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दलित वोटों की सौदागिरीशशि सिंहउत्तर प्रदेश में अपने खोये जनाधार को पाने की कोशिश में कांग्रेस वंश के राहुल गांधी दलित वोटरों पर डोरे डालने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। कभी अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में किसी दलित के घर रात को चारपाई पर आराम फरमाते हैं और उसके द्वारा दिया हुआ रूखा-सूखा खाते हैं तो कभी अचानक बुंदेलखण्ड पहुंच कर दलितों की झोपड़पट्टी में जाते हैं। निश्चित तौर पर उनका यह प्रयास दलितों की नेता उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को नागवार गुजरता है। हो भी क्यों नहीं, आखिर कांग्रेस के ही दलित वोट बैंक पर बसपा ने कब्जा जमा रखा है। लेकिन सच यह है कि दलितों की भलाई के लिए न तो मायावती ईमानदार कोशिश कर रही हैं और न ही कांग्रेस या राहुल गांधी की मंशा साफ है। मायावती को सत्ता में आये एक साल हो रहे हैं लेकिन उन्होंने अभी तक दलितों की भलाई के लिए ऐसा कोई भी उल्लेखनीय काम नहीं किया जिसको याद किया जा सके। दलित हित के नाम पर अम्बेडकर उद्यान, अम्बेडकर पार्क और इसी तरह के कुछ भावनात्मक मुद्दों केकांग्रेस का आरोप है कि बसपा घबरायी हुई है वरना बुंदेलखण्ड के बारे में कांग्रेस पर उंगली न उठाती। उधर बसपा का कहना है कि कांग्रेस बुंदेलखण्ड में भूख व सूखे से जूझ रहे लोगों से झूठी हमदर्दी दिखाकर राजनीतिक भविष्य संवारने में लगी है। हालांकि दोनों के आरोपों में थोड़ी-थोड़ी सच्चाई है लेकिन सच्चाई यह भी है कि दोनों नाटक से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे हैं। बसपा सरकार चाहे तो बुंदेलखण्ड को विकास के रास्ते पर लाने के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा उसको दे सकती है। कांग्रेस की भी केन्द्र में सरकार है, वह चाहे तो बुंदेलखण्ड के लिए विशेष पैकेज की घोषणा कर सकती है। लेकिन दोनों सरकारों को विकास की चिंता की बजाए अपने वोट बैंक की चिंता है। लिहाजा न दलितों का भला हो रहा है और न ही बुंदेलखण्ड का विकास।24
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