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केरल

by
May 8, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 May 2007 00:00:00

रा.स्व.संघ के प्रांत कार्यकर्ता शिविर में प्रस्ताव पारितअल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में हिन्दुओं से भेदभाव बर्दाश्त नहीं-प्रदीप कुमारराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, केरल ने एक प्रस्ताव पारित करके केरल सरकार से अल्पसंख्यक अधिकारों के नाम पर राज्य में बढ़ रहे स्वपोषित कालेजों पर रोक लगाने की मांग की है। रा.स्व.संघ के प्रांत कार्यकर्ताओं के हाल ही में त्रिशूर में सम्पन्न शिविर में उक्त प्रस्ताव पारित किया गया। स्थानीय सी.एन.एन.हाई स्कूल में सम्पन्न इस शिविर में शिक्षा के क्षेत्र में वाम सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की विस्तृत समीक्षा की गई। अल्पसंख्यक अधिकारों के नाम पर हिन्दू समाज की प्रगति में बाधा पहंुचाने के लिए सामाजिक न्याय पर चोट की जा रही है।केरल में शिक्षा क्षेत्र की प्रचुर विरासत है जो श्री नारायण गुरु और चट्टम्बी स्वामिंगल जैसे महान संतों के योगदान से फली-फूली है। शिक्षा का उद्देश्य समाज से जातीयता, साम्प्रदायिकता, प्रांतीयता और संकीर्णता को मिटाना होता है।आज बाजारवाद ऐसा हावी हो गया है कि आर्थिक उन्नति तथा पंथ का प्रसार ही महत्वपूर्ण हो चले हैं। आज केरल में 75 प्रतशित सहायता प्राप्त और 90 प्रतिशत गैर सहायता प्राप्त व्यावसायिक कालेज अल्पसंख्यक संस्थाओं के हैं। शायद यह स्थिति आगे चलकर उच्च शिक्षा क्षेत्र में हिन्दुओं को बिल्कुल हाशिए पर ला देगी और उनके लिए इस ओर से दरवाजे बंद कर दिए जाएंगे। 55 साल का अनुभव बताता है कि शिक्षा मंत्रालय हिन्दुओं की पहुंच से बाहर हो गया है।हालांकि प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में केरल अग्रणी राज्य था, प्रौद्योगिकीय शिक्षा में जरूर यह पिछड़ा रहा। पैसे वाले अभिभावाक व्यावसायिक पढ़ाई के लिए अपने बच्चों को पड़ोसी राज्यों में भेजने लगे। उत्तरोत्तर बनी सेकुलर सरकारें इस ओर नाकाम रहीं। तब संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार ने 50 बनाम 50 स्थानों की शर्त पर स्वपोषित कालेजों की स्वीकृति दी।आम आदमी ने सोचा कि चलो, 50 प्रतिशत स्थान तो सरकारी नियम से ही मिलेंगे। जबकि शेष 50 प्रतिशत पर प्रबंधन तय करेगा। मगर असलियत में हो यह रहा है कि 50 प्रतिशत सरकारी कोटे की सीटों में से 10 प्रतिशत तो अनु. जाति/जनजाति के लिए हैं, 9 प्रतिशत इज्ड्वा समुदाय के लिए और 5 प्रतिशत वंचित हिन्दुओं के लिए हैं। बहरहाल, चर्चित टीएमए पै मामले ने घोषित किया कि अल्पसंख्यक संस्थानों पर कोई नियंत्रण नहीं लादा जाएगा।संसार का कोई भी समाज संविधान में लिखित कानूनों के अतिरिक्त आपसी भरोसे और आदर पर दूसरे समुदायों के साथ व्यवहार करता है। अत: जिन लोगों ने 50 बनाम 50 की शर्त का वादा किया था बाद में उन्होंने ही विश्वास तोड़ दिया। इस समझौते को तोड़ने के दूरगामी दुष्परिणाम होंगे। अल्पसंख्यक प्रबंधनों द्वारा आम हिन्दुओं का अपमान किया गया है।50-50 सीट समझौते के अनुसार किसी शैक्षिक वर्ष में व्यावसायिक पाठक्रमों में 11295 सरकारी और 7347 खुली योग्यता सीटें होनी चाहिए। इनमें 1128 अनु.जाति/जनजाति सीटें हैं, 1011 इज्ड्वा और 564 सीटें अन्य पिछड़े वर्गों के लिए होनी चाहिए। जबकि टीएमए पै मामले के परिणामस्वरूप अल्पसंख्यक प्रबंधनों ने अल्पसंख्यक अधिकारों के नाम पर उपरोक्त वायदे को भुला दिया है। इसका एकमात्र उद्देश्य केरल में हिन्दुओं को व्यावसायिक शिक्षा से बेदखल रखना ही है। अगर यही हाल रहा तो हिन्दू छात्रों का भविष्य कैसे संवेरगा? यही कारण है कि संघ ने हर राजनीतिक दल, हिन्दू समाज के विभिन्न जातिगत समुदायों और सांस्कृतिक नेताओं से आगे आकर गरीब हिन्दुओं की शिक्षा के अधिकार पर हो रहे इस हमले का विरोध करने की अपील की है।संघ का कहना है कि असंगठित हिन्दू समाज और वोट बैंक राजनीति के कारण राजनीतिक दल शिक्षा क्षेत्र में मनमानी कर रहे हैं। वर्तमान माक्र्सवादी शिक्षा मंत्री अपने आकाओं के साथ लुका-छिपी खेल रहे हैं। सरकार 50-50 सीट समझौते को न मानने वाले कालेजों पर लगाम लगाए। संघ ने प्रस्ताव में केरल के हिन्दुओं का आह्वान किया है कि अपने विरुद्ध हो रहे सामाजिक अपराध के खिलाफ एकजुट हों।23

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