घोटालों में एक-दूसरे को बचाने की भूमिका में सपा-बसपा
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उत्तर प्रदेश/ शशि सिंह
उत्तर प्रदेश के दो बहुचर्चित बिजली घोटालों की जांच सीबीआई से होनी चाहिए थी, इसकी मांग भी की जा रही थी लेकिन सपा-बसपा द्वारा एक-दूसरे के सहयोगियों को बचाने के चक्कर में इसकी जांच राज्य सतर्कता विभाग को दे दी गई। मुलायम सिंह यादव के शासनकाल (2003-2007) में राज्य के 65 जिलों में राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत गांवों का विद्युतीकरण होना था। सपा के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह उस समय राज्य विकास परिषद के अध्यक्ष थे। उस परिषद में तब अमिताभ बच्च्न, आदी गोदरेज, अनिल अंबानी, सुब्रतराय सहारा आदि थे। विकास परिषद ही विकास के सारे कार्यों की नीतिगत नियंता थी। अमर सिंह के इशारे पर ही विकास के सारे कामों को अंतिम रूप दिया जाता था। उसी समय 65 गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए रिलायंस इनर्जी, लार्सन टुब्रो समेत 16 बड़ी कंपनियों को ठेके दिए गए थे। सबसे ज्यादा 17 जिलों के विद्युतीकरण का काम रिलायंस इनर्जी को मिला। हरियाणा की एक कंपनी को भी ठेका दिया गया जो उस राज्य में काली सूची में है। उसके खिलाफ सीबीआई जांच चल रही है। इस काम में दक्षिण भारत की कई कंपनियां शामिल थीं। अलबत्ता अधिसंख्य गांवों का विद्युतीकरण नहीं हुआ, जिनका हुआ, आधा-अधूरा। विद्युतीकरण की सूची में ऐसे गांवों को शामिल कर लिया गया जहां पहले ही बिजली पहुंच चुकी थी। सीएजी ने सवाल उठाया तो उसे अनसुना कर दिया गया। किसी गांव में खंभे गाड़े गए तो तार नहीं खींचे गए, कहीं घटिया ट्रांसफार्मर लगाया गया, कहीं खंभे और तार लगे तो अन्य मानकों को किनारे किया गया। सामान के दामों में साढ़े तीन सौ गुना तक भुगतान किया गया। करीब 1600 करोड़ रुपये की बंदरबांट की बात सामने आई। जांच की मांग जोर पकड़ रही थी। माया ने कहा था कि सत्ता में आने पर उसकी सीबीआई से जांच कराएंगी। लेकिन जब सत्ता में आईं तो बहुत शोरशराबे के बाद राज्य सतर्कता विभाग को जांच सौंप दी। आज तक उसकी जांच का परिणाम नहीं आया। माया सत्ता से बेदखल भी हो गईं।
माया ने अमर सिंह को बचाया
तो अखिलेश रामवीर उपाध्याय
को बचा रहे हैं
इधर, माया के शासन (मई 2007-फरवरी 2012) में विपक्ष में रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने बिजली समेत अन्य घोटालों की जांच भी सीबीआई से कराने की घोषणा की थी लेकिन जब उनके पुत्र अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तो माया सरकार के बिजलीमंत्री रामवीर उपाध्याय के कार्यकाल में हुए करोड़ों रुपये के घाटालों की जांच भी राज्य के सतर्कता विभाग को सौंप दी, वह भी काफी हो-हल्ला मचने के बाद। जबकि लोकायुक्त ने पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो की कराने की सिफारिश की थी। अब तो उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी है कि माया ने अमर सिंह को बचाया तो अखिलेश ने रामवीर उपाध्याय को बचाने का काम किया।
शराब व्यवसाई पोंटी चड्डा (अब हत्या हो चुकी है) द्वारा माया सरकार में औने-पौने दाम पर खरीदी गई एक दर्जन चीनी मिलों की जांच भी विलंब से की गई। चुनाव सभाओं में मुलायम और अखिलेश ने कहा था कि सत्ता में आते ही इसकी जांच कराएंगे। लेकिन सत्ता में आने पर उन्होंने किसी भी जांच से मना कर दिया। छह माह बाद जब चौतरफा हो-हल्ला होने लगा और अखिलेश को उनके वादे की याद दिलाई जाने लगी तो उन्होंने इसकी भी जांच सीबीआई से न कराने का आदेश देकर राज्य की जांच एजेंसी के कराने का फैसला किया। इसी प्रकार जिस जेपी समूह की यमुना एक्सप्रेस हाईवे योजना का मुलायम सिंह विपक्ष में रहते हुए विरोध कर रहे थे, उसमें अधिग्रहण की गई किसानों की भूमि वापस दिलाने के लिए संघर्ष की बात कर रहे थे, सत्ता में आने पर उस पर चुप्पी साध ली। यही नहीं, उसका उद्घाटन करने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद गए। कई संवेदनशील मामलों में सत्ता और विपक्ष में रहते हुए एक-दूसरे का विरोध करने वाली सपा-बसपा के मुखिया बदली भूमिका में सहयोगी रुख अपना रहे हैं तो इसे मिलीभगत नहीं तो क्या कहा जाएगा।
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