दृष्टिपात
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आई.एस.आई. को धता बताओ
आलोक गोस्वामी
अमरीका के सांसदों और बुद्धिजीवियों में एक विषय इन दिनों चर्चाओं में तेजी से उभरता दिखा है कि पाकिस्तान हद से बाहर जा रहा है, आई.एस.आई. बेलगाम हो गई है, जिसके पीछे, आई.एस.आई. में अमरीका-भारत दोस्ती का हौव्वा बैठना है। अमरीकी राजनीतिकों का अब यह मन बनता दिख रहा है कि अगर आई.एस.आई. ऐसा ही समझती है तो यह ही सही, क्यों न भारत से नजदीकी बढ़ाएं, आतंकवाद के खिलाफ उसकी हां में हां मिलाएं। भीतर ही भीतर पकती इस भावना को वाशिंगटन के प्रमुख “थिंक टैंक” फॉरेन पॉलिसी इनिशिएटिव के मंच से सीनेटर मार्क किर्क ने मुखरित किया। इलिनोयॅस से सीनेटर किर्क ने कहा कि पिछले अगस्त-सितम्बर से ही अमरीका-पाकिस्तान रिश्तों में खटास आने लगी थी। किर्क ने कहा, सड़क पर चलते हुए जब आगे दो रास्ते हो जाते हों तो मोड़ ले लेना ही अच्छा। यही सीनेट की भावना है और सदन की भी। “हम भारत का पक्ष लेने को तैयार हैं, आई.एस.आई. को अलग करने के लिए,” किर्क ने कहा। उन्होंने अमरीका के एक बड़े रक्षा अधिकारी जनरल मार्टिन डेम्पसी को संकेत में कहा कि वे पाकिस्तान के साथ “हार्ड बॉल” खेल खेलें।थ्
ओबामा की ईरान से अपील
गिरा ड्रोन लौटा दो
अमरीका से ओबामा प्रशासन ने ईरान को एक आधिकारिक पत्र भेजकर अपील की है कि ईरान के फौजियों ने जिस अमरीकी टोही विमान ड्रोन को पकड़ा है उसे लौटा दिया जाए। अपील तो कर दी, पर ओबामा प्रशासन यह भी कहता है कि उसे नहीं लगता, ईरान मानेगा।
उधर 12 दिसम्बर को ओबामा ने व्हाइट हाउस में ईराकी प्रधानमंत्री नूरी-अल-मालिकी की मौजूदगी में पत्रकारों के सामने पूरी ठसक से कहा कि “अमरीका अपना “टॉप सीक्रेट” विमान वापस चाहता है। हम देख रहे हैं कि ईरान क्या रुख अपनाता है।” लेकिन ईरान के तेवर भी तने हुए हैं। 12 की रात को ही वेनेजुएला टेलीविजन से प्रसारित अपने इंटरव्यू में ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद अहमदेनिजाद ने पलटवार करते हुए चुटकी ली, “शायद अमरीका ने हमें यह टोही विमान देने का फैसला किया है। इस विमान पर अब हमारा नियंत्रण है।” इतना ही नहीं, पैंतरा तीखा करते हुए अहमदेनिजाद ने यहां तक कहा कि अमरीका को बहुत जल्दी ईरान की काबिलियतें समझ आने वाली हैं। ईरान के इन दिनों दिख रहे तेवरों पर अमरीकी विदेश मंत्री Ïक्लटन का कहना था कि वह, लगता है खतरनाक रास्ते पर बढ़ रहा है जो उसके खुद के लिए और क्षेत्र के लिए भी खतरनाक है। थ्
कराची के मदरसे में
बेड़ियों में जकड़े बच्चे
अभी हाल में पाकिस्तानी पुलिस ने कराची के एक मदरसे से बेड़ियों में जकड़ कर रखे गए 53 बच्चों, किशोरों और नौजवानों को आजाद कराया। बदहाल, भूखे और बर्बर शारीरिक यातनाओं का शिकार बनाए गए इन बच्चों ने जो खुलासा किया वह दहलाने वाला है। कुछ तो 7-8 बरस के हैं। उन्होंने बताया कि महीनों से वे मदरसे के तहखाने में जंजीरों/बेड़ियों में बांधकर बाहरी दुनिया से काटकर रखे गए थे। रह-रहकर तालिबानी जिहादी मदरसे में आते थे और उनमें से कुछ को उन्होंने अफगानिस्तान सीमा पर जिहाद में झोंकने की तैयारी कर ली थी। उनके दिमागों में जिहादी जहर रोपा जा रहा था। इन बच्चों को नशेबाजों और छोटे-मोटे अपराधों में लिप्त किशोरों के बीच बांधकर रखा गया था। उन्हें मुजाहिदीन और तालिबान बनाने की तैयारी थी।
ऐसा महज इस जकरिया मदरसे में ही नहीं हो रहा था, और भी कई संदिग्ध मदरसे हैं, जिन पर पाकिस्तान पुलिस के शब्दों में, निगाह रखी जा रही है, जिहादियों से उनके संबंधों की जांच की जा रही है। यूं तो पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने जकरिया मदरसे के पूरे चाल-चलन की तहकीकात के फरमान, दबाव पड़ने के बाद, जारी कर दिए हैं, पर जो मंत्री खुद वहां भारत के खिलाफ जिहादी षड्यंत्रों की खुलकर तकरीरें करने वाले सलाहुद्दीन और हाफिज सईद के बचाव में उतरता हो, उससे किस तरह की “तहकीकात” कराने की उम्मीद की जा सकती है? बहरहाल, जकरिया मदरसे की घटना से उन गरीब मां-बापों के दिल टूट गए हैं जिन्होंने अपने बच्चों को मजहबी तालीम लेने इन मदरसों में भेजा है। क्योंकि कई रिहा कराए बच्चों ने बताया कि उन्हें बेंत से पीटा जाता था, भूखा रखा जाता था, बेड़ियों में जकड़े रखा जाता था कि कहीं भाग न निकलें। पुलिस ने मदरसे के कुछ “मौलवियों” को भी धर-दबोचा, लेकिन सबसे बड़ा मौलवी, जो हाल ही में खैबर पख्तून ख्वा से आया था, अपने चार साथियों के साथ फरार हो गया।थ्
डरबन की बस एक कमाई
“क्योटो” की मियाद बढ़ाई
डरबन (द.अफ्रीका) में 28 नवम्बर से 11 दिसम्बर तक जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में 194 सदस्य देशों के सामने दुनिया के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों ने जो हालात रखे थे उसकी चिंता छोड़कर, हवा में जहरीली गैसों को कम करने की अपनी जवाबदेही से टाल-मटोल की मंशा ही दिखाई दी। विकसित और विकासशील देशों में ज्यादातर मुद्दों पर खींचतान रही और इस सबमें दुनियाभर में मौसमी बदलावों से होने वाले अपरिवर्तनीय नुकसानों पर खास गौर नहीं किया गया। वैज्ञानिकों का दावा है कि वह दिन दूर नहीं जब बड़े-बड़े ग्लेशियर और बर्फ की परतें तेजी से पिघलना शुरू कर देंगी और उसका खामियाजा पूरी मानवता को भोगना पड़ेगा।
“डरबन” का लब्बोलुआब बस इतना रहा कि 2012 में समाप्त हो रहे कार्बन उत्सर्जन कम करने की एकमात्र कानूनी जद के समझौते “क्योटो प्रोटोकॉल” की मियाद और पांच बरस बढ़ा दी गई। 1997 में हुए इस समझौते के तहत कुछ औद्योगिक देशों पर उत्सर्जन कम करने की बाध्यता थी। पर ये बाध्यता, हैरानी की बात है, सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले अमरीका और चीन पर नहीं थी। “डरबन प्लेटफॉर्म” नाम से पारित दस्तावेज के तहत 2020 में क्रियान्वित होने वाली एक नई संधि की गई है जो तमाम देशों के लिए उत्सर्जन की हद तय करती है। एक “ग्रीन क्लाइमेट फंड” भी चालू किया गया है जो 2020 तक विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों में मदद के लिए हर साल सौ अरब अमरीकी डालर भेजेगा।
लेकिन इस सम्मेलन के खत्म होते ही अन्य सदस्य देशों के साथ “क्योटो” की मियाद बढ़ाने की हामी भरने वाले कनाडा का “क्योटो” से बाहर होना सबको हैरान कर गया। कनाडा ने इसके पीछे आर्थिक वजहें गिनाई हैं, पर संयुक्त राष्ट्र उन्हें बेमानी मानता है। 1990 के बाद से कनाडा का उत्सर्जन बेतहाशा बढ़ा है। सऊदी अरब और वेनेजुएला के बाद कनाडा में तेल के सबसे ज्यादा भंडार हैं। इसका उत्सर्जन 1990 से 2008 के बीच 24 फीसदी बढ़ा है। अब यही देश प्रदूषण घटाने के अपने दस्तखती वायदे से सबसे पहले मुकरा है। धरती की हवा शुद्ध करने की ओर बढ़ा जाए तो कैसे?
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