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-इन्दिरा मोहनआंखें फोड़ता धूल का गुबारचारों ओरसांस-सांस में धूल ही धूलउड़ती जहां-तहांकागज की चिंदियांहिटलर सी तेज तर्रार धूपदिखा रही है आंखेंहांफ रही दोपहरीसड़कें खाली, गलियां खालीकुत्ते तक खामोशबस खड़े हैं सड़क के दोनों ओरविनत भाव से पेड़हाथ जोड़कर रहे देवताओं
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