क्या अब सच्चाई समझेगा अमरीका?
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क्या अब सच्चाई समझेगा अमरीका?

by
Oct 3, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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सम्पादकीय

दिंनाक: 03 Oct 2011 17:10:23

विश्व में आत्म-निन्दित हैं वे लोग जो किसी वस्तु पर अधिकार करना चाहते हैं। अपने आपको धन की गन्दगी से गले तक फंसाए हुए लोग अपने को राजा कहते हैं। इन सब आत्मद्रोहियों को जगाने और उनके उद्धार की आवश्यकता है।-स्वामी रामतीर्थ

अपने कूटनीतिक और सामरिक हितों के लिए अमरीका जिस पाकिस्तान को नाक का बाल बनाए रहा, अब वही उससे आंखें तरेर रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान के बाद सबसे खतरनाक आतंकवादी हक्कानी गुट, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संरक्षण में पल रहा है, अब दोनों के बीच तकरार का कारण बन गया है। पाक-अफगान सीमांत क्षेत्र में सक्रिय इस खूंखार आतंकवादी संजाल के खिलाफ पाकिस्तान से कड़ी कार्रवाई की उम्मीद करने वाले अमरीका को पाकिस्तान ने दो टूक जवाब दे दिया। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने हक्कानी गुट को अमरीका का ही लाड़ला बताया। पाकिस्तान के इस रवैये से अमरीका तिलमिला गया है और उसने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाने के संकेत दिए हैं। अमरीकी सीनेट में तो पाकिस्तान को दी जाने वाली अमरीकी वित्तीय सहायता रोकने के लिए एक विधेयक भी प्रस्तुत कर दिया गया है, जिसके तहत कहा गया है कि पाकिस्तान को अमरीका की ओर से दी जाने वाली सभी प्रकार की आर्थिक सहायता बंद कर दी जानी चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान अमरीका के लिए विश्वासघाती, धोखेबाज और खतरनाक साबित हुआ है और अमरीका आतंकवाद के नाम पर ऐसे देश की मदद कर रहा है जो वास्तव में उसके साथ दुश्मनों जैसा रवैया अपनाए हुए है। विधेयक प्रस्तुत करने वाले एक वरिष्ठ सीनेटर टेड पो ने कहा है कि अमरीका का यह तथाकथित सहयोगी पाकिस्तान एक तरफ तो अमरीका से अरबों डालर की मदद ले रहा है, लेकिन दूसरी ओर अमरीकियों पर हमला करने वाले खूंखार आतंकियों को समर्थन दे रहा है। इससे साफ है कि पाकिस्तान अमरीका के गले की फांस बन गया है। लेकिन क्या अमरीका अब भी इस सच्चाई से आंखें चुराता रहेगा?

भारत तो बहुत पहले से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह कहता रहा है कि जिहादी आतंकवाद पाकिस्तान की देन है। विशेषकर भारत में जिहादी आतंकवाद को बढ़ाने में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की प्रमुख भूमिका है और न केवल लश्करे तोएबा जैसे खूंखार आतंकवादी संगठन इनकी छत्रछाया में फल-फूल रहे हैं, बल्कि पाकिस्तानी सीमा में बड़ी संख्या में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर भी चल रहे हैं। लेकिन अपने हितों के लिए अमरीका पाकिस्तान का इस्तेमाल करता रहा है। अफगानिस्तान में अपनी भूमिका को सशक्त बनाने के लिए वहां सोवियत रूस के प्रभाव वाले दिनों में उसने तालिबान व हक्कानी गुट को भी पूरी शह दी थी। लेकिन अब बदली परिस्थितियों में तालिबान व हक्कानी गुट उसके निशाने पर हैं और वह चाहता है कि पाकिस्तान उनके खात्मे में अमरीका की मदद करे। लेकिन पाकिस्तान चीन के भरोसे अपनी गोटियां खेल रहा है, यहां तक कि उसे अमरीका को आंखें दिखाने में भी कोई गुरेज नहीं। अमरीकी दबाव के बावजूद पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कयानी की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह साफ-साफ कह दिया गया कि पाकिस्तान हक्कानियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा। दरअसल हक्कानी गुट अफगानिस्तान में पाकिस्तान के सामरिक हितों की पूर्ति करने वाला है और वहां से अमरीका के बाहर होने के बाद पाकिस्तान अफगानिस्तान पर अपने प्रभुत्व का सपना देख रहा है। इसीलिए वहां पाकिस्तान भारत की मौजूदगी को भी बाधित करने का षड्यंत्र करता रहता है। उधर चीन अपने सामरिक व कारोबारी हितों को ध्यान में रखकर पाकिस्तान की पीठ ठोंक रहा है, क्योंकि अफगानिस्तान में अमरीकी उपस्थिति उसे बाधक लग रही है, उससे भिड़ने में पाकिस्तान उसे मजबूत मोहरा नजर आ रहा है। और भारत के साथ तो पाकिस्तान की जन्मजात दुश्मनी है, उसे निभाने में चीन उसकी काफी मदद कर रहा है क्योंकि चीन को भारत अपना सबसे सशक्त प्रतिद्वंद्वी दिखता है। पाकिस्तान के जरिये चीन अपनी कुचेष्टाओं को बढ़ा सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की मदद से वह गिलगित और बाल्टिस्तान तक अपनी पहुंच पहले ही बना चुका है। पर क्या अमरीका पाकिस्तान की असलियत जानते हुए भी अपनी रणनीतिक मजबूरियों के चलते पाकिस्तान की तिरछी हुई आंखों में उंगली डालने की हिम्मत दिखा पाएगा? यह लाख टके का सवाल है, जो विश्व में जिहादी आतंकवाद के खिलाफ अमरीकी लड़ाई पर उंगली उठा रहा है।

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