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पाठकीय

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Sep 9, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Sep 2007 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 5 अगस्त,2007पञ्चांगसंवत् 2064 वि. – वार ई. सन् 2007भाद्रपद कृष्ण 13 रवि 9 सितम्बर, 07″” 14 सोम 10 “”भाद्रपद अमावस्या मंगल 11 “”भाद्रपद शुक्ल 1 बुध 12 “””” 2 गुरु 13 “””” 3 शुक्र 14 “”(हरितालिका व्रत)”” 4 शनि 15 “”मनमोहन जी कुछ करोशहर हैदराबाद में, पुन: हुआ विस्फोटमनमोहन जी अब को, लगी कहीं कुछ चोट?लगी कहीं कुछ चोट, नहीं पोटा लाओगेक्या अब भी आतंकवाद को दुलराओगे?कह “प्रशांत” हर बार पाक पर दोष लगाकरकितने दिन बच पाओगे यूं खाल बचाकर?-प्रशांतभारत-विरोधी सोच क्यों?दिशादर्शन में श्री तरुण विजय ने अपने लेख “नूतन राष्ट्राध्यक्षा” में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के लिए सफलता की कामनाएं की हैं, तो वहीं उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव के सम्बंध में एक अति विचारणीय सवाल भी उठाया है कि जितनी सरलता और आसानी से बिना किसी एक भी अपवाद के सभी राजनीतिक दलों ने “केवल मुस्लिम उम्मीदवार चाहिए” का मंत्र जपा, क्या वह भारतीय लोकतंत्र और वास्तविक सेकुलरवाद की भावना के अनुरूप कहा जा सकता है? यह विचार न तो सच्चे लोकतंत्र का पोषक है और न ही सच्चे सेकुलरवाद का परिचायक। यह सिर्फ और सिर्फ तुष्टीकरण है। ऐसी सोच केवल “सेकुलर भारत” में ही पैदा हो सकती है।-राजेश कुमार1/11552/बी, नवीन शाहदरा (दिल्ली)जबरदस्ती की योग्यतामंथन में श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख “राष्ट्र हारा, राजनीति जीती” आंखें खोलने वाला रहा। पं. नेहरू की पुत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और नाती राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और अब उसी पद के लिए राहुल गांधी को जबरदस्ती योग्य ठहराया जा रहा है। श्री ह्मदयनारायण दीक्षित का लेख “जिहादी मानसिकता को समझें” भी मन को झकझोरता है। उन्होंने कुरान की जिहादी आयतों से हिन्दू समाज को परिचित कराया है।-क्षत्रिय देवलालउज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)समयोचित निर्णयश्री जितेन्द्र तिवारी की रपट “चलो रामेश्वरम्” पढ़ी। सन्तों ने समयोचित निर्णय लिया है कि वे मन्दिर-अखाड़ों से बाहर निकलकर समाज में अलख जगाएंगे। जिस प्रकार तालिबान ने बामियान में बुद्ध की प्रतिमाओं का ध्वंस किया उसी प्रकार रामेश्वरम में यूपीए अध्यक्ष की कथित देखरेख में श्रीराम सेतु को तोड़ा जा रहा है। श्रीरामसेतु की रक्षा के लिए हिन्दुओं को रामेश्वरम से लेकर दिल्ली तक आन्दोलन करना होगा।-सुभाषिनी प्रमोद वालसांगकरदिलसुखनगर, हैदराबाद (आं.प्र.)समानांतर सरकार?वैचारिकी स्तंभ में श्री आर.एल. फ्रांसिस का लेख “कानून और जोर-जबरदस्ती से नहीं, जनजागरण से रुकेगा मतांतरण” पढ़ा। लेकिन सवाल पैदा होता है कि चर्च जैसी विशाल ताकत के सामने श्री फ्रांसिस या उनका संगठन कब तक खड़ा रह सकता है? देश में छह साल तक भाजपा के नेतृत्व में सरकार रही है। इन छह सालों में चर्च नेतृत्व ने बड़ी होशियारी से सरकार एवं संघ विचार परिवार को तथाकथित हमलों और पादरियों के उत्पीड़न के मामले में उलझाए रखा था। आज भी चर्च नेतृत्व केवल एक ही एजेण्डे के तहत काम कर रहा है कि देश में उनकी अपनी एक समानान्तर सरकार चले। वेटिकन के दिशा-निर्देशों के तहत चलने वाली बिशप क्रांफ्रेंस भारत को 140 से भी ज्यादा मजहबी प्रान्तों में बांट कर आदेश चला रही है। इस तरह के एक प्रान्त का बजट किसी राज्य सरकार के बजट के आस-पास होता है।-पी.बी. लोमियो1398, क्रिश्चियन कलोनी, खातीबाबा, झांसी (म.प्र.)बधाई!श्री तरुण विजय का नया स्तम्भ “विचार एवं कृति” सुन्दर एवं सराहनीय है। यह कटु सत्य है कि अपने विचार परिवार के सदस्यों द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी के अभाव के कारण कार्यकर्ता भी मीडिया के दुष्प्रचार के आगे लाचार एवं निरुत्तर हो जाते हैं। इस स्तम्भ को प्रारंभ करने के लिए पाञ्चजन्य परिवार बधाई का पात्र है।-श्याम सुन्दरए-338, सेक्टर-2, रोहिणी (दिल्ली)पुरस्कृत पत्रश्रीकृष्ण आयोग रपट की सच्चाईमुम्बई दंगों (1993) से संबंधित श्रीकृष्ण आयोग की रपट के क्रियान्वयन की मांग फिर उठी है। इस रपट की कई कमियां उजागर होने के बाद भी इस मांग का उठना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसमें मुम्बई दंगे को बाबरी विध्वंस की प्रतिक्रिया बताया गया था। इस रपट के मुखर समर्थक याद करें कि जब गुजरात के दंगों (2002) को श्री नरेन्द्र मोदी ने गोधरा कांड की प्रतिक्रिया बताया था तो वे उन पर कैसे बिफर पड़े थे। फिर श्रीकृष्ण आयोग का वैसा ही तर्क इनके गले कैसे उतर गया? श्रीकृष्ण आयोग की 800 पृष्ठों की रपट में 12 मार्च, 1993 को मुम्बई में हुए श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों के बारे में महज 8 पृष्ठ हैं, जबकि यह सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। इन विस्फोटों में 256 लोग मरे, 1400 घायल हुए तथा 300 करोड़ रु. की सम्पत्ति नष्ट हुई थी। हाल ही में टाडा अदालत ने 100 आरोपियों को इस कांड में सजाए सुनाई है। इतनी बड़ी घटना के बारे में आयोग का दृष्टिकोण समझ से परे था। रपट में कहीं भी उन जिहादी नारों का जिक्र नहीं है, जो स्थान-स्थान पर उग्र भीड़ ने लगाए थे। उर्दू अखबारों की भूमिका पर भी कोई टिप्पणी नहीं है, जिनके उकसावे भरे लेखन ने आग फैलाई। रपट के सत्तारूढ़ समर्थकों से प्रश्न है कि 1984 के सिख नरसंहार के बारे में नानावती आयोग की रपट पर उन्होंने क्या कार्रवाई की? उसमें जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार और धर्मदास शास्त्री जैसे बड़े कांग्रेसी नेताओं पर उंगली उठाई गई है। केरल के मराड में मई 2003 में हिन्दुओं की सामूहिक हत्या की जांच न्यायमूर्ति थामस पी. जोसफ ने की थी। अक्तूबर 2006 में प्रस्तुत अपनी रपट में उन्होंने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को उक्त घटना में सीधे शामिल बताया था। पर यह पार्टी आज भी मनमोहन सिंह सरकार में शामिल है। थामस रपट पर धूल जम चुकी है।-अजय मित्तलखंदक, मेरठ (उ.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं4

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