सरोकार
July 14, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

सरोकार

by
Apr 7, 2010, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 07 Apr 2010 00:00:00

प्रकृति, पशु-पक्षी, रीति-रिवाज, जीवन मूल्य, पर्व-त्योहार और नाते-रिश्तों से हमारा विविध रूप रंग-रस व गंध का सरोकार रहता है। हमारी प्रकृति व संस्कृति परस्पर पूरक हैं, परस्पर निर्भरता ही इनका जीवन सूत्र है। हम उनके साथ रिश्तों के सरोकार से विलग नहीं रह सकते, लेकिन बदलते दौर में यह ऊष्मा लगातार कम हो रही है। इन सरोकारों में आई कमी कहीं न कहीं हमारे मन को कचोटती है। प्रकृति व संस्कृति के संरक्षण के लिए इन सरोकारों को बचाये रखना बहुत जरूरी है। इसी दृष्टि से प्रस्तुत है यह स्तंभ। -सं.भैंस, फूल और संगीतद मृदुला सिन्हाहर स्थान की सेहत हर वक्त बदलती रहती है। इधर आठ वर्षों से सवाई माधोपुर (राजस्थान) जाने के कई अवसर आए। अपनी मित्र जसकौर मीणा और उनके पति श्रीलाल मीणा जी की कर्मठता और उद्यमशीलता का परिचय तो पहली भेंट में ही मिल गया था। उनके सहप्रयास से संचालित ग्रामीण बालिका विद्यापीठ और अनुराग होटल देखा था। उनके परिसर में ही कबूतर-तोते के घर, आम के वृक्ष और आंवले के फलों से लदी वृक्ष की डालियां। मन को मोहने और बांधने वाला परिसर था। पर साल भर पूर्व उनके यहां जाने पर उन्होंने अपने परिश्रम और सूझ-बूझ से बढ़ाए प्रकल्प भी दिखाए। जिनमें पचास भैसों की डेरी, आंवले का बगीचा और साग-सब्जियों की खेती भी। पर सबसे सुंदर मुझे जड़वेरा के फूल का “ग्रीन हाउस” लगा। प्लास्टिक की छत और चारों तरफ की दीवारें थीं। बड़े घर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए नीचे से पानी, ऊपर से पानी। फुहारे ही फुहारे। क्यारियों में खिले थे हजारों-हजार फूल, जो हर तीसरे दिन हजारों की संख्या में दिल्ली भेजे जाते हैं। दिल्ली के घरों के भव्य बैठक “रूम”, होटलों, सभागारों में शोभायमान हैं ये फूल।एक समय था जब हमारे घरों के आस पास गेंदा चम्पा, जूही, गुलाब, बेला, चमेली से लेकर सूर्यमुखी तक अपनी सुगंध बिखेरते थे। फिर रात की रानी और रजनीगन्धा का काल आया। और भी बहुत से देसी फूल। बड़े-छोटे गेंदा की अपनी महक और अपना रंग-बिरंगा रूप रहा। शायद इसी फूल ने कहा- “मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तू फेंक…………..”। क्योंकि मंदिरों में यही फूल अधिक दिखते हैं। देशभक्तों की पार्थिव देह पर इनकी बहुलता होती है।पर इनके भी दिन लदे गए कई विदेशी सुगंधहीन फूल आ गए। राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन से लेकर हमारे घरों की छोटी-बड़ी क्यारियों, पार्कों और सड़कों के बीच या किनारे छा गए। रंग ही रंग। नयनाभिराम दृश्य। पर नासिका को देने के लिए उनके पास कुछ नहीं। अच्छी-बुरी सुगंध से हीन हैं।खैर! जड़वेरा को देखने के उपरांत फूल के प्रकारों और वंशजों पर ध्यान चला जाना स्वाभाविक था। मीणा दम्पति हमें अपने प्रयास से लगाए उन फूलों की जानकारी दे रहे थे। श्रीलाल जी ने कहा- “यह राजस्थान का पहला ग्रीन हाउस है।””अच्छा!”फिर उन्होंने बताया कि वह फूल जिसने भारत में फूलों की दुनिया में अपना स्थान बना लिया है, हॉलैंड से आयातित है। अब तो भारतीय हो गया है। मानो हमारे देश की नागरिकता मिल गई। इनकी भी कई पीढ़ियां निकल गर्इं। पर इन्हें अभी मंदिरों में प्रवेश नहीं मिला है। मैंने कहा- “दरअसल आज भी भारत के देवी-देवता “इंडियन” नहीं हुए। वे भारतीय ही हैं। इसलिए उन्हें गेंदा, गुलाब, गुड़हल, बेला के फूल या फिर तुलसी की मालाएं ही भनभावन लगती हैं। शिवजी को तो भांग धतूरे के फूल और बेलपत्र ही। इसके वाबजूद ये विदेशी फूल हमारे यहां खूब फूल-फल रहे हैं। पर हम भगवान को नहीं चढ़ाते।”श्रीलाल जी ने कहा- “आप ठीक कहती हैं। मैं तो इधर भैंस की पसंद-नापसंद से लेकर फूलों की पसंद-नापसंद के बारे में शोध कर रहा हूं, क्योंकि मेरे पास दोनों आमने-सामने हैं।” उनके कथन के सत्यापन के लिए मैं पीछे मुड़ी। सच दस फीट की दूरी पर ही कई भैंसें बैठीं पागुर कर रहीं थीं। मेरी हंसी फूट गई। मैंने कहा- “अब तक हमने भैंस और बीन के नकारात्मक संबंध के बारे में सुना था। मुहावरा ही बन गया- “भैंस के आगे बीन बजाई, भैंस बैठ रही पगुराई”। आप तो भैंस और फूल का संबंध ढूंढ़ रहे हैं। भैंस को फूल पसंद हैं कि नहीं, इस पर भी किसी ने अवश्य शोध किया होगा।”श्रीलाल जी बोले- “दरअसल बात यह है कि समाचार पत्रों में भैंस और फूल से संबंधित कोई खबर मैं बिना पढ़े नहीं छोड़ता। कटिंग कर लेता हूं। इधर मैंने खबर पढ़ी कि भैंस का दूध निकालते समय उसे संगीत सुनाते रहने से वह ठीक से दूध निकालने देती है। उसी प्रकार वैज्ञानिकों का कहना है कि फूलों के बगीचों में संगीत बजाने से वे शीघ्रातिशीघ्र अधिक खिलते हैं। मेरी परेशानी बढ़ गई है।””इसमें परेशानी बढ़ने की क्या बात है? आप तो एक ही यंत्र से दोनों को संगीत सुना सकते हैं। खर्चा बचेगा। दोनों के आवास की दूरियां ही कितनी हैं? आपने तो भैंस के पड़ोस में फूल को बसा दिया है। फूल की निकटतम पड़ोसन भैंसें ही हैं। खैर मनाइए कि वैज्ञानिकों ने विदेशी फूल और देसी भैंस के बीच प्रेम-संबंध की संभावनाएं अभी नहीं बताई हैं। वरना आपको इनमें से किसी एक को विस्थापित करना ही पड़ता। और यदि भैंस को जड़वेरा से प्रेम हो जाए तो पूछिए मत। फूल बचेंगे ही नहीं।”श्रीलाल जी गंभीर हुए। बोले- “मेरी समस्या यह नहीं है। दरअसल समस्या तो इनकी जड़ की है, वंश की। और यह भी कि उन्हें कौन सा संगीत सुनाऊं? मैंने किसी मित्र से पूछा कि इन्हें कौन सा गीत सुनाऊं? एक आर्य समाजी मित्र ने विचार कर कहा- इन फूलों के बाग में गायत्री मंत्र वाला कैसेट लगाओ। दूसरे युवा मित्र ने सुझाव दिया- “कोई थिरकता हुआ रोमांटिक कर्ण फोड़ धड़कता गीत सुनाओ। किसी ने लोकगीत, तो किसी ने पर्व-त्योहारों के गीत के कैसेट लगाने के सुझाव दिए। मैंने भी सोच लिया कि ओम नम: शिवाय या गीता के श्लोकों को गाया हुआ कैसेट भैसों को दुहते समय लगाएंगे। क्योंकि दूध देते समय वह जितना स्थितप्रज्ञ रहे, उसी में हमारी भलाई है। पर जड़वेरा को अधिक खिलाने के लिए किसी भी भारतीय गीत-संगीत के गीत से नहीं चलेगा।””क्यों? आजकल तो ऐसे गीत आ रहे हैं कि इन्हें सुनकर बूढ़े-बुजुर्ग के पांवों और कमर में भी थिरकन आ जाती है। सूखा मन हरा-हरा हो जाता है। फिर जड़वेरा को क्यों एतराज होगा।” मैंने कहा।श्रीलाल जी और अधिक गंभीर हुए। बोले-“जड़ की समस्या है। वंश की। जड़वेरा की जड़ हॉलैंड में है। वहां उसके पूर्वजों ने कोई और धुन सुनी होगी। उसे भारतीय धुन सुनाने पर शायद अच्छा न लगे। फिर तो हमारा प्रयास विफल जाएगा।”फिर तो मैं भी गंभीर हुई- “आपकी चिंता शोधपरक है। आप ठीक कहते हैं। पिछले दिनों मैं अमरीका गई थी। साठ वर्ष पूर्व वहां जाकर बसे डा. राम हुलास जी के पोते से मिली। उसे हिन्दी बोलनी नहीं आती। वह ए.बी.सी.डी (एमेरिकन बोर्न कन्फ्यूजन देसी) है। पर वह हिन्दी गाने ही सुनता है। इतना ही नहीं पिछले दिनों दिल्ली में एक बिहारी, एक मराठी, एक गुजराती, एक बंगाली और एक पंजाबी परिवार का मिलन समारोह था। देशी, विदेशी, जापानी, चाइनीज, पीज्जा, बर्गर-सरगर अनेक खाने की सुस्वादु सामग्रियां थीं। पर बंगाली माछ-भात, बिहारी भात-दाल, आलू की भुजिया, मराठी पूरन पोली, श्रीखंड और गुजराती थेपला की ही ओर लपके। पंजाबी तो छोले-भटूरे पर टूट ही पड़े थे। जबकि दिल्ली में उनकी तीन पीढ़ियां गुजर गर्इं।””यही तो कहता हूं मैं। दरअसल मैं हॉलैंड जाने वाला हूं। वहां के पुराने वाद्ययंत्र ढूंढ़ कर लाऊंगा। धुन भी रेकार्ड कर लूंगा।” श्रीलाल जी की व्यापारिक बुद्धि की कायल होने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं बचा था। वे हालैंड से आयातीत फूल को वहीं के पारंपरिक लोक-संगीत सुनाकर उनका मन प्रसन्न करेंगे, ताकि उनकी उपज बढ़े। भैंस के लिए उन्होंने गीता के श्लोक का कैसेट ही बजाना उचित समझा है। इसमें भी उनका स्वार्थ साफ झलकता है। दरअसल उनका लक्ष्य अधिक फूल और दूध पाना है। पर यह पहल भी तो अपनी जड़ की ओर लौटना हुआ।जसकौर जी ने पूछा- “क्या खाएंगी। दाल बाटी चूरमा बनाऊं।” मैंने कहा- “नहीं। भात, अरहर की दाल और आपके खेत से निकले नन्हे आलू में लहसुन की हरी पत्तियों में भुनी भुजिया।” बोलते हुए भी मेरे मुंह में पानी आ गया था। जसकौर जी बुदबुदार्इं- “पक्की बिहारन हैं।”मैं तो भैंस, फूल और संगीत की गुत्थी सुलझाने में उलझ गई थी। जसकौर जी ने मुझे सराहा या भत्र्सना की, क्या मालूम! वहां पसरे विषय के अनुसार तो मेरे बिहारीपन को सराहना ही मिली होगी।12

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

नूंह में शोभायात्रा पर किया गया था पथराव (फाइल फोटो)

नूंह: ब्रज मंडल यात्रा से पहले इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं बंद, 24 घंटे के लिए लगी पाबंदी

गजवा-ए-हिंद की सोच भर है ‘छांगुर’! : जलालुद्दीन से अनवर तक भरे पड़े हैं कन्वर्जन एजेंट

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies