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Feb 11, 2008, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Feb 2008 00:00:00

आतंकवाद की तपिश और सिसकियांजयपुर का प्रसिद्ध हनुमान मंदिर, जहां पहला विस्फोट हुआ थाघायलों को ले जाते पुलिसकर्मी व अन्य-दर्द भी, दुर्दशा भीविस्फोट की वीभत्सता का वर्णन करता एक चित्रघटनास्थल का दौरा करते हुए पूर्व उपराष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावतघायलों की सेवा और परिजनों का सहयोग करते संघ के स्वयंसेवकअस्पताल में एक घायल बालिका से मिलते हुए पूर्व उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणीचिकित्सालय में घायलों को ढाढस बंधाने पहुंचीं मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजेसंवाद… – बल्देव भाई शर्माराष्ट्रहित के संकल्प की ज्योति जलाएं -मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह, रा.स्व.संघराष्ट्रभक्ति की अक्षय ज्वाला – श्रीप्रकाशअदृश्य हमलावरों का खतरा पहचानें यह 1300 वर्ष लम्बा वैचारिक युद्ध है – देवेन्द्र स्वरूपये आतंकवादी नहीं, फसादी हैं – श्री एम.जे. अकबरइस्लामी आतंतवाद से कतराता मीडिया – शंकर शरणआतंक के विचार पर प्रहार करो – आरिफ मोहम्मद खान, पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं प्रख्यात चिंतकसिमी का पैरोकार मीडिया देश विरोधी – साजिद रशीद, वरिष्ठ स्तम्भकारमीडिया के एक वर्ग में भी पूर्वाग्रह हैं सनसनी के लिए डर का माहौल बनाना गलत – राजदीप सरदेसाई, मुख्य संपादक, आई.बी.एन.18 नेटवर्ककड़े कानून से मिटेगा आतंक क्रिकेट के नियमों से हाकी नहीं खेलते – डा. हरबंश दीक्षित,अध्यक्ष, विधि विभाग, के.जी.के. कालेज, मुरादाबाददहशत…. और बेशर्म लापरवाही!हिन्दुस्थान के लोग अहिंसक नहीं हैं, सहिष्णु भी नहीं हैं – तरुण तेजपाल, समूह सम्पादक, तहलकाआंतरिक सुरक्षा को नकारती उर्दू पत्रकारिता – शाहिद रहीमआतंकवाद का समर्थन करने वाले भी आतंकवादी – डा. वेद प्रताप वैदिक, वरिष्ठ पत्रकारराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. कार्यकारी मंडल की मांग वोट बैंक राजनीति छोड़ें,इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेंछटा बिखेरेगी मीठी सी चांदनी फिर से – लक्ष्मी शंकर वाजपेयीजले आज पहला दीया जनमेजय के नाम – शिव ओम अम्बरअभिव्यक्ति-मुद्राएं – सरिता शर्माये “दारुल इस्लामव् चाहने वाले – शिव कुमार गोयल, वरिष्ठ पत्रकारसौभाग्य-कीर्ति की प्रतीक हैं लक्ष्मी – प्रो. योगेश चन्द्र शर्माकहानी एक दीया उसके नाम भी – मृदुला सिन्हापाठकीयसम्पादकीय2क्या शोबन देवी की चीत्कार भारत की वर्तमान केन्द्रीय सत्ता के कानों तक पहुंची होगी? आतंकवाद की आग उसके पति व पुत्र की जिंदगी लील गई जिनके भरोसे उसकी गृहस्थी चलती थी। परिवार पालने वाले दोनों सदस्यों की अकाल मौत के बाद शोबन, उसकी विधवा बहू, नन्हीं सी जान उसकी पोती और शादी योग्य बेटी की जीवन नौका हिचकोले खा रही है, एक ही चिंता कि अब पेट कैसे पालेंगे! बेटी की शादी की चिंता का पहाड़ सा बोझ अलग। दिल्ली में करीब डेढ़ माह पहले हुए बम विस्फोटों में करोलबाग के बीडनपुरा की गली नं. 42 का रुदन अभी भी थमा नहीं है, यहां बम विस्फोट में शोबन देवी के पति-पुत्र सहित 8 लोगों की मृत्यु हुई थी। यहीं गंगाप्रसाद के अनाथ बच्चों के बिलखते चेहरे बिना कुछ कहे ही आतंकवाद की भयावहता दर्शा जाते हैं।देश के कोने-कोने में ऐसे भयाक्रांत, चिंतातुर और विह्वल लोग बड़ी संख्या में हैं जिनके हजारों निर्दोष परिजन पिछले कुछ वर्षों में जिहादी आतंकवादियों की हिंसा के शिकार हो गए, लेकिन इनकी पीड़ा वोट की राजनीति के खेल में मग्न सेकुलर सत्ता प्रतिष्ठान की मृत संवेदनाओं को नहीं झकझोर पाती है। एक के बाद दूसरी, फिर तीसरी, ऐसी अनगिनत आतंकवादी घटनाएं लाखों पीड़ित मनों को गहरे जख्म तो दे ही रही हैं, जन-मन के उस विश्वास को भी दरका रही हैं जो अपनी सुरक्षा के लिए देश की सत्ता के प्रति एक आश्वस्ति का भाव पाले रहता है। आतंकवाद ने देश की आंतरिक सुरक्षा के ताने-बाने को छिन्न-विच्छिन्न कर दिया है। उधर, केन्द्रीय सत्ता की बेशर्म लापरवाही से लगातार बढ़ रहे आतंकवाद के रूप में कहीं भी किसी भी क्षण मौत झपट्टा मारती सी दिखती है।इस आग में घी डालने का काम करते हैं सेकुलर मीडिया, वामपंथी बुद्धिजीवी और स्वयंभू मानवाधिकारवादी, जिन्हें आतंकवादियों के खूंखार चेहरों में “भोलापन” और “निर्दोष” भाव तो दिखता है, परंतु जो बेकसूर लोग मारे गए, उनके रोते-बिलखते परिजनों का दर्द और राष्ट्रपुरुष की देह पर आतंकवाद के अनगिनत घाव उन्हें नजर नहीं आते। आतंकवादियों से लोहा लेती पुलिस उन्हें अत्याचारी नजर आती है। सिमी जैसे राष्ट्रविरोधी व आतंकवादी संगठन को निर्दोष बताते हुए अजीत साही “तहलका” में दर्जनों पन्ने रंग देते हैं, दिल्ली के जामिया नगर में आतंकवादियों के खिलाफ हुई बटला हाउस पुलिस मुठभेड़ में मारे गए आतिफ और गिरफ्तार किए गए शकील व जिया उर रहमान को निर्दोष छात्र बताने के लिए कुछ अंग्रेजी अखबारों ने मुहिम चला दी, सेकुलर मीडिया की चहेती अरुंधती राय ने कश्मीर घाटी में पाकिस्तानी झण्डा फहराते, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते अलगाववादियों के बीच बड़े जोश के साथ कश्मीर की आजादी का स्वर बुलंद करते हुए राष्ट्रविरोधी तत्वों की पीठ थपथपा दी, उधर गुजरात में श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों का मुख्य षड्यंत्रकत्र्ता अबू बशर जब गिरफ्तार हुआ तो आजमगढ़ स्थित उसके गांव में सेकुलर नेताओं की दौड़ के बीच मानवाधिकारवादी तीस्ता सीतलवाड़ भी पैरवी करने पहुंचीं। ये कुछ उदाहरण हैं जिनसे समझा जा सकता है कि आतंकवाद को बल कहां से मिलता है, कौन हैं उसके पैरोकार। “गजनी की वापसी” का नारा उछालकर अपनी जिहादी पहचान बनाने वाला सिमी और उसका नया अवतार इंडियन मुजाहिद्दीन, जिसने अमदाबाद बम विस्फोट के दिन 13 मई को ही समाचार पत्रों के कार्यालय में ईमेल करके अपने उद्देश्यों को स्पष्ट कर दिया था कि “जिहाद का उदय, गुजरात का बदला- हिंद की धरती पर इंडियन मुजाहिद्दीन द्वारा जारी” खुलेआम इस्लामी जिहाद की घोषणा करते हैं और सेकुलर जमात कहती है कि आतंकवाद को इस्लाम से मत जोड़ो। इसके विपरीत जब आजमगढ़ में ही एक इस्लामी जलसे में लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की तुलना आतंकवादियों से की जाती है तो इन लोगों की जवान को मानो लकवा मार जाता है और इनकी कलम भौथरी हो जाती है कि इसके खिलाफ आपत्ति का एक शब्द भी नहीं उभरता। इसी तरह कंधमाल और कर्नाटक में हुईं कुछ हिंसक घटनाओं पर स्यापा करने वाले सेकुलर मीडिया ने स्वामी लक्ष्मणानंद की चर्च द्वारा कराई गई हत्या की खबर को कोई प्रमुखता नहीं दी।आतंकवाद के दंश की चुभन कितनी पीड़ादायक है और उसके प्रति कैसी गैरजिम्मेदारी दिखाई जा रही है, यह सामने लाने का एक विनम्र प्रयास है हमारा यह विशेष आयोजन। यह ठीक है कि आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए केन्द्रीय सत्ता की दृढ़ इच्छाशक्ति व कड़े कानूनी ढांचे की जरूरत है, परंतु जिस तरह एक अदृश्य शक्ति बनकर आतंकवाद अचानक जगह-जगह कायरतापूर्ण वार करता है और गली-मोहल्लों-बाजारों में खून से लथपथ लाशें बिखर जाती हैं, उसे देखते हुए जनशक्ति का उदय भी उतना ही आवश्यक है। यह होगा नागरिक भागीदारी से, जिसे प्रशिक्षित करने व सबल बनाने का कार्य मीडिया कर सकता है, लेकिन जब मीडिया ही सही-गलत के विभ्रम में उलझा रहेगा तो इस महत् दायित्व को निभाएगा कौन? जाग्रत जनशक्ति के दबाव में शासन भी मजबूर होगा कड़े कदम उठाने के लिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने आतंकवाद का सामना करने के लिए 3 सूत्र बताए हैं, पहला- आतंकवादियों से समाज डरे नहीं, दूसरा- जागरूक रहकर अपने आस-पड़ोस में नजर रखें कि कुछ संदिग्ध तो नहीं और तीसरा कि आतंकवादी घटना होने पर पीड़ित लोगों को राहत पहुंचाने के लिए तत्काल सक्रिय हों। ये सूत्र देशवासियों के लिए नागरिक प्रशिक्षण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आतंकवाद के शिकार होकर अपनी जान गंवाने वाले लोग शहीद की श्रेणी में आते हैं, इस दीपावली पर उनका पुण्य स्मरण करते हुए हम एक दीया उनके नाम का भी जलाएं तो आतंकवाद के खिलाफ जन-जन की लड़ाई के अभियान को एक भावनात्मक संबल मिलेगा।आपका अपनाबल्देव भाई शर्मा3

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