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पुस्तक का नाम – कर्म और सफलता लेखक – जयकृष्ण सिंह राणा मुद्रक प्रकाशक – कल्पतरु पब्लिशर्स प्रा. लि. कल्पतरु कॉम्प्लेक्स,औरंगाबाद, आगरा रोड,मथुरा- 281001 (उ.प्र.)मूल्य – 140 रु., पृष्ठ संख्या – 164″कर्म और सफलता” कृति जनोपयोगी एवं राष्ट्रोपयोगी है; क्योंकि इसके माध्यम से कर्म, जीवन दृष्टि प्रदान करनेवाले गुरू तथा पिता को विविध सिद्धियों का श्रेय दिया गया है।कर्म और श्रम, सकारात्मक सोच, दृढ़ इच्छाशक्ति, कार्य के प्रति ईमानदारी, जिज्ञासु स्वभाव, सतत् अभ्यास उपयुक्त निर्णय ले सकने की क्षमता तथा कुछ अन्य गुणों को प्रकट करने वाले आलेख इस कृति को सार्थकता प्रदान करते हैं।ब्राजभाषा-भाषियों की एक मान्यता है : “जीवन में उठिबौ अरु गिरिबौ चल तो ई रहतु ऐ- जि अटल सिद्धान्त है; जौ उठतु है बु एक दिना अवस्स गिरतु ऐ- जामें नेकहू झूठ नाँय।” वासुदेव द्वारा गीता (अध्याय 2/श्लोक 11) में कहे गये “अशोच्यान्न्व शोचस्त्वं” से मानव को समाधान-से सुलभ कराती यह कृति संयम व धैर्य, सद्व्यवहार, कुसंगति एवं कुत्सित मानसिकता तथा कदाचारीजनों की संगति के परित्याग की भरपूर वकालत करती है।कृतिकार ने अपने कथ्य की सम्प्रेषणीयता पर विशेष ध्यान दिया है। इसके लिए सरल हिन्दी को माध्यम तो बनाया ही है, स्थान-स्थान पर सटीक दृष्टान्तों का सहारा लेकर कथ्य को अधिकाधिक रोचकता प्रदान की है। पूरे लेखकीय का उद्देश्य आध्यात्मिक विकास के निमित्त आत्मप्रबन्धन को संयमित करके उसमें लक्ष्य के प्रति एकाग्रता उत्पन्न करना है। यों दैहिक, दैविक और भौतिक उत्कर्ष से साम्प्रतिक ही नहीं, अनागत पीढ़ियों को भी उपकृत करने का लेखक का यह उत्तम प्रयास है। … “सामिग्री” (पृष्ठ 164) की तरह की कुछेक भाषाई त्रुटियां पाठक को अखरेंगी; पर कृति की सुषमा को आहत नहीं करेंगी। द साहित्य समीक्षक24
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