चर्चा सत्र
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राजनाथ सिंह “सूर्य”
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने जिस प्रकार का खीझा आचरण किया है, उससे यह बात स्पष्ट है कि पार्टी पूरी तरह दिशाहीन हो गई है। राहुल गांधी की बचकानी अभिव्यक्तियों ने वैसे भी पार्टी की छवि धूमिल कर दी है, लेकिन उनके द्वारा मंच से किसी अन्य दल के घोषणापत्र को फाड़ने की घटना ने उनके अशालीन व्यवहार को भी जगजाहिर कर दिया। जिस सांप्रदायिक अभिव्यक्ति के लिए देश के कानून मंत्री को निर्वाचन आयोग से माफी मांगनी पड़ी उसी अभिव्यक्ति को कानून मंत्री की उपस्थिति में इस्पात मंत्री दोहराकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नियंत्रणहीनता को और उघाड़ गए। मनमोहन सिंह का मंत्रिमंडल पर नियंत्रण नहीं है और उनकी बार-बार हिदायत के बावजूद वे परस्पर एक-दूसरे के बारे में या नीति संबंधी निर्णयों के खिलाफ सार्वजनिक अभिव्यक्ति करते रहे हैं।
मंत्री ही मंत्री से भिड़े
लेकिन ऐसा देश के इतिहास में पहली बार हुआ है कि जब एक मंत्री की सांप्रदायिक अभिव्यक्ति के खिलाफ दूसरे मंत्री ने-भले ही वह साझेदार दल का हो-निर्वाचन आयोग से कार्रवाई करने की लिखित अपील की हो। सोनिया गांधी के जिस “ड्रीम प्रोजेक्ट”- खाद्यान्न सुरक्षा योजना- को मनमोहन सिंह सर्वाधिक प्राथमिकता प्रदान कर रहे हैं उसके लिए उत्तरदायी मंत्री शरद पवार उसकी सार्थकता पर निरंतर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। बिहार में राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह के मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए किए गए वायदों की पूर्ण असफलता के बाद जिन्होंने यह उम्मीद की थी कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में वह उस रणनीति के बजाय कोई और रास्ता अपनायेंगे, उनकी उम्मीद धराशायी हो गई। कांग्रेस सांप्रदायिकता भड़काने में सारी हदें पार करती दिखी।
देश-बांटने की मानसिकता
उत्तर प्रदेश विधानसभा की चुनावी तिथियां घोषित होने और आचार संहिता लागू होने के बाद केंद्रीय सरकार, “अल्पसंख्यकों” के लिए पिछड़े वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण में साढ़े चार प्रतिशत का कोटा घोषित करने के कारण, निर्वाचन आयोग से फटकार के बाद, उसे स्थगित करने पर बाध्य अवश्य हो गई, लेकिन मुस्लिम मत पाने के लिए कांग्रेस ने जो अभियान चलाया उसी का परिणाम है कि उस वर्ग में आबादी के अनुपात में अर्थात 18 फीसदी आरक्षण प्रदान करने की मांग उठ खड़ी हुई है। मुलायम सिंह यादव तो आबादी के अनुपात में मुसलमानों के आरक्षण की बात एक बार कहकर चुप हो गए, लेकिन सलमान खुर्शीद और उनके सहयोगी मंत्री आबादी के आधार पर मुस्लिमों को आरक्षण देने की बात पर पार्टी घोषणापत्र का हवाला देकर जो अभियान चलाते रहे, वह देश को एक और विभाजन की ओर धकेलने में उन्हें मजबूती प्रदान करेगा, जो अभी भी उसी मानसिकता के वशीभूत हैं जिससे पाकिस्तान बना था। बाटला हाउस कांड फर्जी मुठभेड़ नहीं था, यह बात गृह मंत्री चिदंबरम द्वारा बार-बार कहने के बावजूद दिग्विजय सिंह सहित कुछ मंत्री भी “न्यायिक जांच” की रट लगाये हुए हैं। कांग्रेस की मुस्लिम वोट पाने की यह घातक मुहिम मुस्लिम मतदाताओं को उनके अनुकूल बना सकेगी, इस पर प्रश्नचिन्ह लगा ही हुआ है। उत्तर प्रदेश का चुनाव परिणाम चाहे जैसा हो, कांग्रेस न तो अल्पसंख्यकों को अपने अनुकूल बनाने में सफल हुई और न बहुसंख्यकों से दूरी कम करने में कामयाब हो सकी। समाज के प्रबुद्ध वर्ग को वह एक के बाद एक अपने विपरीत करने वाला आचरण कर रही है। निर्वाचन आयोग एकमात्र ऐसी संवैधानिक संस्था नहीं है जिसके प्रति उसने अवमाननापूर्ण अभिव्यक्ति की है, हर संवैधानिक संस्था का मखौल बनाने से उसकी विश्वसनीयता घटी है। सीबीआई के निदेशक द्वारा काले धन को वापस लाने के मामले में राजनीतिक बाधा का सार्वजनिक उल्लेख जिस दिशा की ओर संकेत करता है वह भी कांग्रेस के लिए अशुभ साबित हो रहा है और जैसी मणिशंकर अय्यर ने उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी के चुनावी अभियान पर टिप्पणी की, उससे अब कांग्रेसियों में भी उनकी “क्षमता और पात्रता” पर सवालिया निशान लगने लगा है।
अधर में अर्थनीति
मैं यहां पड़ोसी देश से सम्बन्धों में गिरावट और अन्तरराष्ट्रीय संबंधों में भ्रमित आचरण के विस्तार में नहीं जाना चाहता, लेकिन भारत को आर्थिक गुलामी में जकड़ देने की अमरीकी योजना के सामने सिर झुकाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कृषि क्षेत्र तक में सीधे पैठ बनाने का अवसर देकर मनमोहन सिंह सरकार को देश को “बनाना रिपब्लिक” बनाने की दिशा में तेजी से बढ़ने के खतरों से अवश्य सावधान करना चाहता हूं। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार सहयोगी और समर्थक दलों के सहारे चल रही है। उनमें से कई सार्वजनिक रूप से सरकार की इस आर्थिक नीति का विरोध कर चुके हैं। सब्सिडी के मामले में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी माथा ठोंक चुके हैं। ऐसे में साठ हजार करोड़ रुपए की खाद्यान्न सुरक्षा योजना, जो पूरी तरह सब्सिडी ही है, का क्या होगा? वैसे यह प्रश्न उतना महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि उसको लागू करने का निर्णय लेने के बाद भी कागजी स्वीकृति से आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। लेकिन जिन अन्य सब्सिडी से अर्थव्यवस्था डूबती जा रही है उस पर भी क्या संगत विचार हो सकेगा? शायद नहीं, क्योंकि वोट की प्राथमिकता के वशीभूत होकर वे जारी की गई हैं और अभी ऐसी और भी जारी होंगी। ऐसे में महंगाई घटेगी, भ्रष्टाचार कम होगा, इसकी आशा नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस के लिए राष्ट्रीय सम्मान, सामाजिक समरसता और संवैधानिक मर्यादाओं का कोई मूल्य नहीं रह गया है। देश की जनता उसके ऐसे सब आचरणों पर मूक भले रहे, लेकिन वह मूर्ख नहीं है जो “नाचे कूदे तोड़े तान, वही कै दुनिया राखै मान” से सदैव प्रभावित रहेगी। उत्तर प्रदेश के निर्वाचन में कांग्रेस के आचरण ने उसके नेतृत्व का खोखलापन साबित कर दिया है।द
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