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लक्ष्मीशंकर वाजपेयीरोज नई चिन्ताएं लेकर आता है अखबार रोज बढ़े लाशों की गिनती, आहों का अंबार ऐसे में रह रहकर मन में उठता वही विचार यही रहा तो आखिर अपने वतन का क्या होगा अपने वतन का क्या होगा।कुछ पौधे हैं तुले स्वयं को चमन बताने पर पूरी की पूरी बगिया में आग लगाने पर हर माली को अपने गमले की सुविधा से प्यार खुशबू रो रोकर कहती है चमन का क्या होगा।धुआं धुआं आंगन में आंखों में कड़ुवाहट है हिलते हैं स्तंभ नींव तक में अकुलाहट है जगह-जगह से दीवारों पर पड़ने लगी दरार र्इंट र्इंट डरती है अपने भवन का क्या होगा।शुभ वचनों की जगह गालियों का उच्चार करें हिंसा के उपदेश अनौखा पंथ प्रचार करें आहुतियां लोहू की निर्दोषों का गला उतार इन “पुरोहितों” के बारूदी हवन का क्या होगा।जख्मी लहुलुहान खड़ी भारत मां रोती है दुखती कंधों पर अनगिन पीड़ाएं ढोती है ममता घुटती है सीने में सोच रही लाचार मेरे बलिदानी बेटों के सपन का क्या होगा।5
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