में आ गई है तो केवल और केवल मायावती के तानाशाही राज और अंतहीन भ्रष्टाचार के कारण। सपा वही है, उसकी राजनीतिक संस्कृति भी वही है, आक्रामकता भी पुरानी ही है, कट्टरवादी भी उसी के खेमे में हैं, आजम खां जैसे जहर उगलने वाले नेता भी उसी के साथ हैं, लेकिन जनता ने उसे फिर जनादेश दिया तो केवल इसलिए कि उसके सामने कोई और मजबूत विकल्प नहीं था।

भाजपा अंत तक यह साबित नहीं कर पाई कि वह मायावती का मजबूत विकल्प है। इस चुनाव में उमा भारती का उभरना उनकी लंबी राजनीतिक पारी के लिए लाभदायी हो सकता है लेकिन चुनाव में पार्टी उनका पूरा लाभ नहीं ले पाई। चुनाव प्रचार में देरी, उम्मीदवारों के चयन में भी देरी पार्टी को ले डूबी। भाजपा एकजुट चुनाव लड़ने का संदेश भी शायद नहीं दे पाई।

उधर कांग्रेस का तो और भी बुरा हाल रहा। राहुल गांधी कांग्रेस के “स्टार प्रचारक” थे और उन्होंने ही उ.प्र. में सोनिया पार्टी की लुटिया डुबो दी, सोनिया गांधी व प्रियंका का “जादू” भी बेअसर रहा। चुनावी रणनीति के स्तर पर तो कांग्रेस करीब-करीब दीवालिया हालात में रही। भाजपा का भय इतना कि पिछड़ों के कोटे से साढ़े चार फीसदी आरक्षण की घोषणा को इतना प्रचारित किया कि मानो वही उनकी एकमात्र रहनुमा हो। मुस्लिम वोटों के लालच में ही मुलायम सिंह उन्हें आबादी के हिसाब से 18 फीसदी आरक्षण की वकालत करने लगे। मुसलमानों ने कांग्रेस की ओर देखा ही नहीं, सपा को एकतरफा वोट किया और बसपा सत्ता से बाहर हो गई।

बसपा की ऐसी बुरी स्थिति बनी कि उसके 23 में से 14 मंत्री चुनाव हार गए। विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर, संसदीय कार्यमंत्री लालजी वर्मा, नगर विकास मंत्री नकुल दुबे, कृषिमंत्री लक्ष्मीनारायण, वस्त्रोद्योगमंत्री जगदीश नारायण राय आदि दिग्गज हार गए। माया के खिलाफ गुस्से का शिकार कांग्रेस भी बनी। केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के पुत्र राकेश वर्मा बाराबंकी की दरियाबाद सीट पर तीसरे स्थान पर चले गए। केन्द्रीय मंत्री जतिन प्रसाद, आरपीएन सिंह आदि की संसदीय सीटों पर कांग्रेस को मंुह की खानी पड़ी। यही नहीं, कांग्रेस के गढ़ समझे जाने वाले रायबरेली, अमेठी और सुल्तानपुर में उसकी हालत बेहद खराब रही। सुल्तानपुर से संजय सिंह कांग्रेस के सांसद हैं, अमेठी से उनकी विधायक पत्नी अमीता सिंह हार गईं। सुल्तानपुर की एक भी सीट कांग्रेस के हाथ नहीं लगी। रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद हैं, यहां एक भी सीट कांग्रेस को नहीं मिली। अमेठी, जहां से राहुल गांधी सांसद हैं, वहां की दो सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार मुश्किल से जीत सके। द

दलगत स्थिति (कुल सीटें-403)

सपा – 224, बसपा – 80

भाजपा – 47, कांग्रेस – 28

रालोद – 9, अन्य – 15

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