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परमाणु संधि के संदर्भ में रा.स्व.संघ का मूल प्रस्तावअमरीका से परमाणु सन्धि के सन्दर्भ में रा.स्व.संघ की अ.भा. कार्यकारिणी की सभा ने गत वर्ष 24 से 26 फरवरी के मध्य नागपुर में हुई बैठक में जो प्रस्ताव पारित किया था, उसी के प्रकाश में 123 समझौते को देखा जाना चाहिए। कोई भ्रम या शंका न रहे, इस हेतु वह प्रस्ताव पुन: यहां प्रकाशित किया जा रहा है।राष्ट्रीय हितों के विपरीत है भारत-अमरीका आण्विक समझौताजुलाई, 2005 में हमारे प्रधानमंत्री तथा संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति द्वारा भारत-अमरीका नागरिक आण्विक समझौते पर किए गए हस्ताक्षर भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए घातक हैं। इस प्रकार के विभिन्न समझौतों पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा चिन्ता व्यक्त करती है। ऐसी संभावना प्रतीत होती है कि यह समझौता भारत की आण्विक क्षमता को हतोत्साहित करने के लिए तैयार किया गया है और इससे नागरिक एवं सुरक्षा-दोनों दृष्टियों से हमारे सभी भावी प्रयत्न सतत् रूप से अमरीका पर अवलम्बित हो जाएंगे। इस समझौते में भविष्य में भारत द्वारा किए जाने वाले सभी प्रकार के आण्विक परीक्षणों को प्रतिबंधित करने वाला प्रावधान सर्वाधिक असंगत एवं अनुचित है, क्योंकि आण्विक परीक्षण हमारे भावी अनुसंधान के लिए नितान्त आवश्यक हैं। इसी प्रकार बहु प्रतीक्षित अणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने का मुद्दा भी केवल दिखावा बनकर रह गया है। जब तक आधिकारिक रूप से यह दर्जा हमें प्राप्त नहीं होता, अपने आण्विक प्रतिष्ठानों को निरीक्षण हेतु अन्तरराष्ट्रीय अणु-ऊर्जा निकाय के अधिकारियों के लिए खोलना हमारे लिए जोखिम भरा निर्णय होगा। किसी गैर-आण्विक देश के लिए ये निरीक्षण अधिकाधिक कठोर होते हैं।प्रतिनिधि सभा मानती है कि हमारे आण्विक कार्यक्रमों को नागरिक एवं सैन्य कार्यक्रमों के रूप में विभाजित करने के गम्भीर परिणाम होंगे। अनेक वैज्ञानिकों ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि भारत के पास जो भी आण्विक सुविधाएं हैं वे प्राथमिक तौर पर नागरिक सुविधाएं हैं, लेकिन हम उनका सुरक्षा सम्बंधी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि हम अपने आण्विक कार्यक्रमों को इस प्रकार विभाजित करेंगे तो हम अपने तीन-चौथाई कार्यक्रमों एवं वैज्ञानिकों को अन्तरराष्ट्रीय अणु-ऊर्जा निकाय के नियंत्रण में ला देंगे, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के विपरीत होगा।अ.भा.प्रतिनिधि सभा अपेक्षा करती है कि सरकार को अपने ही देश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थोरियम भण्डार की तरफ ध्यान देना चाहिए, जिसका आण्विक र्इंधन के रूप में उपयोग किया जाना सम्भव है। इससे नागरिक एवं सैन्य आण्विक कार्यक्रमों की पहल की हमारी स्वतंत्रता अबाधित रहेगी। प्रतिनिधि सभा भारत के उन प्रतिभा सम्पन्न वैज्ञानिकों एवं विदेश नीति के विशेषज्ञों का अभिनंदन करती है जो राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल इस समझौते के खिलाफ दृढ़तापूर्वक खड़े हुए तथा जिन्होंने इसके विरुद्ध व्यापक जनमत को जागृत करते हुए सरकार को चेताया। प्रतिनिधि सभा सरकार का आवाहन करती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के इस अतिसंवेदनशील मुद्दे पर वह सावधानीपूर्वक एवं पारदर्शिता से ही आगे बढ़े। वैज्ञानिकों, रक्षा विशेषज्ञों, सेना प्रमुखों तथा विदेश नीति के विशेषज्ञों के साथ विस्तृत चर्चा करते हुए एक दीर्घकालीन आण्विक नीति अपनानी चाहिए जो हर प्रकार के विदेशी दबाव से मुक्त हो।5
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