हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं-स्वामी विश्वेशतीर्थ, प्रमुख, पेजावर मठ
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हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं-स्वामी विश्वेशतीर्थ, प्रमुख, पेजावर मठ

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Sep 19, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 19 Sep 2011 12:29:31

“हिन्दू धर्म में अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं है। हम सब हिन्दू बराबर हैं। जाति उच्चता का मापदंड नहीं है, बल्कि अच्छे गुण इसका आधार हैं।” उक्त उद्गार पेजावर मठ के प्रमुख स्वामी विश्वेशतीर्थ ने गत दिनों फतेहनगर (हैदराबाद) में सम्पन्न हुए चातुर्मास दीक्षा के कार्यक्रम में व्यक्त किए।

स्वामी विश्वेशतीर्थ ने आगे कहा कि श्रीमद् भागवद् में एक कहानी आती है। एक व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण है, वह सनातन साहित्य का अच्छा जानकार है, लेकिन भक्ति नहीं करता। वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति जन्म से हरिजन है, जिसने किसी भी पुस्तक का अध्ययन नहीं किया, लेकिन उसका हृदय भक्ति से ओतप्रोत है। उन्होंने प्रश्न किया कि बताइए इन दोनों में से कौन महान है? स्वामी विश्वेशतीर्थ ने उत्तर दिया कि श्रीमद् भागवद् के अनुसार वह अशिक्षित हरिजन महान है, जिसका हृदय भक्ति से ओतप्रोत है। उन्होंने कहा कि श्रीराम, श्रीकृष्ण, दुर्गा माता आदि देवी-देवताओं की पूजा हर हिन्दू द्वारा की जाती है। हिन्दू धर्म में भेदभाव, अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं है। हमें इन कुरीतियों को समाप्त करना होगा। आपमें से किसी को भी यदि अस्पृश्यता का अनुभव हो, यदि कोई समस्या हो तो मुझसे कहें। मैं आपकी समस्याओं का समाधान करने के लिए तैयार हूं। विश्व हिन्दू परिषद् का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विहिप समाज से अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए संकल्पित है। अगर आपकी कोई समस्या है तो आप अपनी समस्या विहिप कार्यकर्ताओं के ध्यान में लाएं।

कार्यक्रम के बाद स्वामी जी डा. अंबेडकर जगजीवन राम कॉलोनी के लोगों से मिले। 30 अगस्त को उन्होंने मदनपेट्टा में पदयात्रा की। वे कुछ लोगों के घर गए और उनके पूजा घर में दीप प्रज्ज्वलित किया। भारी बारिश होने के बावजूद स्वामी जी की पदयात्रा एवं कार्यक्रम चलते रहे। स्थानीय लोगों ने मदनपेट्टा आने पर उनका जोरदार स्वागत किया। पदयात्रा और सभाएं सामाजिक समरसता मंच द्वारा आयोजित किए गए।

द प्रतिनिधि

सरवाधार की माता चामुण्डा

द मोहनलाल शर्मा

जम्मू-कश्मीर में सरवाधार उस पहाड़ी श्रृंखला का नाम है, जो जिला रामबन से डोडा तक फैली है। यह एक बहुत ही रमणीक स्थान है। समुद्रतल से दस हजार फुट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित यह सुन्दर स्थान अपने भीतर समेटी हुई प्राकृतिक सुन्दरता का जीवन्त दृश्य प्रस्तुत करता है। शीतल जल के झरने, देवदार के छायादार पेड़ यहां आने वालों की थकान दूर कर उन्हें मोह लेते हैं। गर्मियों में यहां रामबन, बनिहाल और डोडा के निवासी अपने पशुओं को लेकर अस्थायी रूप से बने आवासों में जाते हैं। स्थानीय भाषा में इन आवासों को उधार कहा जाता है। यहां पहाड़ के ऊपर एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर 200 वर्ष पुराना है। इस मन्दिर ने काल के अनेक थपेड़ों को सहा है। स्थानीय भक्तों ने समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार कराया है। यह चामुण्डा देवी का मंदिर है। यह मंदिर पहले पत्थरों से निर्मित एक चबूतरे के रूप में था। मंदिर में मां चामुण्डा के हजारों त्रिशूल रखे गये हैं। इन्हीं त्रिशूलों और संकुलों की मां चामुण्डा के रूप में पूजा होती है। स्थानीय मान्यता के अनुसार मां चामुण्डा हमारे जन, धन और पशु की रक्षा करती हैं। भक्तों का मानना है कि यहां जो भी आता है उसकी मनाकामनाएं पूर्ण होती हैं। ज्ञात रहे यह वही स्थान है, जहां 1996 में उग्रवादियों ने 13 निर्दोष चरवाहों की निर्मम हत्या कर दी थी। कुछ वर्ष यहां लोगों ने जाना बन्द कर दिया। लेकिन 2 वर्ष बाद जून 1998 को पोगल रामबन के कुछ बहादुर युवकों ने मां चामुण्डा के आशीर्वाद से उग्रवाद को पराजित कर मां की अर्चना का निश्चय किया। 10 जून 1998 को छड़ी यात्रा पहली बार सरवाधार गई। अब हर वर्ष जम्मू के बागे बहू के प्राचीन मंदिर से छड़ी यात्रा सरवाधार जाती है। जिन बहादुर लोगों ने यात्रा का शुभारम्भ किया उनमें श्री गंधर्व सिंह, श्री लोचन सिंह, श्री पूर्ण सिंह, श्री तीर्थ सिंह सभी पोगल निवासी मुख्य हैं। अब मां की प्रेरणा से वहां एक सुन्दर मंदिर का निर्माण हो चुका है। हजारों की संख्या में भक्त हर वर्ष छड़ी यात्रा के साथ जाते हैं। जम्मू से यात्रा उखड़ाल से होती हुई सेनाभत्ती में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन प्रात: सरवाधार के लिए प्रस्थान करती है। सरकार की ओर से सुरक्षा प्रदान की जाती है। स्वयंसेवक लंगर का प्रबन्ध करते हैं। तीसरे दिन यात्रा दर्शन कर लौटती है। 4 नवम्बर 2009 को स्थानीय स्तर पर आयोजित विश्वमंगल गोग्राम यात्रा का शुभारम्भ इसी मंदिर से हुआ था। द

धुआंरहित चूल्हे की धुआंधार बातें

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश घरों में मिट्टी के चूल्हे में खाना पकाया जाता है। इनमें लकड़ी, उपले या उसी तरह की अन्य वस्तुएं ईंधन के रूप में प्रयोग की जाती हैं। उनके जलने से धुआं काफी होता है और इस कारण खाना पकाने वाली महिलाएं अनेक बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। ऐसी महिलाएं फेफड़े संबंधी बीमारी, रतौंधी आदि बीमारियों से परेशान रहती हैं। साथ ही धुएं के कारण पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। यह प्रदूषण कितना होता है इसका अंदाजा ग्रामीण क्षेत्रों में उस शाम को लगाया जा सकता है, जब उमस भरी गर्मी हो।

महिलाओं के स्वास्थ्य और दूषित पर्यावरण को देखते हुए अशोक ठाकुर नामक एक व्यक्ति ने एक ऐसे धुआं-रहित चूल्हे का आविष्कार किया है, जो केवल धान की भूसी से जलता है। यह चूल्हा एक किलो भूसी से एक घंटे तक जलता है। चूंकि गांवों में हर घर में धान की भूसी रहती ही है इसलिए यह चूल्हा ग्रामीणों के लिए वरदान साबित हो रहा है। अशोक ठाकुर मोतिहारी (बिहार) जिले के मिसकॉट रमणा गांव के रहने वाले हैं और अपने गांव में ही लोहारगिरी का काम करते हैं। धुंआ-रहित चूल्हे के आविष्कार के लिए आशोक ठाकुर की प्रशंसा राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार ने की है। पिछले दिनों वे अमदाबाद की एक संस्था के सहयोग से दक्षिण अफ्रीका गए और वहां अपने चूल्हे का प्रदर्शन एक प्रदर्शनी में किया। अशोक ठाकुर को विश्वास है कि एक दिन उनका प्रयास रंग अवश्य लाएगा और पर्यावरण बचाने का उनका सपना पूरा होगा। द संजीव कुमार

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