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पाकिस्तान में अब मन्दिरों का सफाया

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Dec 22, 2012, 12:00 am IST
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पाकिस्तान में अब मन्दिरों का सफाया

दिंनाक: 22 Dec 2012 15:14:46

मुजफ्फर हुसैन

गत तीन दिसम्बर को भारत और पाकिस्तान के समाचार पत्रों में दो विरोधाभासी समाचार पढ़ने को मिले। भारत के अखबारों ने लिखा, 'भारत और पाक के बीच दिसम्बर मास के अंतिम सप्ताह में होने वाले क्रिकेट मैच के लिए भारत तीन हजार पाकिस्तानियों के लिए वीजा जारी करेगा। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान के 300 अधिकारियों को भी अलग से वीजा जारी करने का प्रावधान रखा गया है। पाकिस्तान की क्रिकेट टीम 22 दिसम्बर को भारत पहुंचेगी और 25 दिसम्बर से 6 जनवरी तक भारत में खेली जाने वाली श्रृंखला में भाग लेगी।'

उसी दिन पाकिस्तान के अखबारों में यह समाचार मुख्य रूप में प्रकाशित हुआ कि कराची के सोल्जर बाजार स्थित एक शताब्दी से भी अधिक पुराने राम पीर मन्दिर को एक 'बिल्डर' ने बड़ी निर्दयता के साथ ध्वस्त कर दिया। इस घटना को लेकर हिन्दुओं ने कराची एवं अन्य नगरों में जोरदार प्रदर्शन किया। दु:खद बाद तो यह है कि उक्त मन्दिर को लेकर सिंध उच्च न्यायालय में सुनवाई जारी थी। लेकिन 'बिल्डर' ने उच्च न्यायालय को भी धता बताकर मन्दिर को गिरा देने में कोई कसर शेष नहीं रखी। 'बिल्डर' की इस अवैधानिक कार्रवाई को लेकर कराची के गैर-मुस्लिमों में बड़ा असंतोष है। कराची और इस्लामाबाद से प्रकाशित समाचार पत्रों ने इस कार्रवाई की भर्त्सना भी की है। इस तोड़-फोड़ में सबसे बड़ा अमानवीय पहलू तो यह रहा कि 'बिल्डर' ने आसपास के उन मकानों को भी धराशायी कर दिया जिनमें वहां के लोग रह रहे थे। पाक अखबारों की जानकारी के अनुसार 40 परिवार बेघर के होकर सड़क पर आ गए। उक्त मन्दिर को तोड़ने के विरोध में पाकिस्तान हिन्दू कौंसिल ने कराची प्रेस क्लब के सम्मुख धरना आयोजित करने के साथ विशाल पैमाने पर प्रदर्शन किया। उन प्रदर्शनकारियों का दु:ख यह था कि जिस 'बिल्डर' ने दिन के उजाले में मन्दिर को बड़ी बेदर्दी के साथ धराशायी कर दिया उसके विरुद्ध प्रशासन ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। मन्दिर के आसपास रहने वालों ने प्रेस से शिकायत की कि हमारे घर तोड़ डाले, मन्दिर को गिरा दिया और हमारे देवताओं का अपमान कर हमारी धार्मिक आस्था को बुरी तरह से घायल कर किया। धरना देने वाले अपने बच्चों के साथ रो-रोकर अपनी व्यथा व्यक्त कर रहे थे। उनका सवाल था हम तो पाकिस्तान के नागरिक हैं। यहां के संविधान के तहत शांति से रहते हैं। लेकिन फिर भी हमारे पर अत्याचार करने वालों को पुलिस न तो पकड़ रही है और न ही उन पर किसी प्रकार की अब तक कोई कानूनी कार्रवाई की है। 'बिल्डर' कराची का जाना-माना अपराधी है इसलिए उससे लोग भयभीत हैं। जनता ही नहीं सरकार भी उससे डरती है। पुलिस अपना हफ्ता लेकर चुपचाप है। इन बेचारे बिना घर के लोगों की पूछ-परछ करने वाला कोई नहीं है। इससे अधिक, घटना का दु:खद पहलू तो यह है कि मन्दिर तोड़ने वालों ने मन्दिर में रखी चार मूर्तियों को एक ओर रख दिया। लेकिन उन मूर्तियों पर चढ़े आभूषणों का कोई पता नहीं है।

वे रो-रोकर कह रहे थे मन्दिर में रखी सभी मूल्यवान वस्तुओं को लेकर असामाजिक तत्व भाग खड़े हुए। मन्दिर में प्रतिदिन पूजा के लिए जाने वाले व्यक्ति एवं उस मन्दिर के पुजारी का वक्तव्य था कि इस प्रकार की गंदी हरकत करने का आदेश स्वयं उस 'बिल्डर' ने दिया था। प्रतिदिन मन्दिर जाने वाले एक व्यक्ति का कहना था कि मैंने मन्दिर में लूट मचाने वाले को जब पकड़ा तो उनमें से एक व्यक्ति ने मेरे सामने बंदूक तान दी। लक्ष्मण नामक एक अन्य श्रद्धालु ने कहा कि मन्दिर तोड़ने और आभूषण लूटने के स्थान पर तुम मेरी जान ले लो लेकिन मेरी आस्था से मत खेलो लेकिन मुझे पीटकर अधमरा कर दिया गया। कुछ लोग मेरे ऊपर चढ़ गए, यहां तक कि मैं बेहोश हो गया था। इसके पश्चात् मुझे कुछ भी पता नहीं चला कि वहां क्या हुआ? पाक समाचार पत्रों में छपी रपट के अनुसार बनवारी नामक महिला ने रोते-रोते कहा मैं तो घर में खाना पकाने की तैयारी कर रही थी। जब मन्दिर पर 'बुलडोजर' चला तो मैं भागकर बाहर गई। तब तक तो मेरे घर को भी तोड़ने की शुरुआत हो गई। मैंने घर तोड़ने वाले दस्ते से कहा मैं बहुत गरीब हूं। मेरा पति काम पर चला गया है। मेरे बच्चों को नाश्ता कर लेने दो। तब तक तो मेरे सिर पर कुदाली-फावड़े से हमला कर दिया गया। मेरी घर-गृहस्थी लुट गई। गरीब की रोटी उस मलबे में कहीं दफन हो गई। वह रो-रो कर दैनिक जंग के एक संवाददाता को कह रही थी साहब हमारा क्या कसूर था? हमारे देवता ने क्या बिगाड़ा था? हमारे घरों को और हमारी आस्था को इस तरह से मटियामेट करके उन्हें क्या मिला? जनता देख रही थी लेकिन उन गुंडों से सभी भयभीत थे। कोई हमारी सहायता के लिए नहीं आया।

अराजकता का राज

'बिलडर' के गुंडे जब मन्दिर तोड़ने के लिए गए थे उस समय उन्होंने सबसे पहले मन्दिर के परिसर को घेर लिया। गुंडों की टोली अपने हाथ में बंदूकें, तलवारें और लाठियां लेकर घेरा बनाए हुए थे। अखबारों को जब समाचार मिले तो वे तब तक टूटे हुए मन्दिर के मलबे पर नहीं पहुंच सके जब तक कि वहां से मन्दिर का नामोनिशान नहीं मिटा दिया गया। समाचार लेने आए लोग कह रहे थे ऐसा अत्याचार और नादिरशाही तो पाकिस्तान में कभी नहीं देखी गई। लेकिन प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। कराची जैसे बड़े नगर में अराजकता का राज था। कराची में सिंधी और पठानों में हमेशा संघर्ष रहता है। इसलिए पठान चिल्ला रहे थे मारो उनको। पाकिस्तान से भगा दो। कराची में भारत से गए मुहाजिरों का बहुमत है। इन हिन्दुओं की गिनती भी वे मुहाजिरों में करते हैं। लेकिन ये बेचारे तो आठ-दस पीढ़ियों से यहीं रहते हैं। वे किसी विवाद में नहीं पड़ते। लेकिन उनके मतदाता होने के बावजूद कौमी मुहाजिर मूवमेंट के लोगों ने उन्हें नहीं बचाया और न ही जिए सिंध के स्वयंसेवकों ने। उक्त घटना के चित्र जब पाक टीवी पर दिखलाए गए और समाचार पत्रों में छापे गए तो उन्हें देखकर पाकिस्तान के जागरूक और इंसानियत-परस्त लोग आंसू बहाने लगे। ऐसा तांडव तो उन्होंने विभाजन के समय में भी नहीं देखा था।

पाकिस्तान के उर्दू दैनिकों ने इस समाचार को कोई महत्व नहीं दिया। उन्होंने किन्तु और परन्तु की भाषा में इस पर जो लिखा है वह केवल स्वयं तो संतुलित विचारों के दैनिक सिद्ध करने का प्रयास किया है। अंग्रेजी के दैनिक डान ने पत्रकारिता का धर्म निभाते हुए उस पर सम्पादकीय लिखा है, जिसका शीर्षक है 'पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम।' डान ने कराची में एक गैर-इस्लामिक धार्मिक स्थल को गिराए जाने की कटु आलोचना की है। डान ने मन्दिर शब्द का उपयोग क्यों नहीं किया यह एक हास्यास्पद बात है। गैर-इस्लामी तो वहां अहमदिया और ईसाई भी हैं। शियाओं को अब तक गैर-इस्लामी कहने की उनकी हिम्मत नहीं हुई है। पाकिस्तान अपने आपको केवल और केवल सुन्नी मुसलमानों का देश ही कहलाने में गर्व करता है। हिन्दू समाज की गणना भी 'गैर-मुस्लिमों' में होना एक स्वाभाविक बात है। हिन्दू शब्द के साथ मन्दिर शब्द का उपयोग करना अनिवार्य हो जाता इसलिए पाकिस्तान में 'गैर-मुस्लिम' शीर्षक देकर डान ने अपनी नजरें चुरा लेना उचित समझा। पत्रकारिता की कसौटी पर इसे ठीक नहीं कहा जाएगा लेकिन कट्टरवादियों के बीच अखबारों को आंख-मिचौनी तो करनी ही पड़ती है। डान लिखता है कि 'इस घटना ने कुछ परेशान करने वाले सवाल उठा दिए हैं। यह वास्तव में पाकिस्तान के मुसलमानों के इसी देश के गैर-मुस्लिमों के प्रति ईर्ष्या के रवैये को सामने रखता है।' बताया जाता है कि इस जगह को लेकर 'बिल्डर' और धार्मिक स्थल में रहने वालों के बीच झगड़ा चल रहा है और यह मामला न्यायालय में है। यह 'बिल्डर' इस जगह पर अपनी मिल्कियत बता रहा है। उधर धार्मिक कौंसिल और रहवासी कह रहे हैं कि उन्हें इमारत गिराने से पहले चेतावनी तक नहीं दी गई। इतना ही नहीं, इस दौरान उनका सामान बाहर फेंक दिया गया। मन्दिर तोड़ दस्ते के साथ आए लोगों ने आभूषण भी गायब कर दिए। इमारत के अहाते में रहने वालों का कहना है कि उनके परिवार के लोग सदियों से यहां रहते आए हैं। कई बार इस जगह को छोड़ देने के लिए उन्हें परेशान किया गया। जबकि केंटोनमेंट बोर्ड के अफसरों का कहना है, 'इमारत उसके अधिकार क्षेत्र में आती है और जो हिस्सा गिराया गया है उस पर जबरन कब्जा किया गया था। ऐसा करते समय मामले की संवेदनशीलता को ध्यान में रखना चाहिए था, क्योंकि आस्था की जगह इससे जुड़ी हुई थी। पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों के साथ बराबर का बर्ताव नहीं हो रहा है, बल्कि वे हाशिये पर नजर आ रहे हैं।'

सोचा–समझा नुस्खा

किसी अल्पसंख्ययक वर्ग का सफाया करना है तो उसके प्रार्थना स्थलों को समाप्त कर दो। यह विदेशी आक्रांताओं का एक सोचा-समझा नुस्खा है। इसलिए पाकिस्तान से सिखों, ईसाइयों, अहमदियों और हिन्दुओं को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान में आए दिन इस प्रकार की घटनाएं घटती हैं। विभाजन के बाद सिखों के 38 गुरुद्वारे ध्वस्त किए गए। हिन्दुओं के 127 मन्दिर मटियामेट कर देने का रिकार्ड स्वयं पाकिस्तान सरकार के दस्तावेजों में है। ईसाइयों के कुछ चर्चों को तो खरीद लिया गया और कुछ को ढहा दिया गया। अहमदियों के प्रार्थना स्थलों को, जिन्हें मस्जिद कहा जाता था, उन्हें जबसे गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया है तब से उनके मुख्यालय रबवा क्षेत्र में ही 29 मस्जिदों को अमान्य कर उन्हें गिरा दिया गया। अहमदिया अब अपने प्रार्थना स्थल मस्जिद के समान निर्माण नहीं कर सकते। अल्पसंख्यक जो दलित थे उन्हें और ईसाइयों को सफाई कर्मचारी बन जाने के लिए मजबूर किया गया। पाकिस्तान में ईसाइयों को जल्लाद का काम करने पर मजबूर किया जाता है। तारा मसीह ने जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी का फंदा खींचा था, यह पाठकों को अवश्य ही याद होगा।

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