महत्वपूर्ण वैचारिकविषयों पर हुआ चिंतन
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महत्वपूर्ण वैचारिक
विषयों पर हुआ चिंतन
महाराष्ट्र के पुणे में गत दिनों प्रज्ञा प्रवाह की दो दिवसीय अखिल भारतीय बैठक सम्पन्न हुई। बैठक में अनेक महत्वपूर्ण वैचारिक विषयों पर चिंतन हुआ। कार्य व कार्य का स्वरूप, वर्तमान चुनैतियां तथा उसका स्वरूप तथा उसके परिप्रेक्ष्य में चिंतन और कार्य की दिशा एवं इन सभी परिस्थितियों में जिम्मेदारियां तथा अपेक्षाएं इत्यादि विषयों पर अनेक चिंतकों ने अपने विचार व्यक्त किए।
बैठक के समापन सत्र को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने संबोधित किया। श्री होसबले ने कहा कि पिछले एक दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जीवन में जो बदलाव आए उनसे हम सुपारिचित हैं। नई आर्थिक ताकतों ने सामाजिक-आर्थिक सच्चाई को इस हद तक बदल दिया है कि बौद्धिक आन्दोलन की धारा चाहे वामपंथ हो या दक्षिणपंथ या फिर मध्यमार्ग सबके सब गंभीर चुनैतियों का सामना कर रहे हैं। वामपंथ ने भारतीय यथार्थ को नकारा और आज वह अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है। पश्चिम और पूर्व जर्मनी के मिलन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों की संस्कृति मिलती-जुलती थी और राजनीति से एक कम्युनिस्ट और दूसरा लोकतंत्र था। उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को संस्कृति और संस्कार को सामाजिक दृष्टि से अपनाना आवश्यक है।
सह सरकार्यवाह के उद्बोधन से पूर्व रा.स्व.संघ, उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक डा. बजरंगलाल गुप्त ने स्वामी विवेकानंद के बारे में बताते हुए कहा कि स्वामीजी अमरीका के शिकागो में विश्व धर्मसभा में भाग लेने पहुंचे और उनको वहां जो अप्रतिम सफलता मिली उसके बारे में सारा विश्व जानता है। किन्तु वैचारिक एवं दार्शनिक स्तर पर उनकी भूमिका क्या थी, उनके योगदान क्या थे, इसका विवेचन हमें करना है। स्वामीजी के उत्तराधिकारी के नाते यह हमारा कर्तव्य बन जाता है। उन्होंने कहा कि भारत देश की अस्मिता का आधार धर्म है, इस विचार को स्वामी विवेकानंद ने आग्रहपूर्वक अपने सभी व्याख्यानों में प्रस्तुत किया। आज ऊपर से नीचे तक के स्तर पर दिख रहे भयंकर भ्रष्टाचार के राष्ट्र विनाशक वातावरण में उनका सन्देश संजीवनी के सामान है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रज्ञा प्रवाह के नवनियुक्त अखिल भारतीय संयोजक श्री सदानंद सप्रे ने की। बैठक में प्रो. बृजकिशोर कुठियाला, प्रो. शशि धिमानी, प्रो. सुषमा यादव सहित देशभर के 36 प्रांतों के संयोजकों ने भाग लिया।
बैठक के समापन के पश्चात आयोजन स्थल पर सार्वजनिक समारोह सम्पन्न हुआ। समारोह का विषय 'दलित कल्याण एवं सामाजिक और आर्थिक सुधार' था। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत नीति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा कि वंचितों के साथ अभी भी खुलेआम अन्याय हो रहा है। अनेक स्थानों पर इनकी मंदिरों में प्रवेश पर अभी भी पाबंदी है। यह एकदम असंवैधानिक और अधार्मिक है। उन्होंने कहा कि वंचित हिन्दू समाज का एक अंग हैं और रहेंगे।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा भाजपा नेता श्री संजय पासवान ने कहा कि वंचित समाज का एक बड़ा हिस्सा मानता है कि हिन्दू धर्म जितना गैर दलितों का है उतना ही उनका भी है। उन्होंने कहा कि सम्मान की चाह में जो वंचित हिन्दू धर्म छोड़कर गए उनका अनुभव बताता है कि समस्या का समाधान हिन्दू धर्म छोड़ने में नहीं, बल्कि वहीं रहकर संघर्ष के साथ अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराने में है। नागराज राव
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