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अपने देश की संस्कृति और विरासत पर शर्मिंदा यह सरकार

by
Aug 4, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Aug 2007 00:00:00

… उन्होंने बनायारेखांकन: बलराज… और भगवान इन्हें सन्मार्ग दिखाएंसेतु समुद्रम प्रकल्प का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (दाएं) चित्र में अन्य हैं (बाएं से) पी. चिदम्बरम, टी.आर. बालू, एम. करुणानिधि और सोनिया गांधीभारत और श्रीलंका के बीच प्रस्तावित नहर मार्ग दर्शाता हुआ मानचित्र-तरुण विजयसंप्रग सरकार ने आते ही लद्दाख में प्रतिवर्ष होने वाले सिन्धु दर्शन महोत्सव का नाम यह कहते हुए सिंघे खाबब कर दिया क्योंकि उसमें सिन्धु दर्शन नाम से “हिन्दू दर्शन” की “बू” आती है। अब वह अपने किसी भी दस्तावेज, अपने शीर्षस्थ पदाधिकारियों के भाषण अथवा सेतु समुद्रम प्रकल्प के किसी भी कागज में राम सेतु नहीं लिख रही है बल्कि आदम सेतु लिख रही है जबकि तथ्य यह है कि पिछले हजारों वर्षों से यह स्थान केवल राम सेतु के नाम से ही जाना गया है। 1747, 1788, 1804 के पश्चिमी नक्शों में इस सेतु को राम सेतु के नाम से अभिहित किया गया है। तंजौर स्थित सरस्वती महल पुस्तकालय में आस्ट्रेलिया के वनस्पति शास्त्री यात्री द्वारा बनाया गया जो नक्शा रखा है उसमें इसे रामार सेतु लिखा गया है। 1747 के नक्शे में इसे रामन कोविल कहा गया है जिसका अर्थ है राम का मंदिर। यह भी ज्ञातव्य है कि प्राचीन काल से श्री राम सेतु को भक्ति और श्रद्धा के भाव से साक्षात् राम मंदिर भी कहा जाता रहा है। पहली बार राम सेतु को आदम पुल या एडम्स ब्रिज नाम ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त सर्वेयर जनरल जेम्स रेनल ने दिया। भारत सरकार औपनिवेशिक सरकार द्वारा दिए गए नाम को बहुत सहजता से स्वीकार कर रही है लेकिन भारतीय जन मानस में हजारों वर्षों से जो नाम अंकित है वह कहीं भी नहीं रख रही।सेतु समुद्रम जलमार्ग योजना के बारे में फ्रंटलाइन पत्रिका के 1-14 जनवरी, 2005 के अंक में टी.एस. सुब्राह्मण्यम ने अपनी रपट में लिखा कि इस प्रकल्प से स्थानीय जनता, अल्पसंख्यक विशेषकर मछुआरे बहुत नाराज हैं। तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास द्वारा जनता के साथ बातचीत का जो कार्यक्रम रखा गया वह जूतम- पैजार, शोर और सेतु समुद्रम के तीव्र विरोध में समाप्त हो गया। मण्डपम स्थित केन्द्रीय सागर मत्स्य संस्थान में 14 वर्ष अनुसंधान कर चुके सागर वैज्ञानिक डा. आर.एस. मोहन लाल ने कहा कि सागर के तल पर किसी भी प्रकार की हलचल से मत्स्य संपदा में वनस्पति का भयंकर सर्वनाश हो जाएगा। मदुरै स्थित सामुदायिक संगठन न्यास (सोको ट्रस्ट) के श्री ए. महबूब बाचा और एल. लजपतिराय ने कहा कि सेतु समुद्रम के वर्तमान स्वरुप से मन्नार की खाड़ी और पाक बे में तीव्र जल प्रवाह होगा जिससे मण्डपम क्षेत्र में जल का तापमान बढ़ जाएगा और जल के भीतर के जंगल नष्ट हो जाएंगे। इस प्रकल्प के समर्थन में वे सभी दल उठ खड़े हुए हैं जिनका भारतीय राष्ट्रीयता और हिन्दुत्व के प्रति गहरा नफरत भरा भाव जगजाहिर रहा है जैसे एमडीएमके, द्रमुक, पीएमके, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां। स्वदेशी नौका मछुआरा पंचायत, रामेश्वरमपुरम के अध्यक्ष आर0 राज और एफ. जयपाल तथा एक अन्य संगठन के के0 थॉमस वास का कहना है कि केवल हमारे गांव में 1300 नौकाएं मछली पकड़ती हैं, हर नौका कम से कम 8 लोगों के परिवार को पालती है। यदि यह प्रकल्प पूरा हुआ तो हम सब बर्बाद हो जाएंगे। बरकोड मछुआरा संघ के सांतियागो फर्नांडीस का कहना है कि जब लगातार सागर के तट से रेत हमारे तटों पर ढेर बनाती रहेगी तो हमारा गांव, नौका पालन और जिंदगी सब कुछ बर्बाद हो जाएगी। जाहिर है जिस प्रकार से यह प्रकल्प अभी चलाया जा रहा है वह देश, समाज, सुरक्षा, धर्म, विरासत और स्थानीय नागरिकों के जीवन के विरुद्ध एक बड़ा आघात है और यह काम कोई औपनिवेशिक सरकार नहीं बल्कि अपने ही लोगों द्वारा बनी वह सरकार कर रही है जिसके मानस की जड़ें स्वदेशी में नहीं बल्कि औपनिवेशिक दासता में पैठी हैं।10

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