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गांधी जी के राम-रविन्द्र शंकर जोशीसुप्रसिद्ध साहित्यिक रामधारी सिंह “दिनकर” की पुस्तक “संस्कृति के चार अध्याय” की प्रस्तावना भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लिखी है। पंडित जी लिखते हैं, “पाश्चात्य विचारों में भारत का जो विश्वास जगा था, अब तो वह भी हिल रहा है। नतीजा यह है कि हमारे पास न तो पुराने आदर्श हैं, न नवीन, और हम बिना यह जाने हुए बहते जा रहे हैं कि हम किधर जा रहे हैं या कहां जा रहे हैं। नयी पीढ़ी के पास न तो कोई मानदण्ड है, न कोई दूसरी ऐसी चीज जिससे वह अपने चिन्तन या कर्म को नियंत्रित कर सके। यह खतरे की स्थित है।” …. (30 सितम्बर, 1955)यह संपूर्ण ग्रंथ ही अध्ययन योग्य है, परन्तु वर्तमान संदर्भ में सारा देश जिन “राम” की संदर्भ के चर्चा कर रहा है, उन “राम” का गांधी जी से क्या रिश्ता-नाता था, इसको समझने का हमें प्रयास करना चाहिए।संस्कृति के चार अध्याय के पृष्ठ 448, 449 इस विषय का विवेचन करने हेतु अधिक उपयुक्त हैं। रामधारी सिंह “दिनकर” लिखते हंै कि गांधी जी अपने को वैष्णव कहते थे और राम नाम के जप तथा कीर्तन में उनका बड़ा विश्वास था। यहां तक कि अन्त में आकर उनका विश्वास हो गया था कि रामधुन से पाप तो क्या, शारीरिक रोग भी छूट जाते हैं। हत्यारे की गोलियां खाकर जब वे भूमि पर गिरे तब भी उनके मुख से “हे राम”- ये दो शब्द ही निकले थे।जिन राम का नाम गांधी जी आजीवन जपते रहे तथा जिसका नाम लेते हुए उन्होंने अपने प्राण त्यागे, वह राम कौन थे, यह आज विवाद का विषय है। “मेरे राम, हमारी प्रार्थनाओं के राम ऐतिहासिक राम नहीं हैं, वे दशरथ के पुत्र और अयोध्या के राजा नहीं हैं। वे तो सनातन हैं, अजन्मा हैं, अद्वितीय हैं। मैं उन्हीं की पूजा करता हूं। उन्हीं से सहायता और वरदान मांगता हूं। वे सबके हैं, इसलिए मैं यह समझ नहीं पाता कि कोई मुसलमान या अन्य व्यक्ति उनका नाम लेने पर आपत्ति क्यों करता है? ईश्वर को वह राम न मानें यह संभव है, किन्तु राम की जगह वह अल्लाह या खुदा का नाम तो ले ही सकता है।” (हरिजन-28 अप्रैल, 1946)यह गांधी जी के राम का एक पक्ष है। दूसरा पक्ष तब सामने आया जब एक जिज्ञासु ने उनसे यह प्रश्न किया कि कहने को तो आप यह कहते हैं कि आपके राम दशरथि राम नहीं हैं। फिर ऐसा क्यों है कि आपकी प्रार्थना में सीताराम और राजाराम शब्द बार-बार आते हैं?इस प्रश्न के उत्तर में गांधी ने हरिजन में 2 जून, 1946 को टिप्पणी लिखी कि “यह ठीक है कि रामधुन के क्रम में सीताराम और राजाराम शब्द बार-बार आते हैं किन्तु ध्यान देने की बात यह है कि राम से अधिक शक्तिशाली उनका नाम है। हिन्दू धर्म तो महासिन्धु के समान है जिसमें असंख्य बहुमूल्य मोती भरे पड़े है। इस धर्म में ईश्वर के अनेक नाम हैं। हजारों लोग असंदिग्ध रूप से राम और कृष्ण को ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं तथा यह विश्वास करते हैं कि वे ईश्वर के अवतार थे। इतिहास, कल्पना और सत्य हिन्दुत्व में सब मिलकर एकाकार हो गए हैं।”राम” के सन्दर्भ में इतिहास, कल्पना और सत्य,आइये, हम पुरुषार्थी राम के वंशज रामभक्ति से राष्ट्रभक्ति जागृत करने में जुट जाएं।13
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