आंगन की तुलसी
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आंगन की तुलसी

by
Mar 8, 2008, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Mar 2008 00:00:00

आवश्यक हैफेरों का पवित्र बंधनमृदुला सिन्हापिछले दिनों पास ही बैठे 30-35 वर्ष की आयु के युवक-युवतियों की एक टोली की आपसी बातचीत सुनने का अवसर मिला। उनके बीच कम्पनियों से उन्हें मिलने वाले “पैकेजव् की बात हो रही थी। उनका पैकेज 10 लाख से 50 लाख तक होता है, सुनकर आश्चर्य हुआ। मुझे जहां कहीं नौजवान-नवयुवतियां मिलती हैं, उनको कम्पनियों से मिल रहे “पैकेजव् और कार्यबोझ की सूचना पाकर मैं उनसे एक सवाल करती हूं- “विवाह कब करोगे/करोगी?व्मानो उनसे कोई अटपटा सवाल कर दिया हो। ज्यादातर युवाओं के जवाब होते हैं- “आंटी! समय कहां है?व्मेरे मन में आता है कह दूं- “पैंतीस की उƒा तक विवाह की नहीं सोची तो फिर सोचना ही मत।व्पर ऐसा नहीं कह सकती। कुछ वर्ष पूर्व किसी तीस वर्षीया लड़की से पूछा था- “विवाह कब करोगी?व्उसने तपाक से जवाब दिया- “नहीं आंटी। विवाह नहीं करना। मुझे सास और पति के हाथों जलना नहीं है। मैं जीवन जीना चाहती हूं। मौज-मस्ती करनी है। विवाह के झंझट में मुझे नहीं फंसना।व्उसी उƒा के एक लड़के ने भी कहा, “नहीं आंटी! अपने मां-बाप को जेल नहीं भेजना। आजकल तो बहू और उसके माता-पिता छोटी-छोटी बातों पर लड़के वालों को जेल भिजवा देते हैं।व्युवक-युवतियों के अंदर विवाह के प्रति इस प्रकार भय और विवाह के लिए सोचने का भी समय नहीं मिलने की बात सुनकर मैंने सुझाव दिया था- “विवाह पूर्व परामर्श केन्द्र खुलने चाहिए।व् दरअसल अपने समाज में इन दिनों विवाह संपन्न होने के बाद भी एक शंका बनी रहती है- “विवाह निभेगा भी कि नहींव्। विवाह बंधन बड़ी आसानी से खुल रहे हैं। विवाह टूट रहे हैं। इन दिनों विवाह को भी निजी मामला माना जाने लगा है। सही बात तो यह है कि हमारे समाज में विवाह दो परिवारों का मेल होता था। आज दो व्यक्ति मिलते हैं। वे दोनों एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदार होते हैं, परिवार या समाज के प्रति नहीं। इसलिए मनचाहे ढंग से टूट जाते हैं।यह भी सच है कि दो व्यक्तियों (स्त्री-पुरुष) का जीवन भर साथ रहना स्वाभाविक संबंध नहीं है। अस्वाभाविक है। स्वाभाविक है स्त्री-पुरुष का सेक्स संबंध। यह एक प्राकृतिक जरूरत है। आहार, निद्रा, भय और मैथुन सभी प्राणियों में है। परंतु स्त्री-पुरुष की इस नैसर्गिक अनिवार्य आवश्यकता को देखकर ही समाजवेत्ताओं ने एक स्त्री और एक पुरुष को पारिवारिक बंधन में बांध दिया।परंतु विवाह का रूप जैसा भी हो, विवाह अनिवार्य नहीं, आवश्यक अवश्य है। विवाह विच्छेद की संख्या बढ़ने से समाज में विद्रूपताएं आती हैं। पति-पत्नी और पारिवारिक विवाद की बढ़ती संख्या को देखकर सामाजिक और सरकारी संस्थाओं ने भी “परिवार परामर्श केन्द्रोंव् की व्यवस्था की है। कल तक यह कार्य परिवार वालों और रिश्तेदारों का था। एक सर्वेंक्षण के अनुसार देश के कोने-कोने में स्थित तीन सौ परिवार परामर्श केन्द्रों पर पन्द्रह वर्षों में 30 लाख मामले आए।दरअसल समाज के एक वर्ग में तेजी से बदलाव आया है। युवक-युवतियों पर पढ़ाई का बोझ है। वे अपने परिवार और सगे-संबंधियों के बीच के बीच भी विवाह संबंध को निभते नहीं देख पाते। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर जो विवाह संबंध दिखाया जाता है, वह भयानक और भयावह है। इसलिए विवाह के प्रति भय उत्पन्न होना आवश्यक है।विवाह बंधन के प्रति उनकी अज्ञानता, हल्की सोच और विवाहित जोड़ियों से रही दूरियों के कारण अनुभवहीनता रहती है। बिना सोचे समझे किए गए विवाह बिना विचारे टूटे जा रहे हैं। इसलिए प्रत्येक विश्वविद्यालय में एक विवाह पूर्व परामर्श केन्द्र की स्थापना होनी ही चाहिए।आज समाज में अविवाहित रह रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है। इसका प्रमुख कारण समय पर सही परामर्श नहीं मिलना भी है। पिछले पन्द्रह वर्षों से अमरीका में पढ़ाई कर अब अच्छे “पैकेजव् वाली नौकरी में लगे नौजवान के पिता को अत्यधिक चिंतित देख मैंने उनके बेटे को परमर्श देने का बीड़ा उठाया। अपने दूरभाष बिल का खर्चा उठा कर मेरी दो तीन बार उससे बातचीत हुई। उसने विवाह के प्रति इतने सारे नकारात्मक तथ्य और उदाहरण इकट्ठे कर रखे थे कि मेरे द्वारा एक भी सकारात्मक पक्ष रखना कठिन हो रहा था। मैंने कहा- “ठीक है। तुम्हारे दो चार मित्रों के विवाह टूट गए, पर तुमने अपने माता-पिता, सगे-संबंधियों और गांव में सैकड़ों विवाह सफल होते हुए भी देखे होंगे। फिर उनसे प्रेरणा क्यों नहीं लेते? उसने जवाब दिया- “आठ वर्ष की आयु में मैं हास्टल चला गया, फिर यहां आ गया। अपने मां-बाप का भी वैवाहिक जीवन नजदीक से नहीं देखा। हास्पीटल में जन्मा, हास्टल में रहकर पढ़ा और अब होटल का खाना खा रहा हूंं।व् उस नौजवान के मन पर मेरे परामर्श का थोड़ा-थोड़ा असर तो पड़ा। वह विवाह के लिए तैयार हुआ पर विवाह के प्रति उसके मन में उठे कई प्रश्न अनुत्तरित ही रहे।यह आज की आवश्यकता है कि कुछ सफल विवाहों की कहानियां, विवाह की जरूरतों पर लिखे निबंध आदि पाठ्य-पुस्तकों में भी डाले जाएं। एक इंजीनियर, डाक्टर बनाने के लिए कितने शिक्षण-प्रशिक्षण होते हैं, परिवार चलाने का प्रशिक्षण क्यों नहीं? समय आ गया है जब विवाह की गंभीरता को समझते हुए युवक-युवतियों को विवाह परामर्श के द्वारा विवाह का सही अर्थ समझाया जाए। उनके प्रश्नों का सही उत्तर दिया जाए। वरना विवाह करके भी वे सशंकित ही रहते हैं। विवाह को संस्कार नहीं, संकट मानते हैं।23

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