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पोलियो दवा का कठमुल्ला विरोध0 मलेशिया में इस्लामी देशों ने विशेष सम्मेलन करके कहा- मुस्लिम पोलियो दवा जरूर पिलाएं0 सऊ दी अरब ने बनाया कानून- पोलियो दवा नहीं तो हज नहीं-मुजफ्फर हुसैन, वरिष्ठ स्तम्भकारमुस्लिम जगत में पोलियो दवा का विरोध कोई नई बात नहीं है। भारत में उत्तर प्रदेश से अनेक बार ऐसे समाचार मिले हैं जो यह बताते हैं कि एक विशेष वर्ग अपने बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने का सख्त विरोध करता है। जब सरकार और सामाजिक संस्थाओं की ओर से पोलियो विरोधी अभियान शुरू होता है उस समय एक वर्ग चुपचाप यह प्रचारित करने लगता है कि “पोलियो की दवा से बच्चा नपुंसक हो जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या कम करने का यह पश्चिमी देशों द्वारा संचालित अभियान है। इसलिए मुस्लिम बच्चों को उक्त दवा दिलाना खतरनाक ही नहीं बल्कि गैर इस्लामी भी है।” बड़ी-बूढ़ी महिलाएं दवा पिलाने वाले डाक्टरों और समाजिक कार्यकर्ताओं के दल को देखते ही छोटे बच्चों को छिपा देती हैं। उत्तर प्रदेश में यह रोग मुस्लिम बच्चों में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, बरेली और मुरादाबाद जिले के गांवों में तो इस प्रकार के मामले हुए हैं, जिनमें बीच बचाव करने के लिए स्थानीय पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा है। इस मामले में भारत का मुस्लिम वर्ग ही ऐसी सोच नहीं रखता बल्कि अन्य मुस्लिम देशों में भी इस प्रकार की घटनाएं घट रही हैं। मामला इतना गंभीर हो गया है कि मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में राष्ट्रपति अब्दुल्ला अहमद बदवी की अध्यक्षता में ओ.आई.सी. (ओरगेनाइजेशन आफ इस्लामिक कांफ्रेंस) के अंतर्गत 57 इस्लामी राष्ट्रों का सम्मेलन आयोजित कर इस कुप्रचार को रोकने के संबंध में विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन में भाग लेने वाले इस्लामी राष्ट्रों ने इस बात को स्वीकार किया है कि 1988 से, जब से पोलियो के विरोध में विश्व स्तर पर आन्दोलन चल रहा है, पोलियो को रोकने में बड़ी सफलता मिली है। सम्मेलन में उपस्थित 57 राष्ट्रों में से 54 राष्ट्रों में आज पोलियो पर काबू पा लिया गया है। जिन तीन राष्ट्रों में यह अभिशाप अब भी शेष है उनमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया शामिल हैं। जिन देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं और जहां पोलियो अब भी बड़े पैमानों पर बालकों में पाया जाता है, वह देश भारत है।इस रपट का सबसे चौंका देने वाला हिस्सा पाकिस्तान से संबंधित है। पाकिस्तान के अंग्रेजी दैनिक द डान में लिखा है- “आजादी के 60 साल बाद भी पाकिस्तान के कई इलाकों में सामाजिक चेतना स्तर क्या है, यह जनजातीय क्षेत्र बाजौर में हुई एक घटना से स्पष्ट हो जाता है। पिछले दिनों इस क्षेत्र में बच्चों को पोलियो विरोधी दवा पिलाने के लिए स्वास्थ्यकर्मियों का एक दल गया था। कुछ सशस्त्र लोगों ने इस दल के लोगों की पिटाई कर दी। ये लोग नहीं चाहते थे कि बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई जाए। स्वास्थ्य मंत्रालय का यह दल पाकिस्तान में चल रहे पोलियो विरोधी अभियान के तहत इस क्षेत्र में गया था। उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत और देश के कबाइली इलाकों में बच्चों को पोलियो दवा पिलाने के विरुद्ध व्यवस्थित तरीके से मुहिम चलाई जाती है। इसके कारण अभिभावक अपने बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने से परहेज करते हैं। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इन लोगों को पोलियो की दवा से इस हद तक दुश्मनी है कि इसका विरोध करने के लिए उन्होंने अपना रेडियो स्टेशन बना रखा है। विरोध करने के लिए बैनर हाथ में लेकर वे रैलियां निकालते हैं और पोलियो की दवा पिलाने वालों को पाकिस्तान और इस्लाम का विरोधी बताते हैं। दवा का विरोध करने वाले कहते हैं, “इसको बनाने वाले यहूदी हैं। वे नहीं चाहते कि मुसलमानों के बच्चे जीवित रहें। यदि वे जीवित रह जाते हैं तो आगे चलकर नपुंसक बन जाते हैं। यानी मुसलमानों की संख्या न बढ़े यह उनका मुख्य उद्देश्य रहता है।” पाकिस्तान में उन घरों का बहिष्कार कर दिया जाता है जो पोलियो की दवा अपने बच्चों को पिलाते हैं। जिस व्यक्ति ने अपने बच्चे को पोलियो की दवा पिला दी उसका सामाजिक स्तर पर विरोध होता है। जो पोलियो की दवा का समर्थक होता है उसे यहूदी- समर्थक की संज्ञा दी जाती है। यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि ये लोग सरकारी एजेंट हैं, इसलिए उन्हें अपने गांव में नहीं घुसने दिया जाना चाहिए।कट्टरवाद फैलाने के लिए जिस प्रकार मस्जिद और मदरसे का उपयोग किया जाता है उसी प्रकार से पोलियो विरोधी मुहिम मजहबी स्थानों से संचालित की जाती है। मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर से यह घोषणा होती रहती है कि “इस्लाम के दुश्मनों से सावधान, वे तुम्हारे बच्चों को पोलियो के नाम पर जो दवा पिला रहे हैं वह इस्लाम को समाप्त करने की मुहिम का अंग है।” कुछ मनगढ़ंत किस्से सुनाए जाते हैं। दूसरे नगरों के नाम और बच्चों के फर्जी पते देकर यह कहा जाता है कि विश्वास न आए तो वहां जाकर इसकी जांच कर लो। एक मौलवी ने तो इस मामले में हद कर दी। उसने मोहल्ले की मस्जिद में महिलाओं को एकत्रित किया और उनसे कहा कि कुरान पर हाथ रख कर कहो कि तुम अपने बच्चों को पोलियो की दवा नहीं पिलाओगी। जिस दिन उन्हें पता लग जाता है कि आज सरकारी कर्मचारी पोलियो की दवा पिलाने के लिए आएंगे तो लोग घरों पर ताला लगा कर अन्यत्र चले जाते हैं। किसी महिला ने साहस से काम लिया और अपने बच्चे को दवा पिला दी तो फिर उसका तलाक हो जाना एक साधारण बात है। हालत यह है कि सरकारी अधिकारी पिटाई के भय से इस अभियान में शामिल नहीं होते। पोलियो दवा देते समय पुलिस की सहायता लेना कितनी हास्यास्पद बात है।”पोलियो दवा विरोधियों से कैसे निपटा जाए, इस मामले में पाकिस्तान सरकार कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पाई है। लेकिन पिछले दिनों सऊ‚दी सरकार ने जो पहल की है उससे पाकिस्तान सरकार को बड़ी राहत मिली है। सऊ‚दी सरकार ने इस्लामी संगठन को बताया कि अब सऊ‚दी सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया है कि कोई भी व्यक्ति बिना पोलियो की दवा लिए हज नहीं कर सकता। सऊ‚दी अधिकारियों को वह प्रमाण पत्र दिखाना पड़ता है जिसमें सरकार ने यह प्रमाणित किया हो कि उक्त व्यक्ति ने पोलिया की खुराक ली है। कुल कतनी बार दवा ली उसकी संख्या भी लिखनी पड़ती है। अब यदि किसी के पास हज के अवसर पर ऐसा प्रमाण पत्र नहीं होगा तो वह व्यक्ति सऊ‚दी अरब की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकेगा। पोलियो पर चर्चा के लिए मलेशिया में इस विशेष इस्लामी सम्मेलन के देशों ने एक अपील जारी की है जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों को शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहते हुए पोलियो खत्म करने के अभियान में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए। मस्जिद-मदरसे में जो इस प्रकार की अफवाह फैलाते हैं और घरों में जाकर अनपढ़ महिलाओं को भड़काते हैं उनके लिए हर देश में कानून बने और सख्ती से उसका पालन करवाया जाए। मस्जिद और मदरसे पर बैनर लगाए जाएं कि 0 से 5 साल तक के बच्चे को पोलियो की दवा पिलाना अति आवश्यक है।17
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