आखिरकार संप्रग सरकार, मुख्य रूप से उसका नेतृत्व करने वाली कांग्रेस ने 'जुगाड़ राजनीति' के इस्तेमाल से अपनी जिद पूरी करते हुए खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश को संसद में मंजूरी दिला दी। अमरीका के दबाव में सरकार ने मंत्रिमंडल स्तर पर तो पहले ही इसे मंजूर कर लिया था, लेकिन देश में इसके विरुद्ध वातावरण को देखते हुए लग रहा था कि खुदरा क्षेत्र से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़े करीब 30 करोड़ लोगों के हितों के मद्देनजर अधिकांश राजनीतिक दल, जो लगातार एफडीआई के विरोध में आवाज उठा रहे थे, संसद में सरकार की मंशा को पूरी नहीं होने देंगे और देश के किसानों व एफडीआई के दंश से प्रभावित होने वाले करोड़ों व्यवसायियों के साथ खड़े होकर सरकार को परास्त कर देश को इस तबाही से बचाएंगे। लेकिन सत्ता स्वार्थों से दुष्प्रेरित समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे दलों ने देश की जनता के साथ विश्वासघात कर कांग्रेस के बगलगीर बनकर भारत की आर्थिक बर्बादी की राह आसान करते हुए सरकार को जिता दिया और देश को हरा दिया। सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने तो अपने उन शब्दों की भी लाज नहीं रखी जो उन्होंने एफडीआई का विरोध करते हुए बहस के दौरान संसद में बोले थे। इसी तरह मायावती ने अपनी पार्टी बसपा के एफडीआई विरोधी तेवरों को धता बताकर कांग्रेस के सामने समर्पण कर दिया और इन दोनों के समर्थन से कांग्रेस देश पर एफडीआई थोपने में सफल हो गई।
आखिरकार संप्रग सरकार, मुख्य रूप से उसका नेतृत्व करने वाली कांग्रेस ने 'जुगाड़ राजनीति' के इस्तेमाल से अपनी जिद पूरी करते हुए खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश को संसद में मंजूरी दिला दी। अमरीका के दबाव में सरकार ने मंत्रिमंडल स्तर पर तो पहले ही इसे मंजूर कर लिया था, लेकिन देश में इसके विरुद्ध वातावरण को देखते हुए लग रहा था कि खुदरा क्षेत्र से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़े करीब 30 करोड़ लोगों के हितों के मद्देनजर अधिकांश राजनीतिक दल, जो लगातार एफडीआई के विरोध में आवाज उठा रहे थे, संसद में सरकार की मंशा को पूरी नहीं होने देंगे और देश के किसानों व एफडीआई के दंश से प्रभावित होने वाले करोड़ों व्यवसायियों के साथ खड़े होकर सरकार को परास्त कर देश को इस तबाही से बचाएंगे। लेकिन सत्ता स्वार्थों से दुष्प्रेरित समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे दलों ने देश की जनता के साथ विश्वासघात कर कांग्रेस के बगलगीर बनकर भारत की आर्थिक बर्बादी की राह आसान करते हुए सरकार को जिता दिया और देश को हरा दिया। सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने तो अपने उन शब्दों की भी लाज नहीं रखी जो उन्होंने एफडीआई का विरोध करते हुए बहस के दौरान संसद में बोले थे। इसी तरह मायावती ने अपनी पार्टी बसपा के एफडीआई विरोधी तेवरों को धता बताकर कांग्रेस के सामने समर्पण कर दिया और इन दोनों के समर्थन से कांग्रेस देश पर एफडीआई थोपने में सफल हो गई।
सरकार के एफडीआई पर आम सहमति बनाने के दावे की हवा तो तभी निकल गई जब लोकसभा में एफडीआई पर बहस के दौरान 18 में से 14 दलों ने इसका पुरजोर विरोध किया। यदि इनके सांसदों की संख्या 282 से ज्यादा है यानी पूर्ण बहुमत, फिर अल्पमत वाली सरकार कैसे जीत गई? जबकि बहस में एफडीआई का समर्थन करने वाले दलों के सांसदों की संख्या तो 224 ही बैठती है। वास्तव में यह लोकतंत्र की पराजय है कि जिन जनभावनाओं की अभिव्यक्ति आप लोकसभा में कर रहे हैं, सदन में मतदान के दौरान आपका आचरण उसके विपरीत हो जाए। जाहिर है, कोई न कोई दबाव इसके पीछे है, चाहे वह सीबीआई का हो या आगामी लोकसभा चुनाव के बाद संभावित सत्ता समीकरणों का। लेकिन यह तो सच है कि दबाव में आपने जनभावनाओं को कुचल दिया, उनके साथ विश्वासघात किया। मुलायम सिंह और मायावती भले ही तर्क गढ़ें कि साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ वे खड़े नहीं होंगे या संप्रग सरकार ने एफडीआई को स्वीकारना या न स्वीकारना राज्यों के ऊपर छोड़ दिया है इसलिए हम सरकार के साथ हैं, लेकिन जनता समझ रही है कि असलियत क्या है? यानी भाजपा, जिसे दोनों साम्प्रदायिक शक्ति बता रहे हैं, के साथ मिलकर जब उन्हें सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में आसानी रही, तब उसका साथ उन्हें साम्प्रदायिक नहीं लगा। जिस एफडीआई के विरोध में तृणमूल कांग्रेस ने संप्रग का साथ छोड़ दिया, केरल में स्वयं कांग्रेस उसके विरोध में है और महाराष्ट्र में कांग्रेस की सत्ता सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, उसी एफडीआई का विरोध करते हुए मुलायम सिंह अपने भाषण में सोनिया गांधी को कह रहे थे कि आपके नाम में गांधी आता है, उसकी लाज रखो, वे मतदान के समय सदन से अपनी पार्टी का 'देशहित में वाकआउट' करा देते हैं और सरकार उनकी पीठ पर चढ़कर एफडीआई लाने का रास्ता खोल देती है। इसके बावजूद मुलायम सिंह का यह कहना कि एफडीआई देश के किसानों व फुटकर व्यापारियों की तबाही लाएगी, राजनीतिक निर्लज्जता नहीं है? लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने ठीक ही कहा कि इन पार्टियों की कथनी-करनी का फर्क सामने आए, इसीलिए हमने मतदान का आग्रह किया था। मुलायम सिंह और मायावती ने जो किया, इससे बड़ा लोकतंत्र का कलंक और क्या होगा? इससे स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस और सपा-बसपा देखने में भले ही अलग-अलग दल हों, लेकिन इनके दिल एक हैं, जहां सिर्फ सत्ता स्वार्थ हिलोरें मारते हैं, देश का हित और जनता की भलाई इनके लिए सिर्फ बौद्धिक प्रवंचना है। सरकार ने संसद में एफडीआई के समर्थन में जो तर्क दिए हैं, वे कितने खोखले हैं यह एफडीआई के विरोध में संसद में दिए गए वक्तव्यों से स्पष्ट है कि एफडीआई आने से न तो किसानों का भला होगा, न बिचौलिए खत्म होंगे और न बेरोजगारी, बल्कि यह वालमार्ट जैसी विदेशी कंपनियों के हाथों देश को बेचने की तैयारी है, जिसकी राह मुलायम सिंह और मायावती के सहयोग से कांग्रेस ने आसान कर दी है। वास्तव में सरकार की जीत से विपक्ष को नहीं, देश को झटका लगा है। परमाणु समझौते के समय जिस तरह संप्रग सरकार ने सारी नैतिकता को ताक पर रखकर जोड़तोड़ से बहुमत जुटाया था और देश को सब्जबाग दिखाए थे, वे आज कहां हैं? इसी तरह अब एफडीआई को जादुई छड़ी बताने वाली सरकार देश को कितना बड़ा धोखा दे रही है, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन सरकार याद रखे कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई, अंतिम लड़ाई तो जनता के बीच होगी।
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