चुनौतियां और समाधान
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पूर्वोत्तर भारत
जगदम्बा मल्ल
पूर्वोत्तर क्षेत्र में जहां-जहां भी अंग्रेजों ने अपना कब्जा जमा लिया था उसे शासित क्षेत्र घोषित कर ईसाई मिशनरियों को काम में लगाकर मतान्तरण का काम जोर-शोर से शुरू किया। स्थानीय जनजातीय हिन्दुओं द्वारा जहां -जहां प्रबल विरोध किया गया, वहां अंग्रेजी शासन की दाल नहीं गली और वहां उनका शासन स्थापित नहीं हो पाया। उन क्षेत्रों को अंग्रेजों ने अशासित क्षेत्र बताया, बाद में उसे बहिर्गत क्षेत्र कहा। आगे चलकर यह नेफा (नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) बना और इस क्षेत्र का प्रशासनिक अधिकारी वही होता था जिसने भारतीय सीमांत प्रशासनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की हो। समग्र अरुणाचल प्रदेश व नागालैण्ड का मोन व ट्वेनसाड जिला नेफा के तहत आता था। पूर्व बंगाल सीमांत नियमन अधिनियम 1873 तथा चिन पर्वतीय अंचल नियमन अधिनियम 1896 के तहत सम्पूर्ण नागालैण्ड (दीमापुर को छोड़कर) अरुणाचल प्रदेश व मिजोरम में ‘इनर लाइन परमिट’ व्यवस्था लागू कर दी गई ताकि इस क्षेत्र से बाहर आने-जाने वाले लोगों का आंकड़ा रखा जा सके। बाद में ईसाई मिशनरियों को भेजकर उन पर अत्याचार करके ईसाई बनाने का कुचक्र चलाया गया। जिन हिन्दू जनजातियों ने मतान्तरण का विरोध किया, उन्हें मार डाला गया ।
राबर्ट रीड नामक एक अंग्रेज असम का गर्वनर था। उसने ब्रिटिश सरकार को यह प्रस्ताव भेजा कि भारत को आजादी देते समय ‘इनर लाइन’ के अन्दर पड़ने वाले क्षेत्र तथा अन्य पहाड़ी क्षेत्रों को भारत में न मिलाया जाए। उसे भारत से अलग रखकर स्वतंत्र क्षेत्र घोषित कर ब्रिटेन के अधीन रखा जाए। इस योजना को ‘क्राउन कालोनी योजना’ या राबर्ट रीड के नाम पर ‘रीड योजना’ कहा गया। भारत के सौभाग्य से ‘क्राउन कालोनी योजना’ सफल नहीं हो पायी। किन्तु अमरीका, यूरोप, अंग्रेजों व चर्च का प्रयास बन्द नहीं हुआ । चर्च के माध्यम से बलपूर्वक ईसाई बनाने का काम चलता रहा और आतंकवादियों के अनेक संगठन बनाकर भारतर्ष को बरबाद करने का काम शुरू कर दिया।
1947 में जब बंटवारा हुआ तो बिना उचित सर्वेक्षण किए दिल्ली में बैठकर कागज पर ही देश को खण्डित कर दिया गया। इस कारण अरुणाचल प्रदेश तथा नागालैण्ड का बहुत सारा क्षेत्र चीन व म्यांमार के भीतर चला गया। स्थानीय समाज के विरोध का कोई असर नहीं हुआ। इसी प्रकार असम, मेघालय, मिजोरम तथा त्रिपुरा से सटे अनेक हिन्दू-बहुल क्षेत्र बंगलादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में चले गए। पश्चिमी पाकिस्तान में भी यही हुआ। फिर भी जिन्ना तथा अन्य मुस्लिम नेता उससे संतुष्ट नहीं थे। जिन्ना के निजी सचिव मैनुल हक चौधरी, जो स्वतंत्र भारत में असम के मंत्री तथा प्रभावी मुस्लिम नेता बने, ने जिन्ना को लिखे अपने पत्र में यहां तक लिखा कि वे (मैनुल हक) असम में मुस्लिम आबादी बढ़ाकर 30 वर्ष के भीतर ही असम को तस्तरी में रखकर पाकिस्तान को भेंट कर देंगे। तभी से इस योजना के तहत पाकिस्तानी व बंगलादेशी असम में घुसपैठ कर मुस्लिम आबादी बढ़ाते जा रहे हैं। राज्य सरकार व केन्द्र सरकार वोट के लालच में इस घुसपैठ को प्रोत्साहित कर रही है और स्थानीय जनता त्रस्त है।
वर्तमान संकट
मुसलमान, ईसाई व कम्युनिस्ट-ये तीनों अन्तरराष्ट्रीय परिदृश्य में एक-दूसरे के घोर विरोधी हैं। लेकिन ये तीनों ही पूर्वोत्तर भारत को खण्डित करने के लिए कार्यरत हैं। शत्रु का शत्रु मित्र होता है, इस सिद्धान्त के तहत कई बार ये तीनों शत्रु-शक्तियां एकजुट होकर भी अपने एकमात्र शत्रु हिन्दू समाज को समाप्त करने के लिए रणनीति बनाकर काम करती हैं। ये राष्ट्रघाती शक्तियां धर्म, राजनीति, आतंकवाद, मानवाधिकार, गरीबी उन्मूलन, सेवा व सेना तथा सुरक्षा बलों के तथाकथित दमन से मुक्ति दिलाने के नाम पर कुछ संस्थाएं बनाकर या फिर भूमिगत तरीके से काम कर रही हैं। इन पर अलग-अलग चिंतन-मनन करने की आवश्यकता है।
मुस्लिम समस्या
असम के 11 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम बहुमत में हो गये हैं। एक रपट के अनुसार असम के 24 जिलों में से 11 जिले मुस्लिम बहुल हो गये हैं। इसी प्रकार मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा, व पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम बहुल होते जा रहे हैं। नागालैण्ड में भी मुस्लिमों की आबादी बढ़ती जा रही है। बंगलादेश से सटी 4096 किमी लंबी सीमा का खुला होना तथा केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा घुसपैठियों को प्रश्रय देने की नीति का ही यह दुष्परिणाम है। 4096 किमी0 लंबी यह सीमा प. बंगाल (2296 किमी0) के 10 जिलों, असम (262 किमी.) के 3 जिलों , मेघालय (443 किमी) के 5 जिलों , त्रिपुरा (856 किमी.) के 3 जिलों और मिजोरम (318 किमी) के 3 जिलों को स्पर्श करती है। प. बंगाल, असम, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय के उपरोक्त 24 जिलों में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या इतनी हो चुकी है कि वहां का कोई भी जन प्रतिनिधि उनके समर्थन के बिना जीत नहीं सकता।
सन् 1950 में नेहरू-लियाकत अली समझौते के तहत 31 दिसम्बर, 1950 तक भारत में बसे बंगलादेशी मुसलमानों को यहां का नागरिक मान लिया गया था। 1972 में भी इन्दिरा -मुजीब समझौते में 25 मार्च, 1971 तक भारत आए बंगलादेशियों को बसने की अनुमति दे दी गई थी। अब यह डर भी सता रहा है कि कांग्रेसी सरकार कोई अन्य समझौता कर अब तक आये सभी मुसलमानों को कहीं भारत में ही बसने की अनुमति न दे दे।
असम के दो राज्यपालों (ले. जन.) एस.के. सिन्हा ने 1998 में और (ले.जन.) अजय सिंह ने 15 मार्च, 2005 को एक लंबा पत्र एवं विस्तृत रपट भेजकर केन्द्र सरकार का ध्यान बंगलादेशी घुसपैठियों के कारण होने वाली समस्याओं पर खींचा था। इन रपटों पर कार्रवाई करने की बजाय राज्य व केन्द्र की कांग्रेसी सरकार ने भारतीय बहिरागत (अन्वेषण एवं निर्वासन न्यायाधिकरण) अधिनियम बनाकर सभी मुसलमानों को यहां की नागरिकता देने का षड्यंत्र रच दिया, जिसे सर्वानन्द सोनोवाल बनाम असम राज्य सरकार मामले की सुनवाई के समय उच्चतम न्यायालय ने निरस्त कर दिया। ये घुसपैठिये मुसलमान बृहत्तर बंगलादेश बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इस क्षेत्र में मदरसों तथा मस्जिदों का जाल बिछ गया है, जो देश के विरुद्ध साजिश रचने का केन्द्र है और आई.एस.आई. की शरणस्थली भी है।
चीन की कुचेष्टा
गत 5 अक्तूबर को टेलीविजन के सभी समाचार चैनलों पर भारतीय सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह का यह बयान प्रसारित हुआ है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन के 4000 सैनिक जमा हो गये हैं। वायु सेना के प्रमुख ने भी यही चिन्ता जतायी है। चीन की दुष्टता व धोखेबाज चरित्र की जानकारी भारत के सभी जागरूक नागरिकों को है। पूर्वोत्तर भारत का बच्चा-बच्चा इसे जानता है, क्योंकि वह भुक्त-भोगी है। अरूणाचल, नागालैण्ड व सिक्किम के बुर्जुग चीन की चालबाजी की कहानी सुनाते हैं। भारत की गुप्तचर संस्थाओं तथा सुरक्षा बलों को भी सब कुछ पता है। फिर भी चीन, पाकिस्तान व बंगलादेश से सटी सीमा खतरे में है। यह भी ध्यान रहे चीन के साथ भविष्य में जब कभी भी युद्ध होगा तो नागा उग्रवादी संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैण्ड (आइजक-मुइवा) मणिपुर का आतंकवादी संगठन- यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रण्ट (आर. के. मेघेन गुट) तथा असम का आतंकवादी संगठन- यूनाइटेड लिबरेशन फ्रण्ट आफ असम (परेश बरुआ गुट) – इन तीनों के गठजोड़ के नेतृत्व में अन्य प्रमुख आतंकवादी संगठन चीन का साथ देंगे। पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी, पूर्वोत्तर के माओवादी, चर्च का महाजाल, मदरसा तथा मस्जिद का नेटवर्क, आई.एस.आई. तथा इन संगठनों से जुड़ी संस्थाएं व भूमिगत लोग- ये सभी चीन का साथ देंगे। पूर्व का इतिहास इस सच्चाई का साक्षी है।
उकसाने वाली बातें
अमरीकी कम्पनी गूगल ने चीनी गूगल का एक नक्शा जारी किया है। इसमें भारत का अक्साई चिन तथा पूरा अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा दिखाया गया है। यह चीन द्वारा भारत की शक्ति को आंकने के लिए किया गया एक उकसाने वाला प्रयास है। यदि अब भी हम समझ न पाए तो भूल चीन की नहीं, गलती इन भारतद्रोही तत्वों की भी नहीं, बल्कि हमारी सरकार, हमारे सुरक्षा बलों तथा भारत की जनता की होगी। सोनिया-मनमोहन सरकार को इसके लिए चेतावनी देना भारत की जनता का दायित्व है।
जनवरी, 2011 में चीन ने अपनी आधिकारिक बेबसाइट पर अरुणाचल प्रदेश और जम्मू- कश्मीर के इलाके अक्साई चिन को अपना हिस्सा बताया है। चीन पहले से ही अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिण तिब्बत” करार देकर अपना हिस्सा बताता रहा है। अक्साई चिन को चीन के जिनजियांग प्रांत के भू-भाग के रूप में उक्त नक्शे में दिखाया गया है।
सन् 2009 में मैं अरुणाचल प्रदेश के 15 दिन के प्रवास पर था। सम्पूर्ण अरुणाचल के प्रमुख स्थानों पर छोटी -बड़ी बैठकें करते हुए तवांग पहुंचा। वहां तवांग बौद्ध मठ के प्रमुख पूजनीय तुल्कू गुरू जी से लंबी बात हुई। फिर वहां के क्षेत्रीय अधिकारी से लंबी वार्ता हुई। उन्होंने बताया- ‘दिल्ली से आने वाला प्रत्येक पत्रकार हम लोगों से पूछता है कि आप लोग भारत के साथ रहना चाहते हैं अथवा चीन के? यह प्रश्न सुनते-सुनते मेरे कान पक गये हैं और मुझे गुस्सा आता है। बाहर से आने वालों को यहां के इतिहास की कोई जानकारी नहीं होती और वे हमारी भारत -भक्ति और राष्ट्रभक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं और विवेकहीन प्रश्न कर 1962 में लगे हमारे घावों को हरा कर देते हैं।”
सशस्त्र बलों को बदनाम करने का षड्यंत्र
30 अक्तूबर, 2000 को असम रायफल्स के गश्ती दल पर मणिपुरी आतंकवादियों ने रिमोट कंट्रोल से बम विस्फोट कर हमला बोला। उसके बाद दल के साथ मुठभेड़ में जवानों की फायरिंग में 10 आतंकवादी मारे गए, अनेक घायल हुए। इसके बाद 4 नवम्बर, 2000 से इरोम शर्मिला नामक एक महिला ने सेना के खिलाफ उपवास शुरू किया। इस बीच वर्ष 2004 में मनोरमा नामक एक महिला को जासूसी के आरोप में सेना ने इम्फाल में हिरासत में लिया। कुछ दिनों के बाद मनोरमा की लाश एक निर्जन स्थान पर पायी गयी। सेना ने बताया कि वह हिरासत से भाग रही थी इसलिए उसे गोली मार दी गई। आतंकवादी तथा कथित मानवाधिकारवादी संगठनों ने सेना पर आरोप लगाया कि सेना ने मनोरमा के साथ व्यभिचार कर उसे गोली मार दी। इरोम शर्मिला ने इसे भी मुद्दा बनाया। इरोम शर्मिला के साथ नागालैण्ड व मणिपुर का चर्च संगठन खड़ा है, साथ ही अमरीका व ब्रिटेन के चर्च भी इस तथाकथित ‘लौह-नारी” की मदद कर रहे हैं। इस प्रकार भारतीय सेना को बदनाम करने हेतु अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मुहिम खड़ी कर दी गई है। भारत के कथित मानवाधिकारवादी संगठन, पूर्वोत्तर के चर्च संगठन, आई.एस.आई., चीनी खुफिया एजेन्सी, अलगाववादी संगठन इसमें तथा पाकिस्तान द्वारा प्रेरित मुस्लिम आतंकवादी संगठनों का साथ दे रहे हैं। इरोम शर्मिला उसी समय से सेना के खिलाफ आन्दोलन चला रही है और सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, 1958 को खत्म करने के लिए भूख हड़ताल पर बैठी है।
आतंकवादियों के दबाव में आकर मणिपुर की इबोबी सरकार ने सन् 2004 में इम्फाल घाटी के चार विधानसभा क्षेत्रों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम- 1958 को हटा लिया। तब इरोम शर्मिला ने अपना अनशन तोड़ने की घोषणा की, किन्तु आतंकवादियों ने उसे डरा-धमका कर अनशन तोड़ने से मना कर दिया। इसलिए वह आतंकवादियों की गोली से अपनी जान बचाने के लिए अनशन करने की मजबूरी में फंसी है। वास्तव में इरोम शर्मिला राष्ट्रविरोधी शक्तियों की एजेन्ट के तौर पर काम कर रही है और सेना व भारतवर्ष को बदनाम करने पर तुली हुई है। इरोम शर्मिला द्वारा सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम-1958 को हटाने व सेना को बदनाम करने की मुहिम में चर्च प्रमुख भूमिका निभा रहा है और पादरी उसका मार्गदर्शन कर रहे हैं।
चर्च का कुचक्र
मतान्तरण एवं आतंकवाद या अलगाववाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जहां-जहां भी मतान्तरण हुआ वहां अलगाववादी आतंक फैला। यह भी कह सकते हैं कि जहां-जहां भी चर्च प्रायोजित आतंकवादी पहले पहुंचे, वहां बन्दूक की नोक पर मतान्तरण किया गया। नागालैण्ड वर्तमान समय में चर्च की प्रयोगशाला है। चर्च ने अपना पहला सिक्का यहां जमाया, साथ ही मिजोरम को भी हथिया लिया। इन दोनों प्रदेशों में भारत विरोधी आन्दोलन खड़े हुए। नागालैण्ड के भूमिगत आन्दोलन तथा अलगाववादियों-आतंकवादियों के सम्पर्क में चर्च के पादरी भी हैं। जहां-जहां आतंकवादियों की छावनी हैं, वहां-वहां चर्च हैं। सभी जगहों के चर्च आतंकवादियों की शरणस्थली बने हुए हैं। चर्च की छत पर घातक हथियार छिपाये जाते हैं। चर्च के पादरी आतंकवादियों के लिए जासूसी करते हैं। चर्च आतंकवादियों के लिए देश-विदेश से धन की व्यवस्था करता है, उनके लिए राजनीतिक समर्थन जुटाता है। इस काम में सैकड़ों गैर-सरकारी संगठनों, मिशनरी स्कूलों, मिशनरी अस्पतालों, मानवाधिकारवादियों, माओवादियों, मुस्लिम संगठनों एवं इस देश के ‘जयचन्दों” का चर्च उपयोग करता है।
वर्तमान समय में अप्रत्यक्ष रूप से सोनिया गांधी के नेतृत्व में इस देश का शासन चल रहा है। बताया जाता है कि पोप, वल्र्ड काउंसिल आफ चर्चेज, वल्र्ड-विजन, बैपटिस्ट वल्र्ड अलाएंस, एक्सन एड, कार्टर फाउण्डेशन ओक्सफेम, यू.एस.ऐड, डी.एफ.आई.डी. तथा विश्व के अन्य अनेक चर्च पोषित वित्तीय संस्थाओं से सोनिया के संबंध हैं। आर्च बिशप, आल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल के सचिव जान दयाल सहित कैथोलिक बैप्टिस्ट तथा अन्य चर्च संगठनों के शीर्षस्थ नेताओं के लिए सोनिया के दरवाजे सदैव खुले रहते हैं। उदार सोनिया उनको खाली हाथ नहीं लौटने देतीं हैं। उनके मुरादें पूरी करती हैं। प्रस्तावित सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निरोधक अधिनियम-2011 ईसाइसों के लिए उनकी हृदय विशालता का ज्वलंत उदाहरण है।
घातक त्रिकोण
नागालैण्ड के तीनों आतंकवादी संगठनों के प्रतीक चिन्ह में ‘नागालैण्ड फार क्राइस्ट’ लिखा है। यह उनका बोध वाक्य है। बैपस्टिस्ट उनका घोषित पंथ है। दूसरी तरफ चीन के साथ घनिष्ठता स्थापित करने के लिए उसने चीन के साम्यवाद को अपने विकास एवं रणनीति का सिद्धान्त घोषित किया है। एन.एस.सी.एन (आई.एम.) का प्रमुख मुइवा जब कभी भी अपना भाषण प्रारम्भ करता है तो प्रारम्भ में ईसा मसीह की प्रार्थना होती है। भाषण के बीच-बीच में हर पांच मिनट पर ‘प्रेज दी लार्ड’ और ‘हैलोलुइया’ का उच्चारण करता है। एन.एस.सी.एन (आई.एम.) के अध्यक्ष आइजक चिसी ने सन् 2006 में अमरीका के ब्रेवली नामक स्थान पर आयोजित सभा को संबोधित करते हुए घोषणा की कि 10,000 नागा मिशनरियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है, जो सारे पूर्वोत्तर क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल, भूटान, म्यांमार व सीमावर्ती चीन में ईसाई मत का प्रचार का कार्य करेंगे।
चर्च के इस कार्य को बल प्रदान करने के लिए नागालैण्ड के सभी बैप्टिस्ट चर्च संगठनों को सन् 2007, 2008 व 2009 में कुल 18 करोड़ रु. सर्व शिक्षा अभियान के नाम पर नागालैण्ड की निफू रियो सरकार ने दिए। नागालैण्ड में 40 बाइबिल कालेज हैं, जहां नागा मिशनरी तैयार किये जाते हैं और राज्य सरकार उनको आर्थिक अनुदान देती है।
राष्ट्रवाद की लहर
लेकिन अब पूर्वोत्तर के आठों राज्यों- असम, अरुणाचल, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैण्ड, सिक्किम व त्रिपुरा में राष्ट्रवाद की लहर चल पड़ी है। अरुणाचल प्रदेश के लोग चीन की एक-एक गतिविधि पर नजरें गड़ाए हुए हैं। चीनी सेना की प्रत्येक हलचल पर ईटानगर में हल्ला मच जाता है। यहां का सीमावर्ती चांगलांग व तिरप जिला नागालैण्ड के आतंकवादी-अलगाववादी संगठनों- एन.एस.सी.एन. (आई.एम.), एन.एस.सी.एन. (खाफलांग) तथा नागा मिशनरियों का गढ़ बन चुका है। किन्तु यहां का तुत्सा समाज, तिखक समाज तथा अन्य जनजातीय समाज जागरूक हो रहा है। ‘मरकर भी मतान्तरण नहीं होने देगें’ उनका यह संकल्प है। चांगलांग व तिरप जिले में तुत्सा, तांग्सा, नोक्हे, वॉचू, सिंग्फो, योबिन तथा तिखक जनजातियां रहती हैं। रांग्फ्रा धर्म प्रसार समिति के प्रमुख श्री एल. खिमुन का कहना है कि इनमें से 70 प्रतिशत लोग मूलत: हिन्दू धर्म के अनुयायी हैं। 5 प्रतिशत बुद्ध हैं। ईसाइयों की आबादी 25 प्रतिशत होगी। जब लोग जागरूक नहीं थे तो चर्च ने उन्हें धोखे से ईसाई बना दिया, किन्तु अब मतान्तरण बन्द हो गया है। ‘इंडीजीनस फेथ एण्ड कल्चरल सोसाइटी आफ अरुणाचल प्रदेश’ तथा ‘रांग्फ्रा फेथ प्रोमोशन सोसाइटी’- ये दोनों ही संगठन सभी स्थानीय संगठनों को साथ लेकर अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रवाद तथा हिन्दू धर्म का परचम फहरा रहे हैं।
नागालैण्ड में 17 जनजातियां हैं। यहां पर जेलियांग, अंगामी, चाखेसाड, पोचुरी, दिमासा सहित काफी नागा जनजातियों में कमोवेश हिन्दू हैं, उन्होंने भारतीयता के गौरव को बढ़ाया है। हिन्दू समाज के साथ एकरूप होने के लिए ये लालायित हैं। इन्हें गले लगाकर अपनाने की आवश्यकता है। ईसाई नागा भी भारतवर्ष के साथ रहना चाहते हैं और वे चर्च व आतंकवाद के चंगुल से बाहर निकलना चाहते हैं।
मिजोरम के मुख्यमंत्री ने हाल ही में बयान दिया है कि मीजो लोगों को अपनी राष्ट्रीयता ‘भारतीय” लिखवानी चाहिए क्योंकि हमने भारतीय संविधान को स्वीकार किया है। मेघालय में सेंगखासी व सेंग खिहलांग दो प्रमुख हिन्दू संगठन राष्ट्रभक्ति का अलख जगा रहे हैं। मिजोरम में मीजो साखुआ नामक संगठन कार्यरत है जो हिन्दू धर्म का अलख जगा रहा है। मणिपुर में तिंग्काव रागुआंग चापरियाक, त्रिपुरा में जमातिया होदा, सिक्किम में भूटिया, लेपचा तथा नेपाली हिन्दुओं का संगठन कार्यरत है। असम में सभी प्रमुख जनजातियों के हिन्दू संगठन हैं जो वहां उनको जागरूक बनाने के लिए कार्यरत हैं। जनजाति धर्म संस्कृति सुरक्षा मंच पूर्वोत्तर में जनजातियों का शीर्ष संगठन है जो उनके धर्म – संस्कृति की सुरक्षा हेतु कार्यरत है। यहां रा.स्व.संघ, विश्व हिन्दू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, सेवाभारती, भारत विकास परिषद तथा विवेकानन्द केन्द्र आदि अनेक संगठन भी सक्रिय हैं। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे गेगांग अपांग, (स्व.) दोरजी खांडू, मुकुट मिथी व नागालैण्ड के एस.सी. जमीर सरीखे भारत-भक्त राजनेताओं ने भी अपने-अपने कार्यक्षेत्र में भारतभक्ति का परिचय दिया है। इन सबके सम्मिलित प्रयासों से राष्ट्रविरोधी शक्तियां अपने षड्यंत्र में सफल नहीं हो पा रही हैं। किन्तु सभी नीतियों को अपनाकर तथा समन्वित कार्ययोजना बनाकर लगातार कार्यरत बने रहने की नितांत आवश्यकता है। भारतीय संसद को भी जगाने की आवश्यकता है। लड़ाई कठिन है, किन्तु इस संघर्ष में विजय अंतत: राष्ट्रवाद की ही होगी।
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