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मेरठ/ अजय मित्तल
'अविरल और निर्मल गंगा' की मांग को लेकर गंगासागर से गंगोत्री तक की 38 दिन लम्बी 'गंगा समग्र यात्रा' पर निकलीं साध्वी उमाश्री भारती का मेरठ पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। यहां बच्चा पार्क में आयोजित एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जैसे ताजमहल के संरक्षण के लिए उसे विश्व विरासत घोषित किया गया है, उसी प्रकार गंगा को बचाने के लिए उसको भी विश्व धरोहर घोषित किया जाना जरूरी है। भारत सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर केवल शाब्दिक खानापूर्ति की है। वास्तव में सिसकती गंगा को निर्मल कर उसे बचाने की दिशा में कुछ नहीं किया गया। गंगा की निर्मलता के लिए उसका अविरल बहना भी आवश्यक है। 'भारत माता की जय' और 'गंगा माता की जय' के नारों के बीच सुश्री उमा भारती ने कहा कि गंगा को बचाने के लिए हम सड़क से संसद तक जन-जागरण कर रहे हैं। हमने 725 सांसदों को गंगा जल बांटा है। इनमें से 722 सांसद गंगा के अवरिल बहने पर सहमत हैं। महामहिम राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी गंगा के लिए चिंतित हैं। हमने सांसदों को गंगा की एक धारा अविरल बनाये रखने के लिए सहमत किया है, क्योंकि बिना अविरल हुए गंगा नहीं बचेगी। हमने मांग की है कि 'गंगा एक्शन प्लान' के लिए केन्द्र सरकार द्वारा घोषित 3 हजार करोड़ रुपए तत्काल मुक्त किये जाने चाहिए, ताकि गंगा के किनारे नालों पर 'वाटर ट्रीटमेंट प्लांट' लगाए जा सकें।
सुश्री उमाभारती ने कहा कि हम बांध और उससे बिजली उत्पादन के विरोधी नहीं हैं, पर इनके कारण गंगा की हत्या नहीं की जा सकती। अंग्रेजों ने भी जब गंगा नदी पर हरिद्वार में बांध बनाया तो पं. मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में हिन्दुओं के आग्रह पर एक अविरल धारा छोड़ दी थी। यह रामगंगा कहलाती है। उन्होंने कहा कि जीवन-मरण के हर पग पर गंगा का साथ जरूरी होता है। हम पैदा होने से लेकर मृत्यु तक पवित्रता पाने के लिए गंगा जल का ही प्रयोग करते हैं। पर आज गंगा जल को अपवित्र हुआ देखकर हृदय दु:ख से फट जाता है। इसीलिए हमने यह स्थिति बदलने की मन में ठानी। हमने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के नेतृत्व से मंत्रणा की। संघ ने इस यात्रा को अराजनीतिक बनाने का विचार रखा और हमने उसे स्वीकार किया। हमने गत 21 सितम्बर को 'सर्वार्थ सिद्ध योग' के दिन गंगासागर में पूजा कर, संकल्पबद्ध हो, यात्रा प्रारंभ की है। 28 अक्तूबर को गंगोत्री पहुंचकर यह यात्रा पूर्ण होगी। हमने प्रधानमंत्री से कहा कि वे 'एफडीआई' की जगह गंगा की शरण लें। 'एफडीआई' से रोजगार छिनेगा जबकि गंगा 50 करोड़ लोगों को रोजगार देने में सक्षम है। हमने गोहत्या कानून को भी सख्ती से लागू करने की मांग की है।
सुश्री उमा भारती ने सभा में उपस्थित लोगों को 'गंगा बचाने का संकल्प' कराया। उन्होंने 2 दिसम्बर को गंगा के तटों पर एकत्र होकर इस हेतु मानव श्रृंखला निर्माण करने का आह्वान किया। उपस्थित जन समुदाय ने सभास्थल पर इस उद्देश्य के लिए संकल्प पत्र भी भरे। उन्होंने बताया कि इस अभियान में वैज्ञानिकों को शामिल करने के लिए 20 नवम्बर को दिल्ली में एक बड़ा सम्मेलन भी किया जायेगा।
असम/ मनोज पाण्डेय
उल्फा की सक्रियता से व्यापारियों में भय का वातावरण
'रुपये दो या गोली खाओ'
असम में एक तरफ जहां उल्फा के एक गुट की सरकार के साथ शांति वार्ता जारी है वहीं दूसरी ओर उल्फा के सेना प्रमुख परेश बरुआ गुट के कारण लोगो में पुन: आतंक और भय का वातावरण बन रहा है। उल्फा के इस गुट ने ऊपरी असम सहित डिब्रूगढ़ जिले में व्यापक 'धन उगाही अभियान' छेड़ दिया है। इसके लिए नई रणनीति के तहत बेरोजगार युवकों को रुपये का लालच देकर उल्फा अपने 'लिंक मैन' के रूप में प्रयोग कर रहा है। डिब्रूगढ़ जिले में खोवांग अंचल में सेना व पुलिस ने संयुक्त रूप से अभियान चलाते हुए पिछले दिनों उल्फा के दो 'लिंक मैनों' को पकड़ने में सफलता प्राप्त की। उनके पास से एके 47 की गोलियां व 'डिमांड नोट' बरामद हुआ है। डिमौ अंचल स्थित घिशा होटल के मालिक व राजू मित्तल सहित कई अन्य व्यापारियों से पिछले दिनों 10 लाख रुपयों की मांग करते हुए एक 'डिमांड नोट' भेजा गया था, जिससे उल्फा के वित्तीय विभागीय सचिव जीवन मोरान ने हस्ताक्षर थे। इसमें साफ सन्देश था कि 'या तो रुपये दो या गोली खाओ।'
इस घटना के बाद डिमौ सहित डिब्रूगढ़, शिवसागर व तिनसुकिया जिलों के व्यापारियों में काफी भय का वातावरण है। उल्फा के पुन: सक्रिय होने के बाद बहुत से व्यापारी बीते हुए समय को याद कर घबरा उठते हैं कि कहीं फिर से असम की भूमि खून से लाल न हो जाये। सूत्रों के अनुसार, 'दुर्गोत्सव के दौरान उल्फा हमला कर सकता है', इसकी सूचना के बाद सेना व पुलिस ने जिले के विभिन्न अंचलों में तलाशी अभियान छेड़ दिया। इसी दौरान दो युवकों को सेना व पुलिस के जवानों ने ए.के. 47 रायफल के 4 कारतूस व चार डिमांड नोट के साथ गिरफ्तार किया। सूत्रों के अनुसार उल्फा ने डिब्रूगढ़ के कई व्यापारियों को 'डिमांड नोट' के साथ गोली भेजकर धन उगाही करने की योजना बनाई है। वहीं उल्फा के सेनाध्यक्ष परेश बरुआ के वीडिया के माध्यम से सार्वजनिक रूप से दिखने के बाद उल्फा की सक्रियता काफी बढ़ गई है।
महाराष्ट्र/ द.वा आंबुलकर
दिल्ली पुलिस की सक्रियता से टली अनहोनी
क्या कर रही है महाराष्ट्र पुलिस?
दिल्ली पुलिस के आतंकवादी निरोधी दस्ते ने गत 11 अक्तूबर को तीन आतंकवादियों को गिरफ्तार कर किसी बड़ी अनहोनी को टाल दिया। गिरफ्तार किए गए ये तीनों आतंकवादी इसी वर्ष 1 अगस्त को पुणे में हुए 4 सिलसिलेवार बम धमाकों के लिए जिम्मेदार हैं। प्रारंभिक पूछताछ में पता चला है कि वे नवरात्रि के दिनों में दिल्ली के किसी प्रमुख मंदिर तथा बोधगया (बिहार) के ऐतिहासिक बौद्ध मंदिर में बम धमाका करने की योजना बना रहे थे। इनके ही एक और साथी इमरान मुस्तफा को दिल्ली पुलिस की इस विशेष शाखा ने 18 अक्तूबर को जयपुर के बस स्टैण्ड से भी गिरफ्तार कर लिया है। इमरान खान (निवासी औरंगाबाद, उम्र 31 वर्ष), असद खान (निवासी नांदेड, उम्र 33 वर्ष) तथा सैयद फिरोज उर्फ हमजा (निवासी पुणे, उम्र 38 वर्ष) की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर यह बात साफ हो गयी है कि इस्लामी आतंकवाद खासकर इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े आतंकवादियों के लिए महाराष्ट्र, विशेषकर पुणे, गढ़ बन गया है और इन आतंकवादियों ने महाराष्ट्र के मराठवाड़ा संभाग में अपना जाल फैला लिया है।
कश्मीर से बाहर देशभर में आतंकवाद के शुरुआती दौर में कट्टरवादी- जिहादी गतिविधियों को अंजाम देने तथा मुस्लिम युवकों को अपने चंगुल में फंसाने के लिए स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) का गठन किया गया था। सिमी के कारण ही इस्लामी आतंकियों ने पुणे में अपना केन्द्र बना लिया। बढ़ती आतंकी गतिविधियों के कारण जब सिमी पर प्रतिबंध लग गया तो 'सिमी' ने ही 'इंडियन मुजाहिदीन' नामक नया गुट बनाते हुए गतिविधियां जारी रखीं। इंडियन मुजाहिदीन ने पुणे का प्रयोग खुफिया गतिविधियों के अलावा अपने कार्यकर्ताओं को पनाह देने के लिए करने का क्रम जारी रखा। हां, यह जरूर था कि इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े पहले आतंकी पुणे में विस्फोट जैसी आतंकवादी गतिविधियों से परहेज करते थे। लेकिन 13 फरवरी, 2010 को पुणे के कोरेगांव पार्क क्षेत्र में स्थित 'बेस्ट बेकरी' को जोरदार धमाकों से उड़ाकर उन्होंने अपने मंसूबे साफ कर दिए। 1 अगस्त, 2012 को हुए 4 बम विस्फोट उन आतंकवादी गतिविधियों का अगला पड़ाव था।
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में आतंकवादियों का विस्तार हो रहा है, इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी हो जाती है कि पिछले एक साल में महाराष्ट्र के इसी मराठवाड़ा क्षेत्र के औरंगाबाद, जालना, परभणी तथा बीड़ जिलों से पुलिस तथा आतंकवाद निरोधी दस्तों ने एक दर्जन से अधिक जिहादियों-आतंकवादियों को धर दबोचा। इसके अलावा इसी संभाग के जिन 4 आतंकवादियों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया उनकी गतिविधियों के तार कर्नाटक में सक्रिय आतंकवादियों से भी जुड़े हुए पाये गये। सन 2006 में औरंगाबाद में हथियार एवं विस्फोटक पदार्थों का जो बड़ा भंडार मिला था, उसमें इंडियन मुजाहीदीन के स्थानीय तौर पर सक्रिय बीड़ निवासी फैयाज कागजी तथा औरंगाबाद निवासी औकाफ बियाबानी तथा आमीर शकील के नाम मुख्य रूप से सामने आये थे। इनका सीधा संबंध कश्मीर में उन दिनों सक्रिय असलम तथा जुनैद के माध्यम से पाकिस्तानी आतंकवादियों से भी था। उल्लेखनीय है कि स्थानीय पुलिस एवं मुम्बई स्थित आतंकवाद निरोधी दस्ते द्वारा की गयी संयुक्त कार्रवाई में मई, 2006 में 11 ए.के. 47 रायफल्स, उसकी 2200 राउंड गोलियां तथा 33 किलो आरडीएक्स एक जीप से बरामद किया गया। उन्हीं दिनों नासिक तथा मालेगांव में विस्फोटकों एवं शस्त्रों से भरी एक लावारिस कार पायी गयी, जिसकी सचाई पर से अब तक पर्दा नहीं उठ पाया है। मराठवाड़ा में विस्फोटक एवं हथियार जमाकर आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाला प्रमुख सूत्रधार तथा वहां से शस्त्र एवं विस्फोटकों की अन्य स्थानों पर आपूर्ति करने वाला खूंखार आतंकवादी सैयद जबीउद्दीन उर्फ अबू जिंदाल तब पुलिस को झांसा देकर पाकिस्तान भाग गया था। पर उसके खास साथी फैय्याज कागजी को दिल्ली पुलिस ने जून, 2012 में गिरफ्तार किया तो कई तथ्य उजागर हुए। इस फैय्याज कागजी (मूलत: औरंगाबाद का निवासी) ने संपर्क के द्वारा मराठवाड़ा के 100 से भी अधिक मुस्लिम युवकों को जोड़ रखा था। फैय्याज के संपर्क-सूत्र पाकिस्तान से लेकर सऊदी अरब तक थे। अबू जिंदाल की गिरफ्तारी के बाद अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि जिंदाल और कागजी के तार आज से 10 साल पहले ही 'लश्कर ए तोयबा' से जुड़े हुए थे। इन सबकी गिरफ्तारी के बावजूद स्थित चिंताजनक इसलिए लगती है कि स्थानीय पुलिस से लेकर राज्य स्तर का पुलिस-प्रशासन इन सारी आतंकी गतिविधियों को अनदेखा करता है। इसी का परिणाम यह है कि स्थानीय तथा राज्य पुलिस को झांसा देकर बच निकलने वाले ये आतंकवादी कहीं और पकड़े जाते हैं। और तब महाराष्ट्र सरकार तथा उनके प्रशासन को पता चलता है कि उनके राज में क्या-क्या हो रहा है और क्या होने जा रहा था।
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