जब जनता इस सरकार को फांसी पर लटकायेगीतब मिलेगी अफजल को फांसी
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तब मिलेगी अफजल को फांसी
*अरुण कुमार सिंह
13 दिसम्बर, 2011 को संसद पर हुए आतंकवादी हमले को 10 साल पूरे हो गए। किन्तु अभी तक इस हमले के मुख्य षड्यंत्रकारी अफजल को फांसी पर नहीं लटकाया गया है। जबकि अदालत ने 20 अक्तूबर, 2006 को ही अफजल को फांसी देने की तारीख तय कर दी थी। अफजल को फांसी न होने से हर सच्चे भारतीय, विशेषकर उन लोगों में बड़ा गुस्सा है, जिनका कोई परिजन संसद परिसर में आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए शहीद हुआ था। 13 दिसम्बर को यह गुस्सा देश के कई शहरों में दिखा। लोगों ने अफजल को फांसी पर लटकाने की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। जबकि शहीदों के परिजनों ने संसद भवन में आयोजित उस सरकारी कार्यक्रम का बहिष्कार किया, जिसमें नेताओं ने शहीदों को श्रद्धाञ्जलि दी। शहीदों के परिजनों का कहना था कि जब तक अफजल को फांसी पर नहीं लटकाया जाएगा तब तक शहीदों को सच्ची श्रद्धाञ्जलि नहीं दी जा सकेगी। भाजपा और अनेक राष्ट्रवादी संगठनों ने भी अफजल को फांसी देने की मांग की। किन्तु वोट बैंक की राजनीति करने वाली वर्तमान संप्रग सरकार ने बस इतना कहा कि अफजल की दया याचिका की फाइल राष्ट्रपति के पास है। इसलिए कब अफजल को फांसी होगी, यह राष्ट्रपति के निर्णय पर निर्भर है। हकीकत तो यह है कि संप्रग सरकार अफजल को फांसी पर लटकाना ही नहीं चाहती है। कौन नहीं जानता है कि राष्ट्रपति वही करता है, जो केन्द्रीय मंत्रिमण्डल तय करता है। किन्तु जब मंत्रिमण्डल में ही अफजल के पैरोकार शामिल हों, तब मंत्रिमण्डल यह कैसे निर्णय ले सकता है कि अफजल को फांसी दे दो। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद जैसे लोग खुलेआम अफजल की पैरवी करते हैं। वे कहते हैं, “यदि अफजल को फांसी हो गई तो कश्मीर जल उठेगा।” इन्हीं आजादों की वजह से अफजल तिहाड़ में “आजाद” और “आबाद” है। उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक भारतेन्दु प्रकाश सिंहल कहते हैं, “अफजल को फांसी न होना भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर एक गहरा काला धब्बा है। इससे बड़ा धब्बा और क्या हो सकता है? जो भारत सरकार 6 साल से एक सजायाफ्ता आतंकवादी को फांसी पर नहीं चढ़ा रही है, वह किस मुंह से पाकिस्तान से कह रही है कि वह मुम्बई हमले के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करे? वर्तमान केन्द्र सरकार की नीति इतनी लचर है कि हम जैसे भारतीयों को शर्म आती है। क्या ऐसी नीतियों से आतंकवादियों का सफाया किया जा सकता है? सामान्य अपराधी और आतंकवादियों के बीच फर्क करना होगा। देश के खिलाफ षड्यंत्र करने वालों को किसी भी सूरत में जिन्दा रहने का हक नहीं है। किन्तु कांग्रेसनीत यह सरकार वोट के लिए अफजल को फांसी पर नहीं लटका रही है। जब लोग इस सरकार को ही फांसी पर लटका देंगे तब अफजल को फांसी मिलेगी।”
उल्लेखनीय है कि 13 दिसम्बर, 2001 को संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था। सुरक्षा बलों ने सभी पांचों आतंकवादियों को मार गिराया था। किन्तु इसमें कुल 9 लोग शहीद भी हुए थे, जिनमें अधिकांश सुरक्षाकर्मी थे और कुछ अन्य कर्मचारी। शहीद होने वाले हैं- घनश्याम पटेल (दिल्ली पुलिस) देशराज सिंह (सी.पी.डब्ल्यू डी.) कमलेश कुमारी (सी.आर.पी.एफ.), मातवर सिंह नेगी (राज्यसभा सचिवालय), नानकचन्द (दिल्ली पुलिस), ओमप्रकाश डबास (दिल्ली पुलिस), जगदीश प्रसाद यादव (राज्यसभा), और बिजेन्द्र सिंह (दिल्ली पुलिस)। जांच के बाद कश्मीर घाटी के निवासी अफजल को मुख्य साजिशकर्ता पाया गया। उसके खिलाफ निचली अदालत में आरोप तय किया गया। निचली अदालत ने 18 दिसम्बर, 2002 को अफजल को फांसी की सजा सुनाई। निचली अदालत के फैसले पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी 29 अक्तूबर, 2003 को अपनी मुहर लगा दी। इसके बाद 4 अगस्त, 2005 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी अफजल की सजा को बरकरार रखा। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद निचली अदालत ने अफजल की फांसी की तारीख 20 अक्तूबर 2006 तय कर दी। किन्तु फांसी से कुछ दिन पहले 3 अक्तूबर, 2006 को अफजल की बीवी तब्बसुम ने अपने शौहर की जान बचाने के लिए राष्ट्रपति के पास दया की अर्जी लगा दी। राष्ट्रपति के यहां से वह अर्जी केन्द्रीय गृह मंत्रालय पहुंची। कुछ दिन बाद गृह मंत्रालय ने वह अर्जी दिल्ली सरकार को भेज दी। चार साल तक वह अर्जी दिल्ली सरकार के पास धूल फांकती रही। माना जा रहा है कि केन्द्र सरकार के निर्देश पर दिल्ली सरकार ने उस आवेदन पर चार साल तक अपनी कोई राय नहीं दी। किन्तु लगातार बढ़ते जन दबाव और आर.टी.आई. के माध्यम से अफजल की दया याचिका की निरन्तर पूछताछ से परेशान होकर दिल्ली के राज्यपाल तेजेन्दर खन्ना ने 3 जून, 2010 को अफजल की दया याचिका को खारिज करने की सिफारिश की। इसके साथ ही अफजल की फाइल केन्द्रीय गृह मंत्रालय पुन: एक बार पहुंच गई। किन्तु गृह मंत्रालय ने इस पर एक साल से अधिक समय तक कुछ नहीं किया। इसके बाद 27 जुलाई, 2011 को गृह मंत्रालय ने भी अफजल की दया याचिका निरस्त करते हुए राष्ट्रपति के पास फाइल भेज दी। तभी से वह फाइल राष्ट्रपति के पास है। द
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