लड़ाई को कमजोर करने की साजिश
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भ्रष्टाचार पर हो संगठित प्रहार, कांग्रेस कर रही है भ्रष्टाचार के विरुद्ध
सत्ता केन्द्रित दलगत स्वार्थों की वजह से
खतरे में संवैधानिक संस्थाएं
पिछले दिनों संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रावर्ट वाड्रा द्वारा सरकारी साधनों का इस्तेमाल करके किए गए जमीन घोटालों को जिस तरह से नजरअंदाज किया गया उससे तो यही साबित होता है कि भविष्य में भी इस तरह की भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था चलती रहेगी। अगर डा.मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चल रही सोनिया निर्देशित सरकार के पिछले चार वर्षों में पकड़ में आए घपलों, घोटालों पर ही नजर डालें तो साफ हो जाता है कि पूरा तंत्र ही भ्रष्ट है। सभी एक-दूसरे को बचाने की व्यवस्था किए हुए हैं। किसी पर किसी का अंकुश नहीं। टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमण्डल खेल घपला, आदर्श सोसायटी का गोलमाल, कोलगेट महाषड्यंत्र, रावर्ट वाड्रा डी एल एफ घालमेल, सलमान खुर्शीद द्वारा संचालित विकलांग सेवा ट्रस्ट में हेराफेरी और सोनिया-राहुल पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप इत्यादि सब के सब सरकारी छत्रछाया में दबाए जा रहे हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय के अनुसार केन्द्रीय सत्ता फैसले लेने और कार्रवाई करने में विफल साबित हो रही है।
वास्तव में कैग की रपटों में हुए सत्ताधारियों के भ्रष्टाचार के खुलासों से सरकार हिल चुकी है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री सहित पूरी सरकार ही इस तरह की संवैधानिक संस्थाओं के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रही है। अब तो कैग के ढांचागत संवैधानिक स्वरूप को ही बदल डालने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस संस्था के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर इसमें अपने वफादारों को भरने के बंदोबस्त करने में जुट गई है सरकार। प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री वी.नारायण सामी ने तो स्पष्ट भी कर दिया है कि कैग के बहुसदस्यीय वर्चस्व संबंधी शुंगलू समिति के सुझावों पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। विपक्षी दलों और संविधान के विशेषज्ञों की राय के विपरीत यदि कैग के स्वरूप को बदल डाला गया तो इसकी स्वायत्तता और कार्यक्षमता समाप्त हो जाएगी। यह संस्था भी सीबीआई की तरह पूर्णतया सरकार और सत्ताधारी दल के पूर्ण नियंत्रण में चली जाएगी। इस असंवैधानिक व्यवस्था के चलते भ्रष्टाचारियों को अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरी स्वतंत्रता मिल जाएगी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धा पराजित होंगे।
समूची सरकार और प्रशासनिक तंत्र पर
भ्रष्ट तत्वों का कब्जा
समूचे देश में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध तैयार हुए माहौल में गर्मी आ रही है। सत्ताधारी खेमे की भ्रष्ट करतूतों से दुखी हो चुकी अपने देश की जनता अब सड़कों पर उतरने के लिए हाथ पांव मार रही है। पिछले दिनों सामाजिक कार्यकर्त्ता अण्णा हजारे और पतंजलि योगपीठ के संचालक स्वामी रामदेव द्वारा छेड़े गए जनांदोलनों ने आम जन की इस पीड़ा का परिचय दिया था। यद्यपि सरकार ने जनता के इस आक्रोश को दबाने/कुचलने की भरसक कोशिश की है तो भी सत्ताधारियों की पोल पट्टी खोलने वाले अभियान समाप्त नहीं हुए। राबर्ट बाढरा व सलमान खुर्शीद से जुड़े मामले सामने आने से स्पष्ट है कि सरकार की राजनीतिक मंशा अथवा उद्देश्य इन आरोपों से मुकर जाने और इन्हें लगाने वालों को ही बदनाम करके किनारे कर देने की रहती है।
इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के छ: दशक बीत जाने के बाद भी देश भ्रष्टाचारियों के चंगुल से निकल नहीं पाया। इस संदर्भ में हुए खुलासों से तो यही दिखाई देता है कि राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों, उद्योगपतियों, माफिया गिरोहों और अनेक प्रकार के सिद्धहस्त असामाजिक तत्वों में गहरी साठगांठ है। अगर ऐसा न होता तो यह सरकार कैग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की रपटों के विरुद्ध खड़ी न होती और न कैग को बहुसदस्यीय बनाए जाने की मांग उठाकर उसे प्रभावहीन करने की कोशिश संप्रग के एक मंत्री की ओर से की जाती। सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचारियों पर इस सरकार ने रुखे मन से जो भी थोड़ी बहुत कार्रवाई की है वह न्यायालय के आदेशों से ही की है। अन्यथा तो सरकार इन्हें बचाने और इनके कुकृत्यों पर पर्दा डालने में ही व्यस्त रहती है।
आए दिन भ्रष्टाचार के ढेरों खुलासों से
हिल गईं कांग्रेस की चूलें
सत्ता के संरक्षण में पनप रहे इस भ्रष्टाचार के अंधेरे में उजाले की एक किरण यह दिखाई दे रही है कि सरकारी निरंकुशता के बावजूद अनेक राजनीतिक एवं गैर राजनीतिक योद्धा अपने हथियार पैने कर रहे हैं। अण्णा हजारे एवं बाबा रामदेव के बाद अब अरविंद केजरीवाल और डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सत्ताधारियों के भ्रष्टाचार के जो खुलासे सार्वजनिक किए हैं उनसे तो यह सरकार पूरे सकते में आ गई है। जैसे कोई बौखलाया व्यक्ति असभ्य और असंयमित हो जाता है, ठीक वैसे ही यह सरकार बौखलाकर विपक्ष पर बेबुनियाद आरोपों की झड़ी लगा रही है। पिछले पखवाड़े सूरजकुंड, हरियाणा में सम्पन्न हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने कांग्रेसी नेताओं को आक्रामक होकर विपक्ष के आरोपों का उत्तर देने की हिदायतें दी हैं। यह काम दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी, राशिद अल्वी और जनार्दन द्विवेदी जैसे नेताओं को सौंपा गया है। यह विपक्ष को दबाने, भ्रष्टाचारियों को बचाने और सामाजिक योद्धाओं को पराजित करने का ऐलान है।
अब चुनाव आयोग ने डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी को उनकी दलील सुने बिना ही दरकिनार कर दिया है। डा.स्वामी ने आरोप लगाया 'कांग्रेस पार्टी ने ऐसोसिएटिड जर्नल्स लिमिटेड को 90 करोड़ रु. का ब्याज मुक्त ऋण दिया था, जो मृत प्राय: नेशनल हैराल्ड का स्वामी है। यह ऋण ए जे एल की देनदारियों को चुकाने के लिए दिया गया था। बाद में कंपनी एक्ट की धारा 25 के तहत एक नई कंपनी 'यंग इंडिया' का गठन किया गया जिसमें 76 प्रतिशत हिस्सेदारी सोनिया गांधी और राहुल की है।' अरविंद केजरीवाल ने एक कदम और आगे बढ़कर खुलासा किया है कि 'मल्टीनेशनल एच एस बी सी बैंक की गतिविधियां देश में भ्रष्टाचार, फिरौती, अपहरण, तस्करी और आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है। इस बैंक के माध्यम से पाकिस्तान में बैठा आतंकी आसानी से भारत स्थित दूसरे आतंकी को हवाला के जरिए पैसा भेज सकता है।' केजरीवाल के मुताबिक 'अंबानी ब्रदर्स, जैट एयरवेज के प्रमुख नरेश गोयल, कांग्रेस की एम पी अनु टंडन और डाबर ग्रुप के बर्मन ब्रदर्स के खाते इस बैंक की जिनेवा शाखा में हैं। इनके 700 खातों में 6 हजार करोड़ रु.जमा हैं।' यह बहुत ही सनसनीखेज और गंभीर आरोप है जिनका संबंध देश की सुरक्षा व्यवस्था के साथ है। सरकार इन घोटालों को भी राजनीतिक लहजे में खारिज कर रही है।
निरंकुश सरकारी तख्त को पलटने के लिए
सामूहिक प्रयास की जरूरत
2009 में संसदीय चुनावों के मौके पर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कालेधन का मुद्दा उठाकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध वर्तमान जंग का ऐलान किया था। फिर स्वामी रामदेव ने विदेशों में जमा कालेधन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने की मांग पर जनांदोलन छेड़ दिया। सरकार ने बाबा के दिल्ली सम्मेलन को बर्बरता से कुचल डाला। इसी तरह अण्णा हजारे ने जन लोकपाल बिल की मांग पर जनांदोलन और अनशन किया। सारा देश वंदेमातरम् और इंकलाब जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा। केन्द्रीय सरकार विशेषतया प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह ने अण्णा के साथ झूठे वादे किए, आश्वासन दिए और बाद में धोखा देकर अण्णा को ही बदनाम करने में जुट गए। अण्णा के सहयोगी केजरीवाल ने नया राजनीतिक दल बनाने का निश्चय किया है जबकि अण्णा हजारे इस आंदोलन को गैर राजनीतिक ही रखना चाहते हैं। वे 30 नवंबर से देशव्यापी जनजागरण अभियान शुरू कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को धराशायी करने के अभियान में जुटी सभी शक्तियों को अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर इस भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध एक संगठित आंदोलन छेड़ना चाहिए ताकि बंटी हुई ताकत का फायदा भ्रष्ट तंत्र को न मिल सके। अन्यथा इस जंग में सत्ताधारियों को मजबूती मिलेगी। भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयमित और संगठित संघर्ष की जरूरत है न कि बिखरे हुए अभियानों की। दलों के दल में एक और नए दल के उग आने से बिखराव और भटकाव दोनों बढ़ेंगे। छ: दशकों के अनुभवी और भ्रष्टाचार करके और बचने में माहिर कांग्रेसी सत्ताधारियों को पराजित करने के लिए एक ठोस और संगठित संघर्ष होना चाहिए। यही समय की आवश्यकता है।
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