पाठकीय:अंक-सन्दर्भ 0 30 सितम्बर,2012
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने योगमुद्रा में इस नश्वर शरीर को छोड़ा। ऐसी मृत्यु बहुत कम लोगों को मिलती है। श्री सुदर्शन आजीवन मां भारती की सेवा में लगे रहे। उम्र के इस पड़ाव में भी वे निरन्तर प्रवास करते थे। वे भारत माता के अनन्य भक्तों में से एक थे।
–गणेश कुमार
पटना (बिहार)
0 सुदर्शन जी का नाम विश्व के भाल पर अनंत काल तक अंकित रहेगा। उन्होंने स्वयंसेवकों को जो सुमार्ग दिखाया है, उसी पर हम आगे बढ़ते रहें। उनका 'सुदर्शन चक्र' चलता रहेगा और हमें राष्ट्र-सेवा, हिन्दू एकता और अखण्ड राष्ट्र के लिए प्रेरित करता रहेगा।
–ठाकुर सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा
कांडरवासा, रतलाम-457222(म.प्र.)
0 सुदर्शन जी बड़े मृदुभाषी थे। किसी बात को वे मंच से बड़े ही सरल ढंग से समझाते थे। मुझे भी अनेक बार उनके विचार सुनने का अवसर मिला। उनके जीवन के संस्मरणों से प्रेरणा लेकर हम आगे बढ़ें। इससे हमारा राष्ट्र मजबूत होगा।
–दिनेश गुप्ता
कृष्णगंज, पिलखुवा, गाजियाबाद (उ.प्र.)
0 सुदर्शन जी का जाना पूरे समाज के लिए क्षति है। वे सही मायने में राष्ट्र-आराधक थे। उनके जीवन का एक-एक क्षण समाज और देश को समर्पित था। वे अद्भुत प्रतिभा के भी धनी थे। उनकी प्रेरणा से 'सर्वपंथ समादर मंच' ने भारतीयों के बीच सद्भावना फैलाने का स्तुत्य कार्य किया। उनका मानना था कि इस्लाम का भारतीयकरण, चर्च का स्वदेशीकरण और पिछड़े लोगों का सामाजिक सम्मान होने से ही राष्ट्रीय एकता को सशक्त किया जा सकता है।
–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
1-10-81, रोड नं. – 8 बी, द्वारकापुरम, दिलसुखनगर, हैदराबाद-500060 (आं.प्र.)
0 एक महान सपूत को हमने खो दिया। सुदर्शन जी किसी त्योहर में पिछड़ी बस्तियों में रहने वाले लोगों के घर जाते थे। रक्षाबंधन के अवसर पर दिल्ली में एक बार वे एक सेवा बस्ती में गए। वहां के निवासियों ने उन्हें राखी बांधी। काफी देर तक उन्होंने लोगों से बातचीत की, उनका हाल-चाल जानने का प्रयास किया। उनका पूरा जीवन राष्ट्र की सेवा में ही बीता।
–देशबन्धु
आर.जेड-127, सन्तोष पार्क, उत्तम नगर नई दिल्ली-110059
0 सुदर्शन जी का स्वर्गवास हम सभी के लिए बड़ा दु:ख पहुंचा गया है। वह एक स्पष्ट वक्ता थे। गलती कोई भी करता था उसकी आलोचना करने से पीछे नहीं हटते थे। उनकी बातों में बड़ी गहराई होती थी। किसान की हालत और गो की उपयोगिता पर वे कहते थे कि प्रत्येक किसान के दरवाजे पर एक जोड़ा बैल और एक गाय हो तो फिर उसे किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उनके विचारों को पुस्तकाकार में प्रकाशित किया जाए।
–लक्ष्मी चन्द
गांव–बांध, डाक–भावगड़ी
जिला–सोलन-173233 (हि.प्र.)
विस्फोटक स्थिति
भारत किन कारणों से एक हजार वर्ष तक पराधीन रहा, उन पर कोई विचार कर रहा है? क्या हम ऐसी भूलें नहीं कर रहे हैं, जिनसे भारत एक बार फिर परतंत्र हो सकता है? आज देश की मुख्य आवश्यकता है अभेद्य सुरक्षा। किन्तु दुर्भाग्यवश भारत की सुरक्षा के साथ अक्षम्य लापरवाही की जा रही है। अन्तरराष्ट्रीय सीमाएं खुली होने के कारण दूसरे देश के लोग बेरोकटोक आ रहे हैं, यहां बस रहे हैं। दूसरी ओर वोट बैंक की राजनीति ने देश के अन्दर विस्फोटक स्थिति बना दी है। संविधान ने देश के हर नागरिक को समान मानकर समानता का अधिकार दिया है। पर इस अधिकार की अवहेलना कर मजहब और जाति के आधार पर कुछ लोगों को विशेष सुविधाएं दी जा रही हैं। सबके साथ समान व्यवहार क्यों नहीं होता है?
–शान्ति स्वरूप सूरी
362/1, नेहरू मार्ग
झांसी-284001 (उ.प्र.)
राष्ट्र की आवाज है पाञ्चजन्य
मैं पाञ्चजन्य का सन् 1969 से नियमित पाठक हूं। जब मैं बैंक में कार्यरत था, मेरे स्थानांतरण भी अनेक स्थानों पर हुए। लेकिन पाञ्चजन्य को हर जगह मंगाया। वास्तव में पाञ्चजन्य मेरे जीवन का प्रमुख अंग बन गया है। मेरे विचार में पाञ्चजन्य ही ऐसा साप्ताहिक है जो प्रजातंत्र के चतुर्थ स्तम्भ की भूमिका सम्यक् दृष्टि से सही दिशा में निर्वहन कर रहा है। पाञ्चजन्य भारतीयता का पर्याय बन चुका है। पाञ्चजन्य राष्ट्र की आवाज, हिन्दी का मान और भारत की शान है। मेरे विचार से तो पाञ्चजन्य सच्चे अर्थो में प्रत्येक नागरिक के हृदय में राष्ट्र भक्ति का अमृत भर रहा है। सच्चा साहित्य तो वही होता है जो समाज व राष्ट्र में 'शुभ दृष्टि' का निर्माण करे और जन सामान्य में मातृभूमि के प्रति, राष्ट्र की आस्थाओं के प्रति, भारतीय जीवन मूल्यों और महान पुरुषों के प्रति सम्मान जागृत करे। इस दृष्टिकोण से पाञ्चजन्य महती भूमिका निभा रहा है। भगवान देवाधिदेव शंकर से प्रार्थना है कि पाञ्चजन्य निरंतर रूप से गतिमान रहकर राष्ट्र जागरण का पुनीत कार्य करता रहे और राष्ट्र की आवाज बना रहे।
–प्रहलाद वन गोस्वामी
157, आदित्य आवास कालोनी कोटा -324001 (राज.)
बलिदान का अपमान
अखण्ड भारत की आजादी के सच्चे क्रांतिकारी भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को लाहौर के शादमान चौक पर फांसी दी गयी थी। ऐसे में इस महान बलिदान को याद करने के लिए शहीद भगतसिंह का जन्मदिन 28 सितम्बर, 2012 को पाकिस्तान की एक सामाजिक संस्था 'लेबर एजुकेशन फाउंडेशन' द्वारा लाहौर में मनाना तय हुआ था। इस संस्था द्वारा भारत के भी एक प्रतिनिधिमण्डल को निमंत्रण पत्र भेज गया था। इसी निमंत्रण के आधार पर लगभग 30 लोगों का एक भारतीय दल इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिये पाकिस्तान जाने को तैयार हो गया था। इस दल में सहारनपुर से भगतसिंह के भतीजे कुलतार सिंह संधू तथा उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के पूर्व राज्य मंत्री तथाकथित सेकुलरवादी संजय गर्ग सहित कुल 28 अन्य लोग भी शामिल थे। यह भारतीय दल पाकिस्तान जाने के लिए आवश्यक वीजा आदि हेतु लगातार पाकिस्तानी दूतावास के सम्पर्क में था। यह दल लगातार 2-3 दिन दिल्ली में पड़ा रह कर प्रतीक्षा करता रहा। परन्तु अचानक 27 सितम्बर को वीजा देने से पाकिस्तानी दूतावास ने इनकार कर दिया।
आखिर पाकिस्तान में भगतसिंह के नाम पर होने वाले किसी भी कार्यक्रम में भारतीयों के बिना कार्यक्रम का औचित्य ही क्या होगा? भारत की तरह पाकिस्तानी भी यदि आज आजादी की हवा में सांस ले रहे हैं, तो यह भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुभाषचन्द्र बोस जैसे क्रांतिकारियों की ही देन है। जिन मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर सारे पाकिस्तान में जगह-जगह दिखायी देती है, उन जिन्ना ने तो अपने अन्तिम जीवनकाल में भी गैरमुस्लिम जीवन जीते हुये केवल इस्लाम के नाम पर कांग्रेस और अंग्रेजों से सौदेबाजी करते हुए भारत विभाजन का नफरती कार्य किया। इसीलिए आज सैकड़ों नफरती जिहादी मुस्लिम आतंकवादी संगठन उस पाकिस्तानी धरती पर पल रहे हैं। आज उस मुल्क के लोगों के लिए प्रेरणापुरुष भगत सिंह नहीं, ओसामा बिन लादेन बना हुआ है। तो ऐसी स्थिति में पाकिस्तान सरकार व लोगों को भगतसिंह और उनके बलिदान का महत्व कैसे समझ आ सकता है। फिर भी पाकिस्तान की उस सामाजिक संस्था 'लेबर एजुकेशन फाउण्डेशन' द्वारा लाहौर के शादमान चौक जिसे अब भगतसिंह चौक नाम दे दिया गया है, पर शहीद भगतसिंह का जन्मदिन मनाने का प्रयास सराहनीय है। यदि यह स्थान आज भारत में ही होता, तो भारतीय देशभक्तों के लिए किसी तीर्थ से कम न होता।
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तानी वीजा न मिलने से इस कार्यक्रम में शामिल होने से वंचित रह गये भारतीय दल के सदस्यों और भारतीय नेताओं तथा लोगों को सबक लेना चाहिए। एक तरफ तो शहीदों के कार्यक्रमों में भी जाने के लिए पाकिस्तानी सरकार भारतीय लोगों को वीजा नहीं देती, वहीं दूसरी ओर भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए कुछ भारतीय सेकुलर पाकिस्तानपरस्ती के राग अलापते रहते हैं। भारतीय सरकारें तक इसी नाम पर पाकिस्तानी खिलाड़ियों, गायकों, कलाकारों, फिल्मकारों, नेताओं तथा मुस्लिम तीर्थयात्रियों को खुलकर वीजा सुविधायें उपलब्ध कराती हैं। कुछ पाकिस्तानी गायक तथा कलाकार तो भारत में ही रहकर कमाई करते-करते करोड़पति बन जाते हैं और कुछ इसकी आड़ में अपने देश और आइएसआई के लिए जासूसी तक करते हैं।
–सुशील गुप्ता
शालीमार गार्डन कालोनी, बेहट बस स्टैण्ड
सहारनपुर (उ.प्र.)
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