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नई दिल्ली में संघ शिक्षा वर्ग-प्रथम और द्वितीय वर्ष (विशेष) सम्पन्न

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Apr 7, 2010, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2010 00:00:00

हम दैवीय शक्ति के उपासक हैंडा. बजरंग लाल गुप्क्ष्ैं, संघचालक, उत्तर क्षेत्र, रा.स्व.संघहम कमजोर राष्ट्र नहीं, बल्कि दैवीय शक्ति के उपासक हैं। सज्जन शक्ति के द्वारा गुरु गोबिंदसिंह ने अत्याचारों का सामना किया। दुर्जनों के हाथ में शक्ति आने पर आतंकवाद, नक्सलवाद तथा अत्याचार बढ़ता है, जबकि सज्जनों के हाथ में शक्ति आने से स्वाभिमान व निर्भयता आती है। यह उद्गार रा.स्व.संघ, उत्तर क्षेत्र के क्षेत्र संघचालक डा. बजरंग लाल गुप्त ने गत 19 जून को दिल्ली में सम्पन्न हुए संघ शिक्षा वर्ग-प्रथम एवं द्वितीय वर्ष (विशेष) के समापन समारोह में व्यक्त किए। वे कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे। वर्ग पश्चिमी दिल्ली के हरिनगर स्थित महाशय चुन्नी लाल सरस्वती बाल मन्दिर में 20 दिन तक चला। इसमें 40 वर्ष आयु से अधिक के स्वयंसेवकों ने भाग लिया, जोकि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखण्ड और प. उत्तर प्रदेश के थे। प्रथम वर्ष में 164 और द्वितीय वर्ष में 167 स्वयंसेवकों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ग में स्वयंसेवकों के मार्गदर्शन हेतु संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी सहित अनेक प्रमुख अधिकारियों का आगमन हुआ।कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों के आगमन से हुआ। तत्पश्चात् ध्वजारोहण हुआ और स्वयंसेवकों ने शारीरिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। आयोजन की अध्यक्षता गौतम आटो मोबाइल्स प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली के प्रबंध निदेशक श्री राकेश जैन ने की। इस अवसर पर उन्होंने स्वयंसेवकों को सौभाग्यवान बताते हुए बधाई दी एवं देश और समाज के हित में कार्य करने का आह्वान किया।स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए डा. बजरंग लाल गुप्त ने कहा कि कुछ शाश्वत सिद्धांत होते हैं, इन्हें बार-बार कहने, सुनने और करने से साधना की प्राप्ति होती है। राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए स्वत्व और स्वाभिमान को जगाना जरूरी है। आज हमारे राष्ट्र की पहचान के प्रति लोगों में संभ्रम फैला है। आखिर क्यों संघ 85 वर्षों से राष्ट्र साधना के कार्य में लगा है, यह सोचने का विषय है? उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य वही है जो हमारे महापुरुषों ने धर्मरक्षा के लिए कहा है। डा. गुप्त ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक पहचान हिन्दुत्व है। हमारा धर्म, संस्कृति और जीवनी शक्ति हमारे स्वाभिमान का आधार है। पश्चिमी और पूर्वी जर्मनी के विकास का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिमी जर्मनी, पूर्वी जर्मनी से इसलिए आगे बढ़ सका क्योंकि उसने अपने स्वत्व को नहीं खोया। जब समझ में आया तो दोनों जर्मनी एक होकर आगे बढ़ने लगे। विश्व में भारत के सम्मान के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि भारत में हुए परमाणु परीक्षण से पूरे विश्व में भारतीयों का सम्मान बढ़ा। उन्होंने कहा कि दादा भाई नौरोजी ने एक प्रश्न के उत्तर में अंग्रेजी के कारण भारत के नुकसान को इकोनोमिक ड्रेन (संसाधनों का बाहर जाना) के रूप में बताया। डा. गुप्त ने कहा कि हमारे पास सब प्रकार की संपदा है, इसी कारण हम विश्व मंदी में नहीं पिछड़े। उन्होंने कहा कि वर्ष 1909 में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं- गांधीजी ने हिन्द स्वराज पुस्तक लिखी, कौटिल्य लिखित खोई हुई अर्थशास्त्र की पुस्तक मिली एवं महर्षि अरविंद ने उत्तरपाड़ा में भाषण दिया। इन सबका अनुसरण करने से भारत के विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।अर्थनीति पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि किसी देश की प्रगति उपभोग पर नहीं, बल्कि आम आदमी की बचत और साधनों के सीमित उपभोग पर निर्भर करती है। हमारे देश में बचत, आय का एक-तिहाई होती है, जबकि अमरीका में लोग 3 वर्ष आगे तक का खर्च कर चुके होते हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम कहते हैं “भारतीय जीवनमूल्यों के आधार पर ही हमारा विकास एवं स्वावलंबन हो सकता है।” डा. गुप्त ने कहा कि आज भारत के उद्योगपतियों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भी खरीद लिया है। पूरा विश्व भारतीयों की बुद्धि और परिश्रम से भयभीत है, जबकि हमारा मार्ग विश्व के कल्याण का है। उन्होंने कहा कि संघ शाखा में दिए जाने वाले संस्कारों के बल पर चरित्रवान और शीलवान देशभक्तों का निर्माण होता है। अमरीका में स्वामी विवेकानंद को जब वस्त्रों के कारण असभ्य कहा गया तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे देश में कपड़ों से व्यक्ति महान है, जबकि भारत में चरित्र और ज्ञान से। संघ इसी आधार पर नि:स्वार्थी, साहसी और धर्मरक्षक कार्यकर्ताओं का निर्माण करता है। संगच्छध्वं संवदध्वं… के मंत्र को आधार बनाकर संगठित समाज रचना खड़ी करना, यह संघ का उद्देश्य है। इसी से देशहित से युक्त सभ्य समाज खड़ा होगा और पुन: विश्व में भारतमाता की जयकार होगी। यह साधना देश में ही नहीं, अपितु विश्व के कोने-कोने में हो रही है। द प्रतिनिधि30

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