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नारे भाषण रैलियां वादे भीड़ प्रपंच, राजनीति के खेल का गांव बना ये मंच। -दिनेश शुक्लराजनीति का विष चढ़ा सूखा हरियल गांव, किस्सा बनकर रह गया सीधा-सच्चा गांव।-रामबाबू रस्तोगीतुलसी से आंगन छिना-छिना नीम से द्वार, यादें लिए अतीत की गांव खड़ा लाचार।-जय चक्रवर्तीलोकलाज की देहरी रस्मों की प्राचीर, चैनल पहुंचे गांव में बगल गई तस्वीर।-दिनेश रस्तोगीसड़कें लेकर गांव को चलीं शहर की ओर, फुटपाथों पर गूंजता झोपड़ियों का शोर।-जय जयराम आनन्द22
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