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आर्य समाज द्वारा शास्त्रार्थ हेतु आमंत्रणयह षडंत्र आखिर किसका है?-जितेन्द्र तिवारीअनेक दशकों बाद यह चर्चा फिर शुरू हुई कि आर्य समाज के मार्गदर्शक ग्रंथ “सत्यार्थ प्रकाश” पर शास्त्रार्थ होना चाहिए। आर्य समाज के अनेक विद्वानों ने ही “सत्यार्थ प्रकाश” विरोधियों को नई दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर गत 20 अप्रैल को यह चुनौती दी। जन्तर-मन्तर परपर घटनास्थल पर ही कुछ लोग इस बात को लेकर आश्चर्यचकित थे किउल्लेखनीय है कि आर्य समाज के संस्थापक और भारतीय पुनर्जागरण के पुरोधा स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सन 1874 में अपने कालजयी ग्रंथ “सत्यार्थ प्रकाश” की रचना की थी। इसका 11वां और 12वां अध्याय भारतीय मत-मतान्तरों से संबंधित है, 13वां अध्याय बाईबिल व 14वां अध्याय कुरान से संबंधित है। इसी अध्याय को लेकर इस ग्रंथ की रचना के समय से ही इस्लामी जगत प्रतिबंध लगाने की मांग करता आ रहा है। सत्यार्थ प्रकाश उस युग की रचना है जब देश गुलाम था, धार्मिक अंधविश्वासों, सामाजिक कुरीतियों का शिकार था। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से इन सब बुराइयों पर प्रहार किया। इसलिए स्वाभाविक था कि तथाकथित मजहबी ठेकेदार स्वामी दयानन्द, सत्यार्थ प्रकाश और उनके आर्य समाज का विरोध करते। इस कारण स्वामी दयानन्द पर चौदह बार प्राणघातक हमले भी किये गये। लेकिन “सत्यार्थ प्रकाश” की बढ़ती लोकप्रियता और प्रभाव को जब विरोधी कम न कर सके तो हताश होकर उन्होंने न्यायालयों की शरण लेनी शुरू कर दी। अंग्रेजों के जमाने में अनेक न्यायालयों तथा गवर्नरों द्वारा इ व के में एक पर और है। की अब है, कर को ने भारी स्वीकार बाद था श्री सत्र33
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