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समाज का वह वर्ग जिसे स्वयं समाज में ही अलग और उपेक्षित माना जाता है उसी समाज के बच्चे आज न सिर्फ अपनी सकारात्मक उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं, बल्कि विदेशों में भी अपनी पैठ बनाने को आतुर हैं। ये बच्चे विदेशों में बैकिंग क्षेत्र के प्रतिनिधियों व निजी क्षेत्र के स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देने के लिए पूर्णरूपेण तैयार हैं। मंजर यह है कि ये बच्चे स्वयं के सीखने की उम्र में दूसरों को शिक्षा दे रहे हैं।यह कहानी है बिहार के मुजफ्फरपुर के “रेड लाइट एरिया” चतुर्भुज की। कागज, प्लास्टिक चुनने वाले, चाय व किराना दुकान में काम करने वाले यहां के बच्चों ने बैंकों की शब्दावली से अनजान एक अलग बैंक बनाया है। महिला विकास केन्द्र व दिल्ली स्थित बटरलाईज नामक स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से बनाए गए बच्चों के इस बैंक में 1200 से अधिक खाते हैं और अब तक 25 लाख रुपए से अधिक पैसे जमा हो चुके हैं। केवल मुजफ्फरपुर में ही इसके 850 खाताधारी हैं। इस बैंक की शाखा मुजफ्फरपुर सहित सीतामढ़ी और बेतिया में भी है। बैंकों के कार्य का संचालन महिला विकास केन्द्र के एक वयस्क कर्मचारी के सहयोग से बाल बैंकरों द्वारा ही किया जा रहा है। 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे यहां खाता खुलवा सकते हैं। बच्चों के खाता खोलने से पूर्व बच्चों के पैसों की सही जानकारी लेना अति आवश्यक है। पैसों के संदर्भ में यह जानकारी ली जाती है कि पैसा किस तरीके से अर्जित किया गया है। प्रत्येक तीन महीने में जमा पैसे पर साधारण ब्याज दिया जाता है। बच्चों के द्वारा शुरू किया गया यह बैंक बच्चों को समय-समय पर कर्ज भी देता है। बच्चों में बचत की प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए स्थापित इस बैंक से न सिर्फ बच्चों को लाभ मिल रहा है, बल्कि आज ये बच्चे देश-दुनिया में अपनी छवि के लिए प्रसिद्ध भी हो रहे हैं। संजीव कुमार18
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