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सम्पादकीय

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Sep 3, 2011, 12:00 am IST
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सम्पादकीय

दिंनाक: 03 Sep 2011 13:13:26

आंदोलन पर सेकुलर हमला

 

अब जात-पांत के, ऊंच-नीच के, सम्प्रदायों के भेद-भाव भूलकर सब एक हो जाइए। मेल रखिए और निडर बनिए। घर में बैठकर काम करने का समय नहीं है। बीती हुई घड़ियां ज्योतिषी भी नहीं देखता।

-सरदार पटेल (सरदार पटेल के भाषण, पृ. 503)

देश भ्रष्टाचार के विरुद्ध बिफरा हुआ है, जबकि केन्द्र सरकार गंभीरतापूर्वक प्रयास कर देशवासियों को आश्वस्त करने की बजाय दांव-पेंच आजमा रही है – एक पल गरम तो दूसरे पल नरम। सरकार की इन रणनीतिक चालबाजियों को परदे के पीछे से तय कर रही सोनिया पार्टी की शह पर अनुसूचित जातियों-जनजातियों, अगड़ों-पिछड़ों व अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाले सेकुलर तत्व भी जनलोकपाल बिल के खिलाफ मोर्चा खोलकर, नए-नए विवाद खड़े करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि इनमें उलझाकर भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई को पाश्र्व में धकेलकर कमजोर किया जा सके। देश की आजादी के बाद से ही सेकुलर राजनीति का यह चरित्र रहा है कि राष्ट्रहित के मुद्दों पर साम्प्रदायिकता व अगड़ों-पिछड़ों का भ्रम फैलाकर जनता को गुमराह किया जाए और अंतत: अपने राजनीतिक स्वार्थों को पूरा किया जाए। कांग्रेस शुरू से ही इन तत्वों की पैरोकार रही है और अपनी सुविधा के हिसाब से इनका इस्तेमाल करती रही है। परिणामत: उनके हौसले इतने बढ़ते गए कि वे सेकुलरवाद के नाम पर न केवल अलगाववादी और विभाजनकारी ताकतों का संपोषण करने लगे, बल्कि उनके साथ खड़े होकर राष्ट्रविरोधी भाषा बोलने लगे। कुछ समय पहले जो अरुंधती राय जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तानपरस्त और अलगाववादी सरगना सैयद अली शाह गिलानी के साथ मिलकर नई दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे भारत में कश्मीर के विलय और कश्मीर के भारत का अभिन्न अंग होने पर सवाल खड़े कर रही थीं, वही अरुंधती राय अब अण्णा हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी जनांदोलन में आक्रामक राष्ट्रवाद देख रही हैं और इससे हैरान हैं! जाहिर है कि भारत में राष्ट्रवाद का पोषण उन्हें अखरता है और भारत की जड़ों में मट्ठा डालने वाले राष्ट्रद्रोही तत्व उन्हें प्रिय हैं। अप्रैल में जंतर मंतर पर अण्णा हजारे के अनशन के समय भी व्सोनिया टीमव् के एक प्रमुख सदस्य हर्षमंदर ने भी कुछ इसी तरह का मंतव्य प्रकट किया था कि वहां मंच पर भारत माता का चित्र लगा होने के कारण वे अनशन स्थल पर नहीं गए। उल्लेखनीय है कि यही हर्षमंदर सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के प्रमुख सदस्य हैं और इसी परिषद द्वारा तैयार किए घोर हिन्दू विरोधी व्साम्प्रदायिकता व लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयकव् का प्रारूप तैयार करने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे इनकी कुत्सित मानसिकता को समझा जा सकता है कि सेकुलरवाद की आड़ में अरुंधती राय और हर्षमंदर कितना हिन्दू विरोधी किंवा राष्ट्र विरोधी चेहरा हैं कि उन्हें न राष्ट्रवाद सुहाता है और न भारत माता का चित्र। यदि अण्णा हजारे के आंदोलन में भारत माता की जय, वंदेमातरम् के स्वर गूंजते हैं और वहां लहराते असंख्य तिरंगे झंडों से राष्ट्रीयता की भावना बलवती होती है अथवा भारत माता का चित्र देशवासियों को राष्ट्रहित के लिए जीने-मरने की प्रेरणा देता है तो अरुंधती राय और हर्ष मंदर को क्यों अखरता है?

यही भाषा तो जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी बोल रहे हैं। उन्हें भी रामलीला मैदान में गूंज रहे भारत माता की जय और वंदेमातरम् के नारों पर आपत्ति है और इसलिए वे मुसलमानों को इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से दूर रहने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें इसमें साम्प्रदायिकता की बू आ रही है। कुछ अन्य मौलाना तो यहां तक कह रहे हैं कि लोकतंत्र के नाम पर हिन्दू राज की नींव डालना इस आंदोलन का उद्देश्य हो सकता है। यह वही भाषा है जिसे बोलकर देश की आजादी के आंदोलन के दौरान स्वतंत्र भारत में संभावित कांग्रेस राज को हिन्दू राज की संज्ञा देकर मुस्लिम लीग पाकिस्तान निर्माण की वकालत करती थी। मुस्लिम वोट के लालच में बंगलादेशी घुसपैठियों को भारत की नागरिकता दिए जाने की वकालत करने वाले रामविलास पासवान ने भी लोकपाल में कोटे का शिगूफा छोड़कर लोकपाल में अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की मांग कर दी है। ऐसे ही एक अन्य नेता ने आंदोलन को व्दलित विरोधीव् और बाबा साहब अंबेडकर के संविधान के विरुद्ध बताया है। वे इसे पिछड़ों परअगड़ों के वर्चस्व के रूप में देख रहे हैं। यानी जाति-मत-पंथ की राजनीति कर राष्ट्रीय एकात्मता और देशभक्ति की भावना को आघात पहुंचाने वाले लोग कांग्रेस के इशारे पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस जनरोष की हवा निकालने के लिए कैसे ओछे राजनीतिक हथकंडे अपना रहे हैं, यह भी अब जनता के सामने आ चुका है। यही वे तत्व हैं जो बाबा रामदेव या अण्णा हजारे को संघ व भाजपा का मुखौटा कहकर साम्प्रदायिकता के नाम पर भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को कमजोर करने में लगे रहे हैं। इन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि रा.स्व.संघ समाजसेवा व व्यक्ति निर्माण के माध्यम से भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए साधनारत है और राष्ट्रहित के हर प्रयत्न में वह अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। बहरहाल सरकार तो छल-बल के द्वारा इस आंदोलन को निष्प्रभ करने में लगी ही है, कांग्रेस भी परदे के पीछे से इस सेकुलर जमात को उकसा कर उसे किस तरह आंदोलन के विरुद्ध हमलावर बना रही है, इस षड्यंत्र को भी जनता समझे और उसे परास्त कर इस ऐतिहासिक मुहिम को विजयी बनाए। अण्णा हजारे भी इस जन समर्थन की आंधी में यह ध्यान रखें कि अग्निवेश जैसे कुछ लोग इन्हीं सेकुलर तत्वों के व्मौसेरे भाईव् हैं, जो व्टीम अण्णाव् में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी दिखाने के प्रयास में हैं और ऐसे ही उपक्रमों से सदा अपनी दुकानदारी चमकाने के फेर में रहते हैं। उनकी उपस्थिति और सक्रियता सेकुलर जमात के इशारे पर आंदोलन में फूट न डाल दे या कहीं इस पवित्र उद्देश्य को दागदार न बना दे, यह सावधानी भी जरूरी है ताकि घर का भेदी लंका न ढा पाए।

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