भारत की समृद्धि के बीज
May 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

भारत की समृद्धि के बीज

by
Jan 21, 2012, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

विश्वकर्मा विरासत में सुरक्षित हैं भारत की समृद्धि के बीज

दिंनाक: 21 Jan 2012 16:31:01

राष्ट्र उन्नयन में विश्वकर्मा क्षेत्र की महत् भूमिका

विश्वकर्मा विरासत में सुरक्षित हैं

* डा. महेश शर्मा

जिस समय देश में वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं निजीकरण की दो दशक से लगातार व्यापक चर्चा हो रही हो और दिल्ली में आधिपत्य जमाये हुए योजनाकार यह कहने का दु:साहस भी रखते हों कि इन्हीं नीतियों पर देश में सभी दलों में आम सहमति ही नहीं है, अपितु ये नीतियां अपरिवर्तनीय हैं, क्योंकि विश्व की महाशक्ति अमरीका की पूरी शक्ति साम-दाम-दंड-भेद के साथ इन नीतियों के पीछे है। अमरीका और यूरोप के गंभीर आर्थिक संकट से भी विश्व बैंक तथा उनके पिछलग्गू बुद्धिजीवी कुछ भी सीखने को तैयार नहीं हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक और दुखदायी पहलू यह है कि पिछले कुछ दशकों की औद्योगिक चकाचौंध एवं सामरिक हलचलों ने दुनिया के सभी हिस्सों के कुछ प्रतिशत लोगों को अतिभोग एवं विलासितापूर्ण जीवनशैली के दुष्चक्र में अग्रसर कर दिया है और समाज के शेष लोग भी इस अंधी दौड़ में शामिल होने के लिए बेचैन हैं तथा इसे ही प्रगति कहा जा रहा है।

ऐसे समय में परंपरागत कामधंधों और उससे जुड़े शिल्पी-कारीगरों की बात करना भी अनेक लोगों को अप्रासंगिक और बेतुका लग सकता है। ऐसे लोग यह भी नजरअंदाज कर देते हैं कि देश-दुनिया में व्यापक औद्योगीकरण के बावजूद आज भी लाखों लोग परंपरागत कामधंधों में लगे हुए हैं। ऐसे लोगों के लिए प्रगति का अर्थ है मात्र बड़े शहर, निरंतर बढ़ता शहरीकरण, बड़े कारखाने, नई-नई मशीनें या उपकरण, चाहे इसमें कितनी भी ऊर्जा लगे, कितनी भी पूंजी लगे और अंधाधुंध आवागमन यातायात या असीमित अधोसंरचना बनानी पड़े।

एक निर्विवाद तथ्य की ओर संकेत करना उचित होगा कि पिछले कुछ दशकों में जितना निर्यात हस्तशिल्प क्षेत्र ने किया है, वह राशि हजारों करोड़ रुपए या डालर में है, इसकी तुलना में यह भी एक चौंकाने वाला तथ्य है कि देश के बड़े औद्योगिक व्यापारिक घरानों या कंपनियों के निर्यात में बड़ा हिस्सा कच्चा माल और खनिज पदार्थ हैं। सरकार इस तथ्य को छुपाती है कि अमरीका-यूरोप जाने वाले चिकित्सकों, अभियंताओं, प्रबंधकों अथवा अंबानी, बिरला, टाटा, बजाज की तुलना में ज्यादा डालर भारत के कोष में उन कारीगरों-मिस्रियों ने जमा किये हैं जो एशिया-अफ्रीका के देशों में कुशल- अर्धकुशल कामगार हैं।

आज भी देश के सभी भागों में, हर गांव-कस्बे-शहर में लाखों कारीगर, मिस्री विविध काम धंधों में जुटे हुए हैं और उनके बिना हमारी अर्थव्यवस्था की गाड़ी चरमरा जायेगी। बड़े कारखानों, होटलों की तुलना में कई गुना छोटी-छोटी इकाइयों में सड़कों, बस्तियों के किनारों पर लाखों इकाइयों में दो करोड़ से भी ज्यादा कारीगर-मिस्री न केवल अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं, अपितु हमारी अर्थव्यवस्था की बहुमूल्य धुरी बने हुए हैं।

गंभीर उपेक्षा और कड़ी प्रतियोगिता

स्वाधीनता आंदोलन में हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस क्षेत्र का महत्व समझते हुए अनेक प्रयास किये थे कि विश्वकर्मा क्षेत्र को पुन: सशक्त बनाया जाये। महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, कुमार स्वामी, कुमारप्पा, कमलादेवी चट्टोपाध्याय के रचनात्म्क प्रयोग इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम थे। ‘रायल इंडस्ट्रियल कमीशन’ (1916-18) की रपट में एक ऐतिहासिक नोट में महामना मालवीय जी ने लघु-कुटीर उद्योगों की परंपरा को सुदृढ़ करने के ठोस सुझाव और विस्तृत कार्य योजना प्रस्तुत की थी। डा. लोहिया, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और जयप्रकाश नारायण की योजना दृष्टि में इस क्षेत्र का महत्व रेखांकित हुआ।

लेकिन देश का दुर्भाग्य था कि नेहरू और उस कड़ी में जुड़े राजनीतिक नेताओं में सही दिशा और संतुलन का न केवल अभाव था, अपितु ग्रामीण जनजीवन के प्रति नकारात्मक सोच थी। आज यह सोचकर आश्चर्य होता है कि पिछले बीस साल में सभी केन्द्र सरकारों की आर्थिक योजना में मोंटेक सिंह आहलुवालिया जैसे लोग केन्द्र में रहे हैं। ब्रिटिश साम्राज्य में भारत के कारीगरों की जो दुर्गति प्रारंभ हुई, वह कमोबेश आज भी जारी है और विश्वकर्मा क्षेत्र गंभीर उपेक्षा का दंश झेल रहा है।

विसंगतिपूर्ण नीतियों के कारण अनेक क्षेत्रों में कारीगरी आधारित धंधों को बड़े उद्योगों और भारी आयात से कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है। प्लास्टिक उद्योग ने मिट्टी और धातु के कामों में लगे लाखों कारीगरों को धंधे से बाहर कर दिया है और स्थानीय पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है। देश के सभी हिस्सों में उपलब्ध विविध प्रकार की घासों पर आधारित रेशा उद्योग, जूट और बांस के बने भांति-भांति के सामान अब बाजार से प्रतियोगिता में बाहर होते जा रहे हैं। क्या असम-त्रिपुरा की कलापूर्ण शिल्प का मुकाबला आयातित फर्नीचर से होना चाहिए? दुनिया का ऐसा कौन सा देश है जो अपनी शिल्प कलाकृतियों का संरक्षण-संवर्धन नहीं करता? क्या शिल्पियों का मुकाबला बड़े मिलों से होना चाहिए?

कच्चे माल की उपलब्धता में जबरदस्त भेदभाव है। बड़े मिलों को मिलने वाला बांस स्थानीय कारीगरों की तुलना में अत्यधिक सस्ता है। ऐसा क्यों? इधर केन्द्र सरकार और कुछ राज्य सरकारों ने इन विसंगतियों को सुधारने का प्रयास किया है, लेकिन वन विभाग की कार्यशैली और हर स्तर पर व्यापक भ्रष्टाचार के कारण इन सुधारों का कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है।

पिछले वर्षों में उदारीकरण के नाम पर सरकार ने बड़े उद्योगों पर अपना अंकुश बहुत कम कर दिया है, लेकिन जिला प्रखंड या वन क्षेत्रों में इस उदारीकरण का कोई असर नहीं है। वित्तीय संस्थानों का बड़े घरानों के प्रति व्यवहार मित्रतापूर्ण है, लेकिन जमीनी स्तर पर बैंकों के अधिकारी-कर्मचारी हर सरकारी योजना में छोटे-छोटे कारीगरों-मिस्रियों या लघु उद्यमियों को हर कदम पर लूटते और परेशान करते हैं।

हमारे तकनीकी और प्रबंधन संस्थान बड़े औद्योगिक क्षेत्र और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए प्रतिभा पलायन की एजेंसी बन गये हैं। पिछले दिनों में दिल्ली में चल रहे बड़े अस्पतालों को मिली सस्ती सरकारी जमीन पर न्यायालय ने सख्त टिप्पणी की थी, लेकिन अभी तक हमारे राष्ट्रीय तकनीकी और प्रबंधन संस्थानों का लाभ किसे मिल रहा है, इसकी जांच-परख नहीं हुई है।

महात्मा गांधी ने ग्रामोद्योगों में बेहतर प्रौद्योगिकी के लिए वर्धा में शोध संस्थान बनाया था, स्वतंत्र भारत में उसकी क्या प्रगति हुई? 1998 में जब इस खंडहर हो चुके जमनालाल बजाज केन्द्रीय शोध संस्थान को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया तो इसे कई वर्षों तक लटकाया गया। जब खादी ग्रामोद्योग आयोग ने इसके नवीनीकरण का प्रस्ताव रखा तो संबंधित मंत्रालय को कुछ करोड़ स्वीकृत करना भी भारी पड़ा, जबकि एक नये आईआईटी के लिए सैकड़ों करोड़ बजट देने में कोई देरी नहीं होती। ऐसा क्यों?

अपार संभावनाएं

भारतीय जनमानस की ऐसी आस्था है कि जब सृष्टि रचना का क्रम प्रारंभ हुआ तो ब्रह्मा जी ने विश्व संरचना के विविध अंग-उपांग की कल्पना को साकार करने के लिए विश्वकर्मा का रूप लिया। विश्वकर्मा ने इस चुनौतीपूर्ण काम को अंजाम देने के लिए विविध विधाओं एवं कलाओं से सिद्ध अपनी संतानों के क्रम में एक अत्यंत कुशल मेधावी समाज को खड़ा किया। एक ऐसा प्रतिभा संपन्न समाज जिसके हाथों में हुनर एक बड़े जादूगर की तरह प्रकट होने लगा। इन हुनरमंद हाथों में लोहा, लकड़ी, बांस, घास, मिट्टी, पत्थर, चमड़ा-कपड़ा हर चीज एक सुंदर उपयोगी आकार लेती थी।

यह जादूगर-बाजीगर कारीगर आज भी जीवित परंपरा है। भारी उपेक्षा के बावजूद इन्होंने अनेक क्षेत्रों में उत्कृष्टता को बचाए रखा है, बढ़ाया भी है। लोहा स्टील के क्षेत्र में सौ साल पहले तक भारत के कुछ हिस्सों में छोटी-छोटी भट्टियों का व्यापक जाल फैला हुआ था, जिनमें हमारे परंपरागत वनवासी जनजातीय कारीगर तरह-तरह के पत्थर- अयस्क को उच्च गुणवत्ता युक्त लोहा स्टील में बदल देते थे।

जयपुर के सलीम कागजी ने कागज शिल्प को नई ऊंचाइयां दी हैं। हमारी इस विश्वकर्मा विरासत में देश की समृद्धि और समूची दुनिया की समग्र अक्षय प्रगति के बीज सुरक्षित है। आइए! इन बिखरे हुए बीजों को पहचानें, बटोरें और भावी प्रगति का सुदृढ़ ताना-बाना और जामा शुरू करें।

12वीं पंचवर्षीय योजना-एक अच्छा अवसर

इस समय देश में 12वीं पंचवर्षीय योजना पर चर्चा हो रही है। यद्यपि मोंटेक सिंह आहलुवालिया के नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने एक दिशा पत्र पर मोहर लगा दी है, लेकिन इसके विस्तृत प्रारूप पर कामकाज चल रहा है। यही काम राज्य सरकारें भी अपनी सोच और प्राथमिकता तथा राजनीतिक दबावों के अनुरूप कर रही हैं। देश के सामने बड़ा सवाल है कि अपने संसाधनों का सही इस्तेमाल करते हुए आम जन के हित में कैसे आगे बढ़े? एक जटिल समस्या बन गई है कि हमारे देश के जमीन जंगल, खनिज, संपदा क्या थोड़े से घरानों और कुछ प्रतिशत लोगों के लिए हैं या आमजन का इन पर लोकतांत्रिक व्यवस्था में सर्वजन हिताय अधिकार है? खनिजों की लूट और माफियाराज मात्र कर्नाटक या गोवा में नहीं है, अपितु लंबे समय से झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, अरावली, शिवालिक सभी क्षेत्रों में यह निरंतर अबाधित रूप से जारी है। विदेशों में जमा कालाधन हो या हमारे बाजारों-मॉलों की चमक- दमक, सबके पीछे यही लूट है। चार दशक से लटके लोकपाल विधेयक में सभी दलों की भागीदारी है।

प्रश्न केवल भ्रष्टाचार का नहीं है, नीतिगत, विफलताएं हमारी अधोगति की जड़ में है। 12वीं पंचवर्षीय योजना में बहुत जोर दिया गया है कि कुछ करोड़ लोगों को नई कुशलताओं में दक्ष किया जाएगा। क्या हम पहला कदम उठाते हुए अपने शिल्पकारों, दस्तकारों, कारीगरों, मिस्त्रियों को दक्ष तकनीकी मानवशक्ति के रूप में मान्यता दे सकते हैं? क्या देश के शिक्षण संस्थान एक नया अभियान चलाकर इनकी कुशलताओं का समुन्नयन अगले दो-तीन साल में कर सकते हैं? यह संभव है। केन्द्र सरकार अथवा कुछ राज्य सरकारों को इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।

मिर्जापुर-सोनभद्र क्षेत्र के गोविंदपुर अंचल में काम करते हुए प्रेमभाई लेबर बैंक की कल्पना करते थे, उनकी दृष्टि में पूंजी से भी अधिक महत्वपूर्ण था श्रम बैंक। प्रेमभाई, गांधी मिशन का काम अधूरा छोड़ गये हैं। 1984 में बिशुनपुर में राष्ट्रीय कार्यशाला के बीच क्षेत्र में कारीगरों से संवाद करते हुए देवेन्द्र भाई ने कारीगर पंचायत की संकल्पना दी, जिसे पहले बिशुनपुर और फिर पूरे देश में आगे बढ़ाया गया। वीनू काले, सुनील देशपांडे, बसंत, भूपेश तिवारी, रवीन्द्र शर्मा ने इस प्रक्रिया में जान डाली। अब यह एक देशव्यापी हलचल बन गई है, यह किसी व्यक्ति या संस्था का प्रकल्प नहीं है। इसे एक व्यापक आंदोलन बनाना और इस प्रक्रिया में अधिकाधिक सहभागिता बढ़ाना आज समय की मांग है।

राष्ट्रीय कारीगर सम्मेलन मध्य प्रदेश राज्य के वनखेड़ी में ऐसे स्थान पर हुआ है, जो एक सुप्रतिष्ठित किसान संगठक स्वर्गीय भाऊ साहब भुस्कुटे की प्रेरक स्मृति से जुड़ा है। इसी स्थान पर देश के एक क्रांतिकारी वैज्ञानिक डा. अनिल सद्गोपाल ने विज्ञान शिक्षण में एक अभिनव प्रयोग को जन्म दिया था। अब इस स्थान पर कारीगरों, शिल्पकारों को केन्द्र बिन्दु बनाकर एक ज्ञानपीठ की संकल्पना की गई है। इसके सूत्रधार की भूमिका में राष्ट्रीय कारीगर पंचायत आंदोलन से प्रारंभ से जुड़े सुनील देशपांडे, जिन्हें वीनू काले ने वेणुपुत्र से विभूषित किया और पिछले कई सालों से मेलघाट क्षेत्र के लवादा में केन्द्र बनाकर बांस कारीगरों के उत्थान में पूरी निष्ठा और अतुलनीय समर्पण से कार्यरत हैं। उनकी पत्नी डा. निरुपमा देशपांडे अभिन्न भाव से इस प्रक्रिया में जुड़ी हैं। डा. निरुपमा ने टाटा समाज विज्ञान संस्थान से उच्च शिक्षा और पूना विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि हासिल करके मुम्बई में एक बैंक की नौकरी छोड़कर महिला स्वयं सहायता समूहों को पिछले कई साल से आगे बढ़ाया है।

आइए, सब मिलकर राष्ट्रीय कारीगर आंदोलन को ऐसी गति और स्वरूप दें कि योजना भवन में नई हलचल पैदा हो जाये। इस आंदोलन के रचनात्मक प्रयासों में अधिकाधिक सहभागिता सुनिश्चित करना आज समय की मांग है।द

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

भारत में सिर्फ भारतीयों को रहने का अधिकार, रोहिंग्या मुसलमान वापस जाएं- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

शहबाज शरीफ

भारत से तनाव के बीच बुरी तरह फंसा पाकिस्तान, दो दिन में ही दुनिया के सामने फैलाया भीख का कटोरा

जनरल मुनीर को कथित तौर पर किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया है

जिन्ना के देश का फौजी कमांडर ‘लापता’, उसे हिरासत में लेने की खबर ने मचाई अफरातफरी

बलूचिस्तान ने कर दिया स्वतंत्र होने का दावा, पाकिस्तान के उड़ गए तोते, अंतरिम सरकार की घोषणा जल्द

IIT खड़गपुर: छात्र की संदिग्ध हालात में मौत मामले में दर्ज होगी एफआईआर

प्रतीकात्मक तस्वीर

नैनीताल प्रशासन अतिक्रमणकारियों को फिर जारी करेगा नोटिस, दुष्कर्म मामले के चलते रोकी गई थी कार्रवाई

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

भारत में सिर्फ भारतीयों को रहने का अधिकार, रोहिंग्या मुसलमान वापस जाएं- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

शहबाज शरीफ

भारत से तनाव के बीच बुरी तरह फंसा पाकिस्तान, दो दिन में ही दुनिया के सामने फैलाया भीख का कटोरा

जनरल मुनीर को कथित तौर पर किसी अज्ञात स्थान पर रखा गया है

जिन्ना के देश का फौजी कमांडर ‘लापता’, उसे हिरासत में लेने की खबर ने मचाई अफरातफरी

बलूचिस्तान ने कर दिया स्वतंत्र होने का दावा, पाकिस्तान के उड़ गए तोते, अंतरिम सरकार की घोषणा जल्द

IIT खड़गपुर: छात्र की संदिग्ध हालात में मौत मामले में दर्ज होगी एफआईआर

प्रतीकात्मक तस्वीर

नैनीताल प्रशासन अतिक्रमणकारियों को फिर जारी करेगा नोटिस, दुष्कर्म मामले के चलते रोकी गई थी कार्रवाई

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) (चित्र- प्रतीकात्मक)

आज़ाद मलिक पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का संदेह, ED ने जब्त किए 20 हजार पन्नों के गोपनीय दस्तावेज

संगीतकार ए. आर रहमान

सुर की चोरी की कमजोरी

आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर

कंधार प्लेन हाईजैक का मास्टरमाइंड अब्दुल रऊफ अजहर ढेर: अमेरिका बोला ‘Thank you India’

जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा नागरिक इलाकों को निशाना बनाए जाने के बाद क्षतिग्रस्त दीवारें, टूटी खिड़कियां और ज़मीन पर पड़ा मलबा

पाकिस्तानी सेना ने बारामुला में की भारी गोलाबारी, उरी में एक महिला की मौत

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies