तीन मुद्दे और वामपंथियों
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

तीन मुद्दे और वामपंथियों

by
Dec 10, 2011, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

इतिहास दृष्टि

दिंनाक: 10 Dec 2011 16:22:00

डा.सतीश चन्द्र मित्तल

का शर्मनाक हंगामा

गत 9अक्तूबर को दिल्ली विश्वविद्यालय की 120 सदस्यों वाली अकादमिक परिषद् ने इतिहास विषय की पूर्व-स्नातक परीक्षा से ए.के. रामानुजम के एक तीस पृष्ठीय विवादास्पद निबंध,  “300 रामायण, पांच उदाहरण तथा तीन विचार बिन्दु” को बहुमत से हटा दिया। इससे कुपित होकर संस्कृतिविरोधी तथाकथित सेकुलरवादियों तथा कुछ जाने-माने मुट्ठीभर वामपंथियों ने 24 अक्तूबर को योजनाबद्ध ढंग से शर्मनाक प्रदर्शन किया। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अशांति बनाये रखना वामपंथियों की नीति का हमेशा से एक हिस्सा रहा है। इस हुडदंग में न केवल दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों तथा अध्यापकों ने भाग किया बल्कि जे.एन.यू., जामिया मिलिया तथा कोलकाता स्थिति यादवपुर विश्वविद्यालय के छात्रों को भी जुटाया गया। सभी वामपंथी हथकंडे आजमाए गए- छात्र राजनीति का दुरुपयोग, भौंड़ा प्रदर्शन, आनलाईन हस्ताक्षर अभियान, सोशल नेटवर्किग साइट पर झूठा अभियान तथा अन्य महाविद्यालयों के छात्रों तथा अध्यापकों को भड़काना। एक-दो अंग्रजी समाचार पत्रों ने भी इसे हवा दी।

रामनुजम के निबंध को हटाना

 वस्तुत: रामानुजम के निबंध को हटाने के लिए अकादमिक परिषद् की प्रशंसा की जानी चाहिए तथा वामपंथियों को भी प्रसन्न होना चाहिए। राम जन्मभूमि प्रसंग से तो वामपंथी पहले से ही क्षुब्ध थे। 1987 में भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित रामानन्द सागर के धारावाहिक “रामायण” से उभरे देशव्यापी भक्तिभाव ने अनेक वर्षों के वामपंथी दुष्प्रचार को अमान्य कर दिया था। इसमें “वाल्मीकि रामायण” तथा तुलसीदास के “रामचरितमानस” की प्रामाणिकता को जनमानस ने स्वीकार किया था। तभी से वामपंथी रोमिला थापर, रामानुजम तथा अमरीका की पाउला रिचमैन जैसे अनेक “इतिहासकार” परेशान थे। 1989 में दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सभी दिग्गज वामपंथी इतिहासकारों ने आम सहमति से एक बयान के द्वारा घोषित किया कि राम नाम का कोई ऐतिहासिक व्यक्ति हुआ ही नहीं, रामायण केवल एक महाकाव्य है, प्राचीन काल में अयोध्या थी ही नहीं, और यदि थी भी तो वह सरयू के तट पर नहीं बल्कि गंगा के किनारे थी। उन्होंने रामजन्मभूमि को एक अन्धविश्वास तथा भारत की राजनीति के साम्प्रदायीकरण का कारण बतलाया। (देखें इतिहास का बयान, असली भारत, अक्तूबर-नवम्बर, 1989, पृ. 40-42,46)

प्रश्न यह है कि जब वामपंथियों के अनुसार-“राम का जन्म ही नहीं हुआ”, तो रामायण के कुछ अंशों या निबन्ध के हटने से वे परेशान क्यों हैं? हालांकि यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि अनेक विद्वानों ने वामपंथियों के उस कपोल-कल्पित बयान को खारिज कर दिया था। तब पाउला रिचमैन ने 1991 में एक पुस्तक “मैनी रामायणाज : द डाइवर्सिटी आफ ए नेरेटिव ट्रडीशन इन साउथ एशिया” प्रकाशित की। इसमें रामानुजम के एक लम्बे लेख को प्रमुखता दी गई। इसी काल में वामपंथियों द्वारा 15 अगस्त, 1993 को  “अयोध्या के सांस्कृतिक इतिहास” पर एक प्रदर्शनी की योजना बनाई गई। इसमें “मैनी रामायणाज” के आधार पर रामायण के विभिन्न स्वरूप बताते हुए वाल्मीकि रामायण की प्रामाणिकता को अस्वीकार करने की चेष्टा की गई। राम-सीता को भाई-बहन बताने वाली इस प्रदर्शनी का विश्व हिन्दू परिषद् ने विरोध किया तो वह प्रदर्शनी नहीं लग सकी। इससे रिचमैन सहित अनेक वामपंथियों को अपनी योजना पूरी होती नहीं लगी। अत: सन् 2000 में पाउला रिचमैन ने एक दूसरी पुस्तक “क्वैशनिंग रामायन्स, ए साउथ एशियन ट्रडीशन” सम्पादित की। इसका “आमुख” लिखते हुए रोमिला थापर ने अपने मन की व्यथा को प्रकट किया। इसमें रामान्द सागर के रामायण धारावाहिक पर उमड़ते जन ज्वार पर प्रहार करते हुए उन्होंने “रामायण” तथा “रामचरित मानस” की प्रामाणिकता पर ही प्रश्न उठाये।

वस्तुत: वाल्मीकि की “रामायण” या तुलसीदास की “रामचरितमानस” पर ऊल-जलूल आरोपों तथा  आक्षेपों से उनकी प्रमाणिकता पर कोई असर नहीं पड़ता। सम्भवत: उनके शब्दकोष में न केवल वाल्मीकि या तुलसी बल्कि वशिष्ठ, वेदव्यास, शंकराचार्य, बुद्ध, महावीर, रामानुजाचार्य, बल्लभाचार्य, विद्यारण्य स्वामी आदि महान चिंतक तथा विचारक भी “हिन्दू रूढ़िवादियों” की श्रेणी में आते  हैं। इन्हें 2800 वर्ष ई. पू. का तक्षशिला, 700 वर्ष ई. पूर्व का नालन्दा विश्वविद्यालय तथा विक्रमशिला, अजन्ता आदि विश्वविद्यालयों के विचार भी पुराने, पोंगापंथी तथा रूढ़िवादी चिंतन के परिचायक      लगते हैं।

विश्वविद्यालयी शिक्षा के उद्देश्य

तथाकथित प्रगतिशील तथा वामपंथी विद्वानों तथा पूर्व-स्नातक छात्रों ने विश्वविद्यालय शिक्षा का उद्देश्य विचारों की स्वतंत्रता तथा मुक्त भाषण बतलाया। इस आधार पर रामानुजम का निबन्ध हटाना अकादमिक स्वतंत्रता का हनन बताया गया। वस्तुत: विश्वविद्यालयीन शिक्षा का उद्देश्य, उपरोक्त रटी-रटाई शब्दावली से कहीं अधिक है। देश के महान शिक्षाविदों ने इस पर विशद चिन्तन ही नहीं किया, बल्कि इसके प्रत्यक्ष प्रयोग भी किए। जैसे- भारतीय स्वतंत्रता से 45 वर्ष पूर्व स्वामी श्रद्धानन्द ने गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार में भावी विश्वविद्यालय की नींव रखी तथा शिक्षा का उद्देश्य “देश के नवयुवकों में देशभक्ति की भावना जगाकर, ऐसी राजनीतिक संन्यासियों की पीढ़ी तैयार करना, बताया जो ब्रिटिश सरकार के अस्तित्व के लिए भयानक संकट बन जाए। महामना पं. मदन मोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिलान्यास के समय इसका उद्देश्य “स्वराष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति, राष्ट्र की महान राजनीतिक, आध्यात्मिक तथा भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति तथा राष्ट्र का नेतृत्व प्रदान करने वाला बताया।” स्वामी विवेकानन्द ने शिक्षा का उद्देश्य केवल सूचनाओं का संग्रह मात्र ही नहीं बताया, जो हमारे मस्तिष्क को विकृत किए रखते हैं, बल्कि जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र निर्माण देने वाली शिक्षा पर बल दिया। उन्होंने पाश्चात्य शिक्षा का अन्धानुकरण न कर, धर्म तथा नौतिकता को शिक्षा का आधार बताया। महर्षि अरविन्द तथा श्रीमां ने शिक्षा का उद्देश्य विकसित होती हुई आत्मा को अपने अन्दर से सबसे अच्छी चीज को प्रकट करने तथा इसके उदात्त उपयोग के लिए पूर्ण सहायता करना बतलाया। महाकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विश्व भारती को गुरुकुल जैसे प्राकृतिक तथा ग्रामीण वातावरण में भारतीय शिक्षा तथा संस्कृति की मानवीय दृष्टि दी। इसी भांति भारत के महान दार्शनिक सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्र को सही नेतृत्व प्रदान करना बताया।

संक्षेप में कहें तो विश्वविद्यालयी शिक्षा का उद्देश्य केवल “स्वतंत्र चिंतन” या मुक्त उद्बोधन ही नहीं बल्कि राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व प्रदान करना भी है। साथ ही देश की संस्कृति, धर्म का रक्षण तथा मानवीय गुणों का अर्जन भी आवश्यक है। शिक्षा का उद्देश्य कर्तव्य का बोध है, न कि केवल अधिकारों की अभिव्यक्ति।

वामपंथी आकांक्षाएं

वामपंथियों के भौंडे प्रदर्शन के पीछे उनके विचार का छिपा एजेण्डा भी है। गत कुछ वर्षों से भारत में वामपंथी चिंतन का सफाया हो रहा है। राम जन्मभूमि पर दिए गए उच्च न्यायालय के निर्णय से उनकी सोच को भारी झटका लगा है। वे विश्वविद्यालयों तथा  महाविद्यालयों के छात्रों का दुरुपयोग कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। रामानुजम के निबंध के हटाए जाने को अपना हथियार बनाकर भारतीय जनमानस ने वाल्मीकि रामायण तथा तुलसीकृत रामचरितमानस के प्रति अश्रद्धा तथा राम को एक काल्पनिक पुरुष के रूप में बताना चाहते हैं। इसीलिए रोमिला थापर ने अपने आमुख में इन दोनों ग्रन्थों में समन्वय तथा समरसता के स्थान पर हिन्दुओं के उच्च वर्ग तथा निम्न वर्ग, हिन्दू तथा मुसलमान, पुरुष तथा स्त्री में बढ़ता हुआ वर्ग-भेद ही दिखलाई देता है। रिचमैन ने भी विभिन्न रामायणों के माध्यम से भारत के हिन्दुओं तथा दक्षिण एशिया के बौद्धों में वैमनस्य बढ़ाने का असफल प्रयत्न किया। सम्भवत: भारत के वामपंथी विचारकों में परस्पर भारतीयों को लड़ाने तथा भारत तथा दक्षिण एशियाई देशों में वैमनस्य तथा विरोध बढ़ाना उनका उद्देश्य हो।

अत: देश की युवा पीढ़ी को चाहिए कि वे वामपंथियों की क्षुद्र मानसिकता तथा राजनीतिक महत्वाकांक्षा का मोहरा न बने। वे दिग्भ्रमित न हों। हजारों युवाओं के बलिदान से प्राप्त भारतीय स्वतंत्रता को राजनीतिक विषमताओं को मिटाकर सामाजिक तथा सृजनात्मक प्रतिभा से भारतीय जनमानस की आशा तथा आकांक्षा के अनुरूप राष्ट्र निर्माण में सक्रिय योगदान करें।

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

जगदीश टाइटलर (फाइल फोटो)

1984 दंगे : टाइटलर के खिलाफ गवाही दर्ज, गवाह ने कहा- ‘उसके उकसावे पर भीड़ ने गुरुद्वारा जलाया, 3 सिखों को मार डाला’

नेशनल हेराल्ड घोटाले में शिकंजा कस रहा सोनिया-राहुल पर

‘कांग्रेस ने दानदाताओं से की धोखाधड़ी’ : नेशनल हेराल्ड मामले में ईडी का बड़ा खुलासा

700 साल पहले इब्न बतूता को मिला मुस्लिम जोगी

700 साल पहले ‘मंदिर’ में पहचान छिपाकर रहने वाला ‘मुस्लिम जोगी’ और इब्न बतूता

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

क्यों कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है कन्वर्जन मुद्दा? इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे अरविंद नेताम ने बताया

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies